
सहरसा जिले के सिमरी बख्तियारपुर विधानसभा सीट से महागठबंधन के घटक दल राष्ट्रीय जनता दल(आरजेडी) के प्रत्याशी युसुफ सलाहुद्दीन ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन(एनडीए) के सहयोगी दल विकासशील इंसान पार्टी(वीआईपी) उम्मीदवार मुकेश साहनी को शिकस्त दी. दोनों प्रत्याशियों के बीच जीत का अंतर महज 1,759 रहा.
युसुफ सलाहुद्दीन को जहां 75,684 वोट मिले, वहीं मुकेश साहनी को 73,925 वोट मिले. तीसरे नंबर पर लोकजनशक्ती पार्टी के संजय कुमार सिंह रहे, जिन्हें 6,962