
बिहार चुनाव का तीसरा और अंतिम दौर भी खत्म हो चुका है. एक्जिट पोल के अनुमान भी सामने हैं, लेकिन अंतिम फैसले के लिए लोगों को कुछ इंतजार करना पड़ेगा. बिहार विधानसभा चुनाव कोरोना महामारी की दस्तक के बाद देश में पहला बड़ा चुनाव है. अगर दुनिया की बात की जाए तो बिहार के चुनाव के साथ ही अमेरिका में भी राष्ट्रपति चुनाव हुए. ऐसे में राजनीतिक कयासों के गलियारों में अमेरिका के साथ बिहार का चुनाव भी सुर्खियों में रहा. बिहार के नतीजे 10 नवंबर को आने हैं. ऐसे में सवाल है कि बिहार का अगला कैप्टन कौन होगा? नीतीश कुमार या तेजस्वी यादव? क्या नीतीश कुमार की वापसी संभव है और यदि हां, तो उनके असल खेवनहार कौन हो सकते हैं?
इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया एग्जिट पोल के अनुमान के मुताबिक बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार भी पुरुष वोटरों की तुलना में महिला वोटरों ने एनडीए को अधिक पसंद किया. जहां एनडीए को सिर्फ 37 फीसदी पुरुषों के वोट मिलने का अनुमान है वहीं 42 फीसदी महिला वोटरों ने पसंद किया. एग्जिट पोल के मुताबिक इस बार महागठबंधन को 44 फीसदी पुरुष वोटरों और 43 फीसदी महिला वोटरों के वोट मिलते दिख रहे हैं. यानि महिला वोटरों ने भी एनडीए की तुलना में एक प्रतिशत अधिक महागठबंधन को पसंद किया है. ये नीतीश कुमार के लिए खतरे की घंटी हो सकता है.
बिहार में इस पूरे चुनावी अभियान पर नजर डालें तो नीतीश कुमार ने लगभग हर रैली में सड़क, फ्लाईओवर, हर घर बिजली, नल-जल अभियान की बढ़-चढ़कर चर्चा जरूर की लेकिन साथ ही हर जगह फोकस हमेशा महिलाओं से जुड़े मुद्दे पर भी ऱखा. महिलाओं को जंगल राज की कहानी बताने से ज्यादा इस बात का अहसास कराने की कोशिश कि कैसे पिछले 15 वर्षों में उन्होंने राज्य में महिलाओं को सशक्त व स्वावलंबी बनाने की कोशिश की? कैसे उनके राजनीतिक हक की लड़ाई लड़ी गई और कैसे आज आत्मनिर्भर महिलाएं बिहार के विकास में सहयोग दे रही हैं?
उन्होंने अपनी हर रैली में जो गिनाया, उनमें राज्य में लड़कियों के लिए पोशाक-साइकिल योजना, सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाकर करीब 60 लाख महिलाओं को स्वावलंबी बनाने की योजना, पंचायती व्यवस्था में 50 फीसदी सीट महिलाओं के लिए आरक्षित करने की योजना शामिल रहीं. शायद यही वजह है कि जेडीयू नेताओं को उम्मीद है कि 2015 की तरह 2020 में भी राज्य की महिलाओं की भागीदारी की बदौलत नीतीश की नैया पार लग जाएगी. हालांकि, वाकई ऐसा हुआ या नहीं, इसे समझने के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा.
इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया एग्जिट पोल के अनुमान के मुताबिक आज शनिवार को बिहार में खत्म हुए विधानसभा चुनाव में इस बार भी पुरुष वोटरों की तुलना में महिला वोटरों ने एनडीए को अधिक पसंद किया. जहां एनडीए को सिर्फ 37 फीसदी पुरुषों के वोट मिलने का अनुमान है वहीं 42 फीसदी महिला वोटरों ने पसंद किया. एग्जिट पोल सर्वे के मुताबिक इस बार महागठबंधन को 44 फीसदी पुरुष वोटरों और 43% फीसदी महिला वोटरों के वोट मिलते दिख रहे हैं. यानि महिला वोटरों ने भी एनडीए की तुलना में एक प्रतिशत अधिक महागठबंधन को पसंद किया है. ये नीतीश कुमार के लिए खतरे की घंटी हो सकता है.
महिला वोटर अहम क्यों?
