बिहार के महनार विधानसभा सीट पर इस विधानसभा चुनाव में आरजेडी और एनडीए उम्मीदवार के बीच घमासान देखने को मिल सकता है. हालांकि, टिकट को लेकर एनडीए में भी उथल-पुथल है. दरअसल, पिछले चुनाव में इस सीट से बीजेपी और जेडीयू नेता आमने-सामने थे, जिसमें जेडीयू को जीत हासिल हुई थी. इस बार के चुनाव में एनडीए के सामने यह चुनौती होगी कि दोनों पार्टी के नेताओं को खुश रखते हुए कैसे टिकट वितरण किया जाए.
बिहार में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो गई है, तीन चरणों में हुए चुनावों में इस बार कुल 59.94 फीसदी वोटिंग हुई है. अब 10 नवंबर को नतीजों का इंतजार है. बिहार की महनार विधानसभा सीट पर इस बार 3 नवंबर को वोट डाले गए, यहां कुल 54.43% मतदान हुआ.
इस बार के मुख्य उम्मीदवार
राजनीतिक पृष्ठभूमि
महनार विधानसभा सीट पर एनडीए का दबदबा माना जाता है. साल 2008 के परिसीमन के बाद दोबारा अस्तित्व में आई महनार सीट पर चुनाव महागठबंधन के टूट जाने से और रोचक हो गया है. इससे पहले यहां सिर्फ एक बार 1957 में विधानसभा चुनाव हुए थे जिसमें कांग्रेस उम्मीदवार बनारसी देवी ने जीत हासिल की थी.
इसके बाद 2010 में यहां विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी उम्मीदवार डॉक्टर अच्युतानंद ने बाजी मार ली. उन्होंने लोजपा के रामा किशोर सिंह को हराया. हालांकि अगले ही चुनाव यानी 2015 में बीजेपी उम्मीदवार रहे अच्युतानंद को जेडीयू के हाथों मुंह की खानी पड़ी.
समाजिक ताना-बाना
महनार विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र बिहार के वैशाली जिले में स्थित है और हाजीपुर (एससी) लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है. 2011 की जनगणना के अनुमान के अनुसार यहां करीब 406768 आबादी है, इसमें 88.13 फीसदी ग्रामीण लोग हैं और 11.87% फीसदी शहरी लोग हैं. इस विधानसभा क्षेत्र में अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग के लोगों की आबादी 21.54 फीसदी है.
2015 का जनादेश
2015 के विधानसभा चुनावों में महनार सीट से जेडीयू के उमेश सिंह कुशवाहा ने जीत हासिल की थी. उन्होंने बीजेपी के अच्युतानंद को 27 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया था. इस चुनाव में उमेश सिंह कुशवाहा को 69825 वोट मिले थे, जबकि अच्युतानंद के पाले में सिर्फ 43370 वोट ही गिरे थे.
विधायक का रिपोर्ट कार्ड
बताया जाता है कि लॉकडाउन के दौरान कुशवाहा अपने क्षेत्र में काफी एक्टिव रहे थे. हालांकि, सितंबर के महीने में जन संपर्क के दौरान उन्हें जगदीशो गांव के लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ा था. गांव के लोगों का कहना था कि पूरे 5 साल में एक बार भी वो गांव में झांकने तक नहीं आए और अब वोट मांगने का टाइम है तो दर्शन दे रहे हैं. इसके बाद विधायक के कार्यकर्ताओं और गांववालों के बीच मारपीट तक की नौबत आ गई थी.