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Saran: खुद को 'माननीय' बोलकर फंस गए बीजेपी विधायक, कांग्रेस ने साधा निशाना

तरैया से भाजपा के उम्मीदवार और पूर्व विधायक जनक सिंह ने मीडिया के सामने खुद को 'माननीय' कह दिया. अब उनके ये शब्द इलाके में चर्चा का विषय बने हुए हैं. खुद को 'माननीय' कहने पर सारण जिला के कांग्रेस पार्टी के जिलाध्यक्ष कामेश्वर सिंह उर्फ विद्वान ने कहा कि विधायक जनता का सेवक होता है. अगर वह खुद को माननीय या ऑफिसर के रूप में कहता है, चाहे कोई सरकारी अधिकारी भी अपने को माननीय माने तो उसका जनता का सेवक रहने का क्या अधिकार है.

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खुद को 'माननीय' बोलकर फंस गए बीजेपी विधायक
खुद को 'माननीय' बोलकर फंस गए बीजेपी विधायक
स्टोरी हाइलाइट्स
  • भाजपा के उम्मीदवार जनक सिंह ने मीडिया के सामने खुद को 'माननीय' कह दिया
  • 2005 में तरैया विधानसभा क्षेत्र से एलजेपी से जीते
  • कांग्रेस पार्टी के जिलाध्यक्ष कामेश्वर सिंह उर्फ विद्वान ने साधा निशाना

टिकट बंटवारे को लेकर चली लंबी खींचतान के बाद तरैया सीट बीजेपी को मिली. बीजेपी से जनक सिंह की उम्मीदवारी तय होने पर बुधवार को वो मढ़ौरा के गढ़ देवी मंदिर पहुंचे. मंदिर में अपने समर्थकों के साथ पूजा कर देवी मां से जीत का आशीर्वाद मांगा. इस दौरान तरैया से भाजपा के उम्मीदवार और पूर्व विधायक जनक सिंह ने मीडिया के सामने खुद को 'माननीय' कह दिया. अब उनके ये शब्द इलाके में चर्चा का विषय बने हुए हैं.

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खुद को 'माननीय' कहने पर सारण जिला के कांग्रेस पार्टी के जिलाध्यक्ष कामेश्वर सिंह उर्फ विद्वान ने कहा कि विधायक जनता का सेवक होता है. अगर वह खुद को माननीय या ऑफिसर के रूप में कहता है, चाहे कोई सरकारी अधिकारी भी अपने को माननीय माने तो उसका जनता का सेवक रहने का क्या अधिकार है. इस समय जो राजनीति चल रही है, उसमें जो भो नए लोग विधायक या सांसद बनते हैं अपने को बड़ा अधिकारी समझने लगते हैं. लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए. जनता की सेवा करने के लिए विधायक या MP होता है.

जनक सिंह फरवरी 2005 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में इसी तरैया विधानसभा क्षेत्र से रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी से जीते थे. एनडीए गठबंधन और आरजेडी गठबंधन में किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने पर सत्ता की चाभी एलजेपी के पास आ गई थी. लेकिन एलजेपी द्वारा मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की शर्त पर समर्थन देने की बात पर एलजेपी ने किसी को भी समर्थन नहीं दिया जिसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया था. उस समय एलजेपी के 29 विधायक चुने गए थे. जेडीयू को 55, बीजेपी को 37 और आरजेडी को 75 सीट मिली थीं.

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उसके बाद फिर अक्टूबर 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में जेडीयू को 88, बीजेपी को 55, आरजेडी को 54 और एलजेपी को मात्र 10 सीटों पर सिमटना पड़ा था. फरवरी 2005 में हुए चुनाव में किसी भी विजयी विधायक ने शपथ नहीं ली थी. इसलिए उन लोगों को अभूतपूर्व विधायक की भी संज्ञा दी जा रही थी.

2005 में हुए विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में बनी सरकार ने ऐसे अभूतपूर्व विधायकों के लिए नियमो में संशोधन करते हुए बिना शपथ लिए विधायकों को दी जाने वाली सारी सुविधाओं की व्यवस्था मिलने का प्रावधान कर दिया. इसके पहले किसी भी विधायक को सुविधाओं के लिए विधानसभा में शपथ लेने की अनिवार्यता थी.

2005 के फरवरी में हुए चुनाव के बाद एलजेपी के टिकट पर जीते जनक सिंह का झुकाव सरकार बनाने के पक्ष में था, लेकिन दल बदल कानून के कारण सदस्यता खतरे में पड़ने के कारण वे ऐसा नहीं कर पाए. लेकिन जब अक्टूबर 2005 में बिहार विधानसभा का चुनाव इन्होंने पार्टी बदलकर भाजपा में शामिल होकर लड़ा और जीत लिया. 2010 के चुनाव में ये आरजेडी के रामदास राय से हार गए. फिर 2015 के चुनाव में स्व. रामदास राय के छोटे भाई मुंद्रिका राय के हाथों हार गए.

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जनक सिंह ने कहा कि मेरे द्वारा मेरे कार्यकाल में क्षेत्र के तीन स्थानों को पर्यटक स्थल के रूप में घोषित करवाया गया, लेकिन वर्तमान विधायक ने उसमें कोई रुचि नहीं ली. क्षेत्र के विकास के लिए प्रधानमंत्री की आत्मनिर्भर भारत और आत्मनिर्भर बिहार के लिए फंड की व्यवस्था की गई है. युवाओं को सोचना चाहिए, उनको इस दिशा में कार्य करना चाहिए. देश और राज्य और क्षेत्र के विकास के लिए युवाओं को भारत माता की जय बोलकर क्या करना है यह सोचना चाहिए.

मढौरा की चीनी मिल से मेरे क्षेत्र के 75 प्रतिशत और मढौरा के 25 प्रतिशत किसान लाभान्वित होते थे. इसको फिर से शुरू करवाने का प्रयास किया जाएगा. इन्होंने एक बार भी अपने चुनाव क्षेत्र तरैया में किसी भी उद्योग धंधे के लगाने की बात नहीं की, जिससे युवाओं को रोजगार मिले. न ही कोई विजन बताया कि क्षेत्र में किस तरह विकास का खाका खींच कर तरक्की की राह पर ले जाया जाएगा. न ही बाढ़ से बचाव पर ही कोई बात कही. किसानों के फसलों की बर्बादी कैसे रुके इसपर भी कोई चर्चा नहीं की.

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