साल 2018 में बिहार के मुंगेर के मिर्जापुर बरदह गांव में जंगलों, नदी, कुओं, खेतों और नालों से 20 एके-47 रायफल बरामद हुई. इन बंदूकों के पार्ट्स भी मिले थे. पता चला कि ये एके-47 और उनके पार्ट्स जबलपुर ऑर्डिनेंस डिपो के थे, जिनकी स्मग्लिंग करके वहां लाया गया था. चूंकि मामला एके-47 से जुड़ा था इसलिए जांच की कमान राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दी गई. एनआईए ने जून 2019 को बिहार के कई शहरों में जांच के तहत ताबड़तोड़ छापेमारी की. इस छापेमारी के दौरान जो एक नाम सामने आया वो था सुनील पांडेय का.
कौन हैं सुनील पांडेय
फिलहाल रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के नेता हैं. 3 बार विधायक रह चुके हैं. दो बार जेडीयू से और एक बार समता पार्टी से. भगवान महावीर पर पीएचडी कर चुके हैं और नाम से आगे डॉक्टर भी लगाते हैं. बिहार के बाहुबली नेताओं में नाम शुमार किया जाता है. 5 मई 1966 को पैदा हुए सुनील पांडेय की आधी जिंदगी जेल में और आधी फरार रहते हुए बीती है. इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी को मारने के लिए 50 लाख की सुपारी तक दे चुके हैं. ये तो था सुनील पांडेय का इंट्रो. अब कहानी जानिए.
कॉलेज में लड़के को मार दिया था चाकू
90 का दशक था. बिहार के रोहतास के नावाडीह गांव में रहते थे कमलेशी पांडेय. भूमिहार जाति से थे. इंजीनियरिंग की हुई थी. सोन नदी से बालू निकालने के लिए मामूली ठेके लिया करते थे. आसपास के इलाकों में छवि दबंग की थी. कमलेशी पांडेय के बेटे का नाम था नरेंद्र पांडेय, जिन्हें लोग सुनील पांडेय के नाम से भी जानते हैं. पिता चाहते थे कि बेटा भी पढ़-लिखकर इंजीनियर ही बन जाए. इसलिए बेंगलुरू भेज दिया. लेकिन कहते हैं ना किस्मत के आगे किसी की नहीं चलती. सुनील की कुछ दिनों बाद वहां एक लड़के से लड़ाई हो गई. इस दौरान सुनील ने उस लड़के को चाकू मार दिया. फिर क्या था पढ़ाई-लिखाई छोड़कर नावाडीह वापस आ गए.
कैसे उतरे जुर्म की दुनिया में
जब पिता की छवि दबंग की थी तो बेटा पीछे कैसे रहता. उस वक्त रोहतास के आसपास के इलाकों में सिल्लू मियां का सिक्का चलता था. वह आरा का निवासी था और शहाबुद्दीन का करीबी था. सुनील की धीरे-धीरे सिल्लू से दोस्ती हुई और बहुत जल्दी वो उसका राइट हैंड बन गया. कहा जाता है कि जुर्म की दुनिया की क्लास सुनील ने सिल्लू की पाठशाला में ही ली थी. लेकिन ऊपर उठने की चाह में सुनील की सिल्लू से दुश्मनी हो गई. एक दिन सिल्लू का मर्डर हो गया. नाम सुनील का आया. लेकिन सबूत ना होने के कारण केस दर्ज नहीं हुआ. इस तरह से बालू के ठेके पर सुनील का एकछत्र राज हो गया.
जब ब्रह्मेश्वर मुखिया से चली अदावत
90 का दशक बिहार में रणवीर सेना का माना जाता है. भूमिहार जाति का इस सेना में दबदबा था और ब्रह्मेश्वर सिंह उसके मुखिया थे. एक वक्त वो भी आया, जब सुनील रणवीर सेना का कमांडर बन गया. लेकिन सुनील और ब्रह्मेश्वर के बीच लंबी दुश्मनी भी चली. 1993 में एक ईंट भट्टे मालिक की हत्या हो गई. इसके बाद सुनील और ब्रह्मेश्वर सिंह में खूनी जंग छिड़ गई. ब्रह्मेश्वर गुट ने जनवरी 1997 को बोजपुर के तरारी प्रखंड के बागर गांव में 3 लोगों को मौत के घाट उतार डाला. ये लोग भूमिहार जाति से थे. इनमें एक महिला भी थी, जो सुनील की करीबी रिश्तेदार थी. ब्रह्मेश्वर और सुनील की दुश्मनी जारी रही और 1 जून 2012 को ब्रह्मेश्वर की हत्या तक जारी रही.
