बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार अपनी सत्ता को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. वहीं, लालू यादव की राजनीतिक विरासत संभाल रहे तेजस्वी यादव सत्ता में वापसी के लिए हरसंभव कोशिशों में जुटे हैं. ओपिनियन पोल के मुताबिक नीतीश कुमार को तेजस्वी यादव से कड़ी चुनौती मिलती नजर आ रही है. मुख्यमंत्री के तौर पर दोनों नेताओं की लोकप्रियता में भी महज चार फीसदी का अंतर है. ऐसे में सवाल उठता है कि तेजस्वी के राजनीतिक उभार के पीछे आखिर वजह क्या है?
नीतीश के लिए तेजस्वी बने चुनौती?
लोकनीति और सीएसडीएस के ओपिनियन पोल के मुताबिक बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर 31 फीसदी लोग नीतीश कुमार को देखना चाहते हैं जबकि 27 फीसदी लोग आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को सत्ता की कमान सौंपना चाहते हैं. इस तरह से नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच लोकप्रियता के मामले में अंतर काफी कम है. तेजस्वी यादव अभी पांच साल पहले ही सियासत में आए हैं और लोकप्रियता के मामले में जिस तरह से नीतीश कुमार के लिए चुनौती बनकर उभरे हैं, इसके सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं.
नीतीश कुमार की पॉपुलरिटी का ग्राफ पिछले चुनाव की तुलना में काफी गिरा है जबकि तेजस्वी की लोकप्रियता काफी तेजी से बढ़ी है. बिहार के लिए बेहतर सीएम कौन होगा, इस सवाल पर राय में तेजस्वी पीछे नहीं हैं. मुख्यमंत्री के लिए पहली पंसद भले नीतीश कुमार ही हों, लेकिन तेजस्वी यादव में भी लोगों की संभावनाएं बनी हुई है. नीतीश के लिए तेजस्वी एक बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं. तेजस्वी के सियासी उभार के पीछे क्या लोगों की संवेदना है या फिर नीतीश कुमार के प्रति एंटी इनकंबेंसी का माहौल नजर आ रहा है?
नीतीश 15 साल से सत्ता पर काबिज
दरअसल, नीतीश कुमार पिछले 15 सालों से बिहार की सत्ता पर काबिज हैं. अक्टूबर 2005 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी ताजपोशी हुई थी. इसके बाद बीच में 8 महीने के लिए जीतनराम मांझी के कार्यकाल को निकाल दें तो नीतीश लगातार सत्ता में बने हुए हैं. ऐसे में नीतीश के खिलाफ सत्ताविरोधी लहर की बात कही जा रही है, क्योंकि मुख्यमंत्री के तौर उनकी जो लोकप्रियता 2010 और 2015 के चुनाव में थी, इस बार उसमें कमी देखने को मिल रही है. ऐसे में क्या नीतीश के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का फायदा तेजस्वी यादव को मिल रहा है.
तेजस्वी के लोकलुभावने वादे
तेजस्वी यादव के सियासी ग्राफ बढ़ने की दूसरी वजह क्या लोंगो की संवेदनाएं उनके साथ हैं. तेजस्वी अपने पिता लालू यादव की राजनीति से अलग अपनी सियासी लकीर खींच रहे हैं. लालू के सामाजिक न्याय को पीछे छोड़कर विकास के एजेंडे पर वोट मांग रहे हैं. तेजस्वी यादव पहले ही अपने माता-पिता के दौर के शासन के लिए माफी मांग चुके हैं और आरजेडी को एम-वाई समीकरण से निकालकर ए-टू-जेड की पार्टी बनाने का दावा कर रहे हैं.
बिहार के 10 लाख युवाओं को रोजगार देने और नियोजित शिक्षकों को समान वेतन देने का वादा तेजस्वी यादव अपनी हर रैली में कर रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या तेजस्वी के लोकलुभावने बातों को लोग तवज्जो दे रहे हैं, जिसके चलते उनका राजनीतिक ग्राफ बढ़ा है. सीएम के तौर पर 27 फीसदी लोग तेजस्वी पर भरोसा जता रहे हैं. ओपीनियन पोल के ये संकेत नीतीश कुमार के लिए बहुत बड़ी चुनौती की तरह है.
लोकनीति-सीएसडीएस का ओपिनियन पोल
लोकनीति-सीएसडीएस के ओपिनियन पोल में 37 विधानसभा सीटों के 148 बूथों को कवर किया गया जिनमें से 3731 लोगों से बात की गई. ये ओपिनियन पोल 10 से 17 अक्टूबर के बीच किया गया. इनमें 60 फीसदी पुरुष और 40 फीसदी महिला मतदाताओं से बात की गई.
पृष्ठभूमि की बात करें तो 90 फीसदी सैंपल ग्रामीण इलाकों से और 10 फीसदी शहरी इलाकों के लोगों से बात की गई. इनमें हर आयुवर्ग के लोग शामिल थे. 18 से 25 साल तक के 14 फीसदी, 26 से 35 साल के 29 फीसदी, 36 से 45 साल के 15 फीसदी, 46 से 55 साल के 15 फीसदी और 56 साल के अधिक के 17 फीसदी लोग शामिल थे. इस सैंपल में 16 फीसदी सवर्ण, 51 फीसदी ओबीसी, 18 फीसदी एससी और 14 फीसदी मुस्लिम शामिल रहे.