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Exit poll: तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री पद के लिए बिहार की पहली पसंद, नीतीश 9% से पीछे

बिहार विधानसभा चुनाव में बाजी कौन मारेगा, ये 10 नंवबर को तय होगा, लेकिन एग्जिट पोल में मुख्यमंत्री पद के लिए आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ही पहली पसंद बनाकर उभरे हैं जबकि मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार बिहार की जनता की दूसरी पसंद बने हैं. तेजस्वी यादव बिहार के 44 फीसदी लोेंगो की पसंद बने हैं.

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स्टोरी हाइलाइट्स
  • बिहार में इस बार 6 सीएम के प्रत्याशी मैदान में थे
  • तेजस्वी यादव महागठबंधन के सीएम चेहरा बने थे
  • सीएम के तौर पर नीतीश कुमार दूसरे नंबर पर हैं

बिहार विधानसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दलों ने सत्ता पर काबिज होने के लिए पुरजोर कोशिश की है. इस चुनाव में विभिन्न पार्टियों के चार अलग-अलग गठबंधन और छह मुख्यमंत्री पद के चेहरे चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं. ऐसे में बिहार विधानसभा चुनाव में बाजी कौन मारेगा, ये 10 नंवबर को तय होगा, लेकिन एग्जिट पोल में मुख्यमंत्री पद के लिए आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ही पहली पसंद बनाकर उभरे हैं, जबकि मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार बिहार की जनता की दूसरी पसंद बने हैं. 

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इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया के मुताबिक मुख्यमंत्री पद के लिए आरजेडी नेता तेजस्वी यादव बिहार के 44 फीसदी लोगों की पसंद बने हैं. तेजस्वी के राजनीतिक ग्राफ में तेजी से इजाफा हुआ है. वहीं, इस रेस में नीतीश कुमार पीछे हैं. नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के तौर पर 35 फीसदी लोगों ने अपनी पंसद बताया है. हालांकि, बिहार का पूरा चुनाव इन्हीं दोनों नेताओं के इर्द-गिर्द सिमटा रहा है. यह नीतीश कुमार के लिए काफी बड़ा झटका माना जा रहा है. 

सीएम की पहली पसंद

बिहार में 43 फीसदी महिलाओं ने भी सीएम के तौर पर तेजस्वी के अपनी पंसद बतायी है जबकि 42 फीसदी महिलाएं ही नीतीश को समर्थन दिया है. ऐसे ही पुरुषों के आंकड़े को देखें तो 37 फीसदी ने नीतीश को अपनी पसंद बतायी है तो तेजस्वी को 44 फीसदी पुरुषों ने सीएम के तौर पर अपना समर्थन दिया है.

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युवाओं में तेजस्वी का क्रेज तो बुजुर्गों का भरोसा नीतीश पर
उम्र के लिहाज से देखें तो युवाओं की पसंद तेजस्वी यादव बने तो बुजुर्गों का भरोसा नीतीश कुमार पर कायम है. 18 से 25 साल के उम्र के 47 लोग तेजस्वी के साथ हैं तो 34 फीसदी नीतीश कुमार के साथ. 26 से 35 साल के उम्र के लोगों 36 फीसदी नीतीश के साथ तो 47 फीसदी तेजस्वी के साथ हैं. वहीं, 36 से 50 साल के उम्र के लोगों की बात करें तो 42 फीसदी लोग नीतीश के साथ जबकि 41 फीसदी तेजस्वी के साथ. ऐसे ही 51 से 60 साल के उम्र की बातें करें तो 45 फीसदी की पंसद नीतीश है और 40 फीसदी तेजस्वी को चाहते हैं. 60 साल के ज्यादा उम्र के लोगों में देखें तो 48 फीसदी की पंसद नीतीश है और महज 38 फीसदी की पंसद तेजस्वी बन सकें हैं.