फिर उतरे राजनीति में...
साल था 2000. मार्च में बिहार में विधानसभा चुनाव होने थे. समता पार्टी ने सुनील पांडेय को रोहतास के पीरो से टिकट दिया. उन्होंने आरजेडी के प्रत्याशी काशीनाथ को हराया और विधायक बन गए. उस चुनाव में तो किसी को भी बहुमत नहीं मिला. जब समता पार्टी का बीजेपी से गठबंधन था. तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने को कहा. बताया जाता है कि इस शपथ में सुनील पांडेय की भूमिका बहुत अहम थी. जब किसी को बहुमत नहीं मिला तो पांडेय ने राजन तिवारी, मुन्ना शुक्ला, रामा सिंह, अनंत सिंह, धूमल सिंह और मोकामा के सूरजभान जैसे निर्दलीय बाहुबलियों की फौज को नीतीश के खेमे में खड़ा कर दिया. इस तरह सुनील का कद और बढ़ गया.
लंबी है जुर्म की फेहरिस्त
- बात मई 2003 की है. पटना के एक नामी न्यूरो सर्जन रमेश चंद्रा का अपहरण हो गया. फिरौती में 50 लाख रुपये मांगे गए. लेकिन पुलिस ने तेजी दिखाई और नौबतपुर इलाके से डॉक्टर को खोज निकाला. केस में नाम आया पीरो के विधायक सुनील पांडेय का. उस वक्त RJD की सरकार थी और समता पार्टी से सुनील विधायक थे. साल 2008 में सुनील पांडेय को तीन अन्य लोगों के साथ उम्रकैद की सजा हुई. लेकिन जब मामला हाई कोर्ट पहुंचा तो उन्हें बरी कर दिया गया.
- बात 28 जून 2006 की है, जब सुनील पांडेय पटना के सबसे आलीशान होटलों में से एक मौर्या में रुके. अगली सुबह जब वे होटल से चेक आउट कर रहे थे तो होटल के पैसे नहीं दिए. दावा किया कि होटल के मालिक ने उनके दोस्त से 47 लाख रुपये लिए हुए हैं. इसलिए वो पैसे नहीं देंगे. जब पत्रकारों ने उनसे इस बारे में पूछा तो उन्होंने एक टीवी चैनल के कैमरामैन को जान से मारने की धमकी दी. यह घटना कैमरे में रिकॉर्ड हो गई. नीतीश कुमार ने पांडेय को पार्टी से निकाल दिया.
- साल 2010 में जब नीतीश कुमार ने सुनील पांडे को दोबारा टिकट दिया तो सब हैरान रह गए. वो इसलिए क्योंकि जो चुनावी हलफनामा दिया, उसमें सुनील पर 23 आपराधिक मुकदमे थे, जिसमें रंगदारी, हत्या की कोशिश, डकैती, लूट और अपहरण के मामले थे.
- जब 1 जून 2012 को रणवीर सेना के मुखिया ब्रह्मेश्वर सिंह की हत्या हुई तो पहला शक सुनील पांडेय पर गया. पुलिस ने छापा मारकर उनके ड्राइवर को अरेस्ट कर लिया. साथ ही उनके भाई और तत्कालीन विधान परिषद के निर्दलीय सदस्य हुलास पांडेय को हिरासत में लेकर पूछताछ की. लेकिन बाद में रिहा कर दिया गया.
- 23 जनवरी 2015 को आरा के सिविल कोर्ट में धमाका हुआ. दो लोगों की मौत हो गई. कोर्ट से दो कैदी लंबू शर्मा और अखिलेश उपाध्याय फरार हो गए. जांच हुई तो पता चला कि लंबू सिंह ने ही धमाके को अंजाम दिया था. दिल्ली पुलिस ने जून 2015 में लंबू सिंह को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उसने बताया कि जेल से फरार होने में सुनील पांडेय ने उसकी मदद की थी. इसके बाद पांडेय को एसपी ऑफिस बुलाया गया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
- लंबू ने पूछताछ में यह भी बताया कि पांडेय ने यूपी के बाहुबली मुख्तार अंसारी को मारने के लिए 50 लाख रुपये की सुपारी दी थी. लंबू के इकबालिया बयान के बाद सुनील पांडेय गिरफ्तार तो हुए, लेकिन तीन महीने में ही उन्हें जमानत मिल गई.