बिहार के चुनाव में महिला मतदाताओं के बढ़ते महत्व को समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा. वर्ष 2000 में झारखंड राज्य के अलग होने के बाद से हुए बिहार में हुए चार चुनावों पर अगर नजर डालें तो औऱ उसमें महिलाओं वोटरों की हिस्सेदारी देंखे तो हर चुनाव की कहानी का अहसास उनके परिणामों से दिख जाएगा.
वर्ष 2005 में बिहार में दो बार विधानसभा के चुनाव हुए, पहले फरवरी में और फिर अक्टूबर में. फरवरी 2005 में जब चुनाव हुए तो लगभग 42.51 फीसदी (करीब 1.04 करोड़) महिला मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. लेकिन ठीक पांच साल बाद यानि 2010 में राज्य में जब विधानसभा चुनाव हुए तो महिला मतदाताओं की बढ़ती ताकत का अहसास सभी दलों को होने लगा. वर्ष 2010 में जहां 54.48 फीसदी महिला मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जो 2005 की तुलना में 10 फीसदी अधिक था, वहीं पुरुष मतदाताओं की भागीदारी 51.12 फीसदी ही रही.
2015 में जब विधानसभा के चुनाव हुए तो लगभग 60.48 फीसदी (1.89 करोड़) महिलाओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया यानि 10 साल में लगभग 20 फीसदी की बढ़ोतरी, जो किसी भी मायने से काफी अहम थी. यह आंकड़ा 1962 में बाद से सबसे ज्यादा था. इसकी तुलना अगर पुरुष मतदाताओं से की जाए, तो 2005 में जहां 49.94 फीसदी पुरुष (1.40 करोड़) मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, वहीं 2015 में सिर्फ 53.32 फीसदी पुरुष (1.9 करोड़) ने वोट डाले, जो 2005 की तुलना में महज चार फीसदी ज्यादा थे.
महिलाओं को ज्यादा अधिकार से लाभ?
2019 के लोकसभा चुनाव में कमोवेश यही ट्रेंड बना रहा और करीब 59.58 फीसदी (1.99 करोड़) महिला वोटरों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया जबकि 55 फीसदी पुरुषों (2.08 करोड़) ने वोट डाले
2020 बिहार विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो में भी महिलाओं मतदाताओं की भागीदारी बढ़-चढ़कर देखी गई. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, पहले फेज के मतदान में जहां 55.68 फीसदी महिलाओं ने वोट डालें, वहीं दूसरे फेज के 94 सीटों पर लगभग 58.80 फीसदी महिलाओं ने अपने वोट की ताकत का इस्तेमाल किया। दूसरे फेज में करीब 52.92 फीसदी पुरुषों मतदान केंद्रों पर वोट डालने आए. अगर चुनाव आयोग के आंकड़ों को ध्यान से देखें तो दूसरे फेज की 94 सीटों में से 74 सीटों पर महिलाओं का मत प्रतिशत ज्यादा रहा.
दरअसल, राजनीति में महिलाओं की इस बढ़ती भागीदारी का विश्लेषण काफी हुआ है और जब 2015 विधानसभा चुनाव में जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस का महागठबंधन सत्ता में आया तो विश्लेषकों और राजनीतिक समीक्षकों का मानना था कि महिला सशक्तिकरण को लेकर नीतीश सरकार की ओर से लिए गए फैसलों का काफी योगदान था. लिहाजा 2020 के विधानसभा चुनावों में 115 सीटों में जब जेडीयू ने 22 सीटों पर महिला प्रत्याशियों को उतारने का फैसला किया तो लोगों को हैरानी भी नहीं हुई. हालांकि, 2015 में पार्टी ने महज 10 महिला प्रत्याशियों का मैदान में उतारा था.
मनरेगा में महिलाओं की अधिक भागीदारी
दरअसल, जिस महिला सशक्तिकरण की चर्चा सबसे ज्यादा हो रही है, या नीतीश कुमार ने इस चुनाव में जो मुद्दे उठाने की कोशिश की, उसमें आर्थिक तौर पर महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए “जीविका”प्रोग्राम अहम है. स्किल डेवलपमेंट और बैंको से सस्ते लोन उपलब्ध कराकर छोटे शहरों, ब्ल़ॉक व ग्रामीण स्तर पर जिस तरीके से सेल्प हेल्प ग्रुप बनाए गए. आज 60 लाख परिवार इससे जुड़े हुए हैं और इसका लाभ उठा रहे हैं.
