बिहार की राजनीति में बाहुबलियों का जिक्र हो और उमसें मोहम्मद शहाबुद्दीन का नाम ना आए ये मुमकिन नहीं है. शहाबुद्दीन वो नाम है जिसे लालू-राबड़ी शासनकाल के जंगलराज का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है. वहीं, एनडीए की बात करें तो आरजेडी को बैकफुट पर लाने के लिए वह शहाबुद्दीन के अपराध को भुनाती रही है.
बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही तिहाड़ जेल में बंद शहाबुद्दीन फिर सुर्खियों में हैं. बहरहाल ऐसे में शहाबुद्दीन और उनके आपराधिक कृत्यों पर एक नजर डालना जरूरी है.
कौन है शहाबुद्दीन?
मोहम्मद शहाबुद्दीन सीवान से दो बार विधायक और 4 बार सांसद रहे हैं. राजनीति शास्त्र से एमए और पीएचडी की पढ़ाई करने वाले शहाबुद्दीन के अपराध जगत और राजनीति में कदम रखने की कहानी कॉलेज के दिनों में ही शुरू हो गई थी.
वो अस्सी का दशक था जब शहाबुद्दीन का नाम पहली बार एक आपराधिक मामले में सामने आया. 1986 में उनके खिलाफ पहला आपराधिक मुकदमा दर्ज हुआ था और देखते ही देखते कई आपराधिक मामलों में उनका नाम जुड़ता चला गया.
लालू के सबसे करीबी
1990 में लालू यादव की लीडरशिप में जनता दल के युवा मोर्चा में शहाबुद्दीन की एंट्री हुई. इसके बाद वे लालू यादव के करीब आते गए. मुसलमान वोटरों पर प्रभाव की वजह से लालू यादव उन्हें खास तवज्जो देते थे.
यही सबसे बड़ा फैक्टर था कि सीवान जिले के जिरादेई विधानसभा से वह पहली बार विधानसभा पहुंचे. तब वह सबसे कम उम्र के विधायक बने थे. जनता दल के टिकट पर दोबारा उसी सीट से उन्होंने 1995 के चुनाव में जीत दर्ज की. 1996 में वह पहली बार सीवान से लोकसभा के लिए चुने गए.
1997 में राष्ट्रीय जनता दल के गठन और लालू प्रसाद यादव की सरकार होने की वजह से शहाबुद्दीन की ताकत बढ़ती गई और अपराधों की फेहरिस्त भी लंबी होती गई जिस वजह से उन्हें बिहार के बाहुबली सांसद के नाम से पहचाना जाने लगा.
शहाबुद्दीन की 'सरकार'
लालू यादव के शासनकाल में शहाबुद्दीन एक समानांतर सरकार चला रहे थे. उनकी एक अपनी अदालत थी, जहां लोगों के फैसले हुआ करते थे. वह खुद सीवान की जनता के पारिवारिक से लेकर भूमि विवादों का निपटारा करते थे. जिले के स्कूल, कॉलेज का निर्माण से लेकर डॉक्टरों की फीस पर नकेल समेत शहाबुद्दीन के कई ऐसे फैसले थे जिस वजह से वो पूरे इलाके में बाहुबलि वाली छवि के बाद भी लोकप्रिय हुए.
जेल से लड़ा चुनाव, अस्पताल में लगाया था दरबार
1999 में एक सीपीआई (एमएल) कार्यकर्ता के अपहरण और संदिग्ध हत्या के मामले में शहाबुद्दीन को 2004 के लोकसभा चुनाव से आठ महीने पहले गिरफ्तार कर लिया गया था. लेकिन चुनाव आते ही शहाबुद्दीन ने मेडिकल के आधार पर अस्पताल में शिफ्ट होने का इंतजाम कर लिया. अस्पताल से ही 2004 के लोकसभा चुनाव प्रचार की रणनीति बनाई जाती थी और वहीं कार्यकर्ताओं को चुनाव प्रचार के लिए आदेश दिए जाते थे.
ऐसे हालात को देखकर पटना हाई कोर्ट ने ठीक चुनाव से कुछ दिन पहले शहाबुद्दीन को वापस जेल में भेजने का आदेश दे दिया. हालांकि इसके बावजूद चुनाव में शहाबुद्दीन को जीत मिली थी. हालांकि, 2009 के लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने शहाबुद्दीन को अयोग्य करार दे दिया. इसी के बाद शहाबुद्दीन की पत्नी हीना ने राजनीति में दस्तक दी लेकिन उन्हें लोगों ने स्वीकार नहीं किया और अब तो वो हार की हैट्रिक लगा चुकी हैं.
कितनी है संपत्ति
बतौर सांसद शहाबुद्दीन ने 2004 में चुनाव आयोग को अपनी संपत्ति 34 लाख रुपये बताई थी. वहीं देनदारी की बात करें तो 4 लाख रुपये के करीब थी. वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में शहाबुद्दीन की पत्नी हीना शहाब ने परिवार की संपत्ति 13 करोड़ रुपये बताई जबकि देनदारियां 10 लाख रुपये रहीं.
