बिहार में सियासी पारा चरम पर है. सूबे के सहरसा जिले की बात करें तो चार विधानसभा सीटों वाले इस जिले में तीसरे चरण के तहत 7 नवंबर को मतदान होना है. 1 अप्रैल 1954 को मुंगेर और भागलपुर जिले से अलग कर सहरसा जिला बनाया गया था. सहरसा जिला कोसी प्रमंडल एवं जिला का मुख्यालय शहर है.
बाढ़ इस जिले में हर साल बड़ी तबाही लाता है. यहां हर साल पानी से लाखों लोगों का जीवन प्रभावित हो जाता है. हर साल बाढ़ की विभीषिका झेलने वाले इस जिले में अक्सर नाव दुर्घटनाएं होती हैं, जिसमें कई लोगों की मौत हो जाती है. साल 2008 में कोसी बांध टूटने से यहां बड़ी तबाही हुई थी. हर चुनाव में यहां के मतदाताओं को बाढ़ से निजात दिलाने का भरोसा दिया जाता है, लेकिन चुनाव खत्म होते ही भरोसा भी बांध की तरह ही टूट जाता है.
सामाजिक ताना-बाना
1687 वर्ग किमी. में बसे सहरसा जिले की कुल आबादी 19 लाख 661 है. जिले की साक्षरता दर 53.20 फीसदी है. इसके उत्तर में मधुबनी और सुपौल, दक्षिण में खगड़िया, पूर्व में मधेपुरा एवं पश्विम में दरभंगा और समस्तीपुर जिला हैं. सहरसा जिला ईंट बनाने के मामले में अव्वल है. ईंट निर्माण सहरसा का एक प्रमुख उद्योग है. मकई उत्पाद के अलावा जूट, साबुन, चॉकलेट, बिस्किट और पेपर प्रिंटिंग उद्योग भी जिले की अर्थव्यवस्था में अहम है. सहरसा जिले में 2 अनुमंडर और 10 प्रखंड हैं.
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2015 का जनादेश
जिले में कुल 4 विधानसभा सीटें हैं. जिले की सहरसा विधानसभा सीट पर आरजेडी के अरुण कुमार ने जीत दर्ज की थी. उन्होंने 2015 में बीजेपी प्रत्याशी आलोक रंजन को 39206 मतों से हराया था. जिले की महिषी विधानसभा सीट पर आरजेडी के कद्दावर नेता अब्दुल गफ्फूर ने जीत दर्ज की थी. गफ्फूर ने एनडीए प्रत्याशी चंदन कुमार को 26135 मतों हराया था. हालांकि अब्दुल गफ्फूर का इसी वर्ष जनवरी में निधन हो गया था. जिले की सिमरी बख्तियारपुर सीट पर जेडीयू के दिनेश चंद्र यादव ने एलजेपी प्रत्याशी को 37806 वोटों के भारी-भरकम अंतर से हराया था. जिले की सोनबरसा सीट की बात करें तो यहां से जेडीयू प्रत्याशी रत्नेश सदा ने एलजेपी प्रत्याशी सरिता को 53763 वोटों के बड़े अंतर से मात दी थी.