नीतीश कुमार ने महिलाओं को हुए लाभ की चर्चा अपनी हर रैली में की. वर्ष 2018-19 में पेश किए गए बिहार के आर्थिक सर्वे पर गौर करें तो वहां आर्थिक सशक्तिकरण को थोड़ी बहुत झलक जरूर मिल जाती है. सर्वे के मुताबिक, मनरेगा कार्यक्रमों में महिला मजदूरों की भागीदारी में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है. वर्ष 2013-14 में जहां मनरेगा में महिला मजदूरों की भागीदारी 35 फीसदी थी, वह 2017-18 में बढ़कर 46.60 फीसदी तक पहुंच गई. इसी तरीके से, 2015 में जहां 3,361 महिलाओं के नाम से राशन वितरण केंद्र आवंटित थे, वह संख्या 2018 में बढ़कर 3,640 तक पहुंच गई.
इसी आर्थिक सर्वे के मुताबिक, राज्य के रोजगार में महिलाओं की हिस्सेदारी जहां 2015 में 40.8 फीसदी थी, वह 2017-18 में बढ़कर 46.6 फीसदी तक पहुंच गई. राज्य में महिला साक्षरता दर की बात करें तो 2006 में जहां यह 37 फीसदी थी, वह 2016 में यह बढ़कर 50 फीसदी के करीब पहुंच गई. हालांकि राष्ट्रीय आंकड़े यानि 68 फीसदी से अब भी यह काफी कम है. लेकिन मुख्यमंत्री की ओर से घोषित बालिका साइकिल योजना हो, यो पोशाक योजना या फिर स्कूलों में बालिकाओं के लिए सेनेटरी नैपकिन के वितरण की योजना हो, सभी को महिलाओं से तारीफ जरूर मिली. राज्य में स्कूलों से ड्राप आउट होने वाले बच्चों की संख्या में काफी कमी भी दर्ज की गई है. इससे पहले शिक्षकों की नियुक्ति में 50 फीसदी महिलाओं का आरक्षण और फिर पंचायती व्यवस्था में महिलाओं के लिए 50 फीसदी सीटों के आरक्षण भी इस दिशा में अहम रहे.
देखें: आजतक LIVE TV
शराबबंदी के फैसले का क्या असर?
इस चुनाव में शराबबंदी का फैसला भी एक राजनीतिक मुद्दा बना, जिस पर चर्चा भी खूब हुई. आरजेडी, कांग्रेस हो या एलजेपी सभी सभी ने इस मुद्दे को उठाया और आरोप यह लगाया कि शराबबंदी के फैसले से दो नुकसान हुए, एक तो राज्य का राजस्व गया, दूसरे शराबबंदी के बावजूद पड़ोसी राज्यों से तस्करी बढ़ी और इसका फायदा भी पड़ोसी राज्यों को मिला. दरअसल, आंकड़ों के देखें तो 2015-16 में बिहार को एक्साइज से होने वाली आय लगभग 3,141 करोड़ की थी. अगर 2013 से 2015-16 के आंकड़ों को देखा जाए तो बिहार के कुल राजस्व में एक्साइज से होने वाली आमदनी की हिस्सेदारी लगभग 14 फीसदी थी, जिसका सीधा नुकसान राज्य सरकार को हुआ लेकिन कुछ हद तक इसका राजनीतिक लाभ नीतीश कुमार को भी मिला, इसमें दो राय नहीं.
शराबबंदी को लेकर हमलावर विपक्ष के जवाब में नीतीश कुमार यही सफाई देते दिखे कि शराब माफिया उन्हें हटाने को लेकर अभियान चला रहे हैं और उन्हें राजनीतिक संरक्षण मिल रहा है. लेकिन मुख्यमंत्री का ये फैसला महिलाओं के हित में था, जो शराब के कारण घरेलू हिंसा की सबसे ज्यादा शिकार थीं. आज बिहार के गांवों में भी महिलाएं इस फैसले के लिए खुश हैं. बहरहाल, तमाम कवायदों व कयासों के बीच 10 नवंबर का परिणाम इस बात पर काफी निर्भर करता है कि राज्य की आधी आबादी ने अपनी राय किस पक्ष में दी.
ये भी पढ़ें