अपराध की दुनिया का बादशाह
अपराध की दुनिया में शहाबुद्दीन के ऊपर एक वक्त में चोरी, अपहरण, रंगदारी, हत्या, हत्या की साजिश समेत 40 से ज्यादा मामले दर्ज थे. इनमें कुछ छोटे मामलों में शहाबुद्दीन को राहत मिली है लेकिन कई संगीन मामले हैं, जिसमें या तो सजा सुनाई जा चुकी है या फिर ट्रायल चल रहा है.
सीवान के चर्चित आपराधिक कृत्यों में से एक चंदा बाबू के बेटों को तेजाब से नहला देने वाले मामलों में शहाबुद्दीन को आजीवन करावास की सजा सुनाई जा चुकी है. वहीं पत्रकार राजेदव रंजन हत्याकांड में भी उन पर कई गंभीर आरोप हैं जिसकी जांच सीबीआई कर रही है.
घर से मिला था विदेशी हथियारों का जखीरा
2005 में सीवान के प्रतापपुर में एक पुलिस छापे के दौरान शहाबुद्दीन के पैतृक घर से कई अवैध आधुनिक हथियार, सेना के नाइट विजन डिवाइस और पाकिस्तानी शस्त्र फैक्ट्रियों में बने हथियार बरामद हुए थे. इस मामले में भी शहाबुद्दीन की गिरफ्तारी हुई थी.
शहाबुद्दीन को किस मामले में कितनी सजा
शहाबुद्दीन को कई मामलों में या तो सजा मिल चुकी है या फिर ट्रायल जारी है. चर्चित तेजाबकांड में (दो भाईयों की हत्या) उम्रकैद, छोटेलाल अपहरण कांड में उम्रकैद, एसपी सिंघल पर गोली चलाने के मामले में 10 वर्ष की सजा, आर्म्स एक्ट के मामले में 10 वर्ष जेल, जीरादेई थानेदार को धमकाने के मामले में 1 साल की सजा, माले कार्यालय पर गोली चलाने के मामले में 2 साल की सजा उन्हें मिल चुकी है.
नीतीश को बताया था परिस्थितियों का सीएम
साल 2016 में शहाबुद्दीन को जमानत पर जेल से बाहर निकलने का मौका मिला लेकिन बाहर निकलते ही उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर जुबानी हमला बोल दिया. शहाबुद्दीन ने मीडिया से बातचीत के दौरान नीतीश कुमार को परिस्थितियों का मुख्यमंत्री बता दिया. दरअसल, तब बिहार में आरजेडी और जेडीयू गठबंधन की सरकार थी. लालू यादव के समर्थन से नीतीश कुमार सत्ता में थे.
यही वजह है कि शहाबुद्दीन का ये बयान काफी सुर्खियों में रहा. हालांकि, शहाबुद्दीन के जेल से बाहर आने को लेकर बिहार में जमकर बवाल मचा. इसका नतीजा ये हुआ कि जमानत रद्द कर दी गई और उन्हें दिल्ली के तिहाड़ जेल शिफ्ट कर दिया गया. शहाबुद्दीन तब से वहीं बंद हैं.
विधानसभा चुनाव में शहाबुद्दीन फैक्टर
सीवान जिले में विधानसभा की कुल 8 विधानसभा सीटें हैं, इनमें से 5 ऐसी सीटें हैं जिन पर शहाबुद्दीन असर माना जाता है. ये 5 सीटें-सीवान सदर, जीरादेई, रघुनाथपुर, बड़हरिया और दरौंदा हैं. खासतौर पर सीवान, बड़हरिया और रघुनाथपुर की ऐसी सीटें हैं, जहां की सियासत पूरी तरह शहाबुद्दीन के नाम पर टिकी हुई है.
अगर सीवान सदर विधानसभा की बात करें तो यहां चुनाव में व्यवसायी और मुस्लिम वोटर काफी अहम भूमिका निभाते हैं. व्यवसायियों का झुकाव बीजेपी की तरफ होता है तो वहीं मुस्लिम वर्ग का वोट एकमुश्त बीजेपी के खिलाफ जाता रहा है.
बीते 15 सालों से सीवान सदर सीट से बीजेपी के व्याासदेव प्रसाद विधायक हैं. रघुनाथपुर विधानसभा सीट पर भी शहाबुद्दीन फैक्टर काम करता है. आप इस सीट पर शहाबुद्दीन के प्रभाव का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि 2015 विधानसभा चुनाव में भी उनके पसंदीदा उम्मीदवार हरिशंकर यादव को टिकट दिया गया था.
साल 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू और लालू यादव की आरजेडी गठबंधन एक साथ चुनाव लड़ रही थी. इस माहौल में भी शहाबुद्दीन के फेवरेट को सीट मिलना काफी अहम था. अब बड़हरिया की बात करें तो इस सीट पर मुस्लिम वोटर्स की संख्या ज्यादा है और यही वजह है कि यहां शहाबुद्दीन के नाम का प्रभाव है.
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