चिराग पासवान को महज 7 फीसदी

वहीं, एनडीए से नाता तोड़कर अकेले चुनाव मैदान में उतरने वाले एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान के नाम पर महज 7  फीसदी लोग ही मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी सहमति जताई है. हालांकि, बिहार में सीएम के रूप में तीसरे नेता के तौर पर पसंद बनकर उभरे हैं. चिराग पासवान ने बिहार की 243 सीटों में से 135 सीटों पर अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे, जिनमें से ज्यादातर जेडीयू के खिलाफ प्रत्याशी उतारे थे. 

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ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट (JDSF) में मुख्यमंत्री का चेहरा राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के प्रमुख उपेंद्र कुशावहा थे, जिन्हें बसपा से लेकर असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM तक ने समर्थन दिया था. ऐसे में एग्जिट पोल के मुताबिक उपेंद्र कुशवाहा को बिहार के 4 फीसदी लोग ही सीएम के तौर पर देखना चाहते है. आरएलएसी ने 99 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे. 

सीएम के तौर पर किसे कितना समर्थन

बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी को बतौर मुख्यमंत्री 3 फीसदी लोग ही पसंद किए हैं. इसके अलावा एनडीए में शामिल हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के प्रमुख और पूर्व सीएम जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री के तौर पर 1 फीसदी लोग देखना चाहते हैं. बीजेपी नेता सुशील मोदी 2005 में जब नीतीश कुमार ने सत्ता की कमान संभाली, तब से लेकर अभी तक डिप्टी सीएम हैं. हालांकि, बीच में कुछ दिनों के लिए छोड़कर. इसके बावजूद बिहार में महज 3 फीसदी लोगों की पसंद बन सके हैं जबकि जीतनराम मांझी आठ महीने तक सत्ता पर काबिज रहने के बाद भी एक फीसदी लोगों की ही पसंद बन सके हैं. 

इसके अलावा बिहार में  प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन (PDA) की ओर से मुख्यमंत्री के चेहरा जन अधिकार पार्टी (JAP) के मुखिया राजीव रंजन (पप्पू यादव)  थे,  जिन्हें महज एक फीसदी लोगो ही मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं. बिहार चुनाव में प्लुरल्स पार्टी की प्रमुख पुष्पम प्रिया चौधरी भी खुद को मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित कर चुनावी मैदान में उतरी थीं. पुष्पम प्रिया चौधरी ने स्थानीय समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित करते हुए खुद को अगला मुख्यमंत्री घोषित कर रखा था, लेकिन इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया के मुताबिक अपना असर बिहार की राजनीति में नहीं छोड़ सकी हैं. पुष्पम प्रिया सीएम के तौर पर एक फीसदी की पसंद बन सकी हैं. ऐसे ही बीजेपी के दिग्गज नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह एक फीसदी की पसंद बने हैं. वहीं, तीन फीसदी ऐसे भी लोग हैं, जो किसी को भी सीएम के तौर पर अपना समर्थन नहीं दिया है. 

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बता दें कि महागठबंधन का चेहरा आरजेडी नेता तेजस्वी यादव रहे हैं. तेजस्वी ने अकेले करीब ढाई सौ जनसभाओं को संबोधित किया और  चार रोड शो किए हैं. उन्होंने एक दिन में 19 सभाएं करके अपने पिता लालू यादव के एक दिन में 17 रैलियां करने का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. बिहार तीन चरणों में होने वाले इस विधानसभा चुनाव में तेजस्वी ने तो कई प्रत्याशियों के लिए एक ही क्षेत्र में दो-दो सभाएं तक कीं और मतदाताओं से वोट मांगे थे.

