बिहार विधानसभ चुनाव में सभी पार्टी अपना-अपना जोर लगा रही हैं. चुनाव जीतने के लिए नेता तरह-तरह के भाषण और नारे लगाकर जनता को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. चुनाव तो खत्म हो जाता है, लेकिन ये नारे और भाषण यादगार बन जाते हैं. जिनका जिक्र अगर दोबारा हो तो जनता को यह पहचानने में ज्यादा समय नहीं लगेगा कि भाषण किसका है.
बात लालू यादव की करें तो वह भले ही इस बार चुनाव मैदान में नहीं हैं, लेकिन उनके चुनाव प्रचार का अंदाज सबसे अलग रहा. जिसकी चर्चा आज भी होती है. महागठबंधन के लिए पिछली बार जब चुनाव प्रचार चल रहा था तो वह कहते थे 'बचवा सब ठगा गया. कहता था मम्मी अच्छे दिन, पंद्रह लाख.' पीएम मोदी ने जिस अंदाज में बिहार के लिए पैकेज की घोषणा की थी. लालू यादव ने उसी अंदाज में प्याज की कीमत भी तय कर दी थी. भाइयों एवं बहनों 40 रुपए किलो कर दूं, 60 रुपए किलो कर दूं, लो 80 रुपए किलो कर दिया.
नीतीश कुमार का भाषण
देश की हर थाली में बिहार का एक व्यंजन हो, नीतीश कुमार के भाषण में इस तरह की लाइनें खूब कही जाती थीं. नीतीश कुमार जब कहते कि 'हम ऐसा काम करेंगे कि बिहारी कहलाना अपमान नहीं सम्मान का विषय होगा' तो लोग समझ जाते अब उनका भाषण खत्म होने वाला है.
रामविलास पासवान का भाषण
रामविलास पासवान के भाषण में भी कुछ ऐसी बातें होती थीं जिसे वह लगभग सभी संबोधन में कहा करते थे. 'हम इस घर में दिया जलाने चले हैं, जहां सदियों से अंधेरा है'. 'उस बाग का माली अच्छा होता है, जिसमें सभी तरह के फूल खले'.
एक समय संसद में रामविलास पासवान ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के नारे को बड़े विस्तार से सुनाया था. जो काफी फेमस हुआ. 'बिहार में संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़ा पावे सौ में साठ, जीना है तो मरना सीखो, कदम-कदम पर लड़ना सीखो, बिरला हो या गरीब का बेटा सब की शिक्षा एक समान.'