जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य कन्हैया कुमार अपनी वाकपटुता के लिए जाने जाते हैं. उन पर अक्सर ही ये आरोप लगता है कि परिवारवाद की खिलाफत करने वाले कन्हैया बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव के बेटे और मौजूदा समय में राष्ट्रीय जनता दल की बागडोर संभालने वाले युवा नेता तेजस्वी यादव के खिलाफ सीधी टिप्पणी से बचते हैं. जब भी उनसे तेजस्वी यादव के बारे में पूछा जाता है, वह गोलमटोल जवाब ही देते हैं. लल्लनटॉप को हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में तेजस्वी से जुड़े प्रश्न पर कन्हैया एक बार फिर अपने पूर्व चिरपरिचित अंदाज में दिखे.
जय शाह पर थे हमलावर
इंटरव्यू में कन्हैया कुमार कई बार केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बेटे एवं बीसीसीआई के सेक्रेटरी जय शाह पर खासे हमलावर दिखे. इंटरव्यू में जय शाह की चर्चा अपरोक्ष रूप से परिवारवाद और सिस्टम की कमियों के दौरान आई. बकौल कन्हैया यदि सिस्टम अपने बाप का हो तो जय शाह भी बीसीसीआई के सेक्रेटरी बन सकते हैं. मैच के दौरान मैं उन्हें टांग पर टांग चढ़ाये बैठे देखता हूं. यदि सिस्टम अपना है तो इंसान टांग पर टांग ही क्या, सिर पर टांग चढ़ाकर बैठ सकता है. ऐसा व्यक्ति कहीं भी टांग चढ़ा कर बैठ सकता है.
तेजस्वी पर घुमाने लगे बात
इंटरव्यू में इसी चर्चा के दौरान जब कन्हैया से तेजस्वी यादव के बारे में पूछा गया तो वह बातों को घुमाने लगे. बिहार विधानसभा चुनाव के लिए महागठबंधन की तरफ से तेजस्वी को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रस्तुत किये जाने पर भी उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की. बार-बार सवालों के घेरे में पड़ने पर कन्हैया ने अपनी पार्टी यानी माकपा के बारे में कहा कि हमारे लिए पार्टी या व्यक्ति मायने नहीं रखता. हम महागठबंधन में कॉमन मिनिमम एजेंडा पर साथ होंगे. इंटरव्यू में जब कन्हैया से नेता प्रतिपक्ष के तौर पर तेजस्वी की भूमिका पर उनकी राय पूछी गई तब भी उन्होंने सवाल का सीधा जवाब देने की बजाय बातों के चक्रव्यूह में अपना जवाब बखूबी छुपा लिया.
कोई भी नेता बड़ा या छोटा नहीं
जय शाह और तेजस्वी यादव के लिए कन्हैया कुमार के विरोधाभासी रूख के बीच कन्हैया ने नेता की परिभाष गढ़ने की कोशिश भी की. अपने एक बयान से उन्होंने बिना जय शाह और तेजस्वी का नाम लिये अंतर दर्शाने का प्रयास भी किया. कन्हैया ने कहा कि कोई भी नेता बड़ा या छोटा नहीं होता. नेता का बड़ा या छोटा होना इस बात पर निर्भर करता है कि जब समाज को जरूरत थी जब वह समाज के लिए उपलब्ध था या नहीं. उन्होंने लालू यादव का उदाहरण दिया कि कैसे वो आंदोलनों में शामिल होकर आगे बढ़ते हुए लोकप्रिय नेता बने.