री-ब्रैंडिंग की कोशिश

तेजस्वी यादव ने अपने पूरे चुनाव कैम्पेन के दौरान खुद की री-ब्रैंडिंग करने की कोशिश की और जिसका फायदा भी उन्हें मिलता दिख रहा है. तेजस्वी को युवाओ में अपनी अपील का लाभ हुआ है. उन्होंने पिता लालू यादव की जाति केंद्रित राजनीति की जगह मुद्दों की राजनीति पर अधिक भरोसा किया. 30 वर्षीय तेजस्वी ने अपने कैम्पेन का मुख्य आधार बेरोजगारी को बनाया. तेजस्वी ने अपनी हर सभा में कहा कि वो अगर मुख्यमंत्री बनते हैं तो सबसे पहले दस नौकरियों के आदेश पर हस्ताक्षर करेंगे.

चुनाव से कुछ ही दिन पहले, लोकनीति-सीएसडीएस के ओपिनियन पोल में तेजस्वी यादव को 27 प्रतिशत प्रतिभागियों की पसंद बताया था जबकि उनसे चार प्रतिशत अधिक यानि 31 प्रतिशत प्रतिभागियों ने मुख्यमंत्री के लिए नीतीश कुमार के नाम पर मुहर लगाई थी. तेजस्वी ने बिहार में रोजगार के अवसरों की कमी के साथ ही लॉकडाउन के दौरान घर लौटने वाले प्रवासियों की दुर्दशा पर एनडीए पर बार-बार निशाना साधा. 

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इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया के एग्जिट पोल के आंकड़ों में 18 से 35 साल के आयुवर्ग में 47 प्रतिशत प्रतिभागी महागठबंधन को पसंद करते दिख रहे हैं. जबकि 18-35 आयुवर्ग में 34 फीसदी और 26 से 35 आयुवर्ग में 36 फीसदी ने एनडीए को वोट देना पसद किया. एग्जिट पोल के अनुमानों के मुताबिक कुल 43 प्रतिशत स्नातक, 46 प्रतिशत स्नातकोत्तर और 43 प्रतिशत प्रोफेशनल डिग्री धारकों ने तेजस्वी के नेतृत्व वाले महागठबंधन को वोट देना पसंद किया.

वहीं 38 प्रतिशत स्नातक, 36 प्रतिशत स्नातकोर और 41 प्रतिशत प्रोफेशनल डिग्रीधारकों ने एनडीए के पक्ष में वोट दिया. आरजेडी के युवा नेताओं की अपील राज्य के शहरी क्षेत्रों में भी नीतीश से अधिक रही. शहरी वोटरों में 46 प्रतिशत ने महागठबंधन और 42 प्रतिशत ने एनडीए के हक में वोट दिया.

तेजतर्रार भाषण

पूर्व क्रिकेटर तेजस्वी की रैलियों में भीड़ और तेजतर्रार भाषणों ने एनडीए नेताओं को भी हैरान किया. नीतीश की तुलना में अधिक बेरोजगार, छात्रों और प्रवासी मजदूरों ने तेजस्वी का समर्थन किया. डेटा से पता चलता है कि महागठबंधन को समाज के मध्यम और गरीब वर्गों का समर्थन मिलता दिख रहा है. एमवाईवाई (मुस्लिम+यादव+युवा) ने महागठबंधन की तरफ रुख मोड़ने में अहम भूमिका निभाई. तेजस्वी ने खुद को सभी जातियों, समूहों के नेता के तौर पर पेश किया और खुद को एमवाई (मुस्लिमों/यादवों) नेता तक ही सीमित नहीं रखा. 

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तेजस्वी ने विकास और दस लाख रोजगार के वादे पर कैम्पेन का फोकस रखा. उन्होंने अधिकतर चुनावी सभाओं में- कमाई, दवाई, पढ़ाई, सिंचाई और महंगाई का जिक्र किया. तेजस्वी यादव ने आरजेडी के साथ जुड़े कथित ‘जंगल राज’ के ठप्पे से नुकसान को कम से कम करने के लिए लालू यादव-राबड़ी देवी और को चुनाव प्रचार से दूर रखने का साहसिक कदम उठाया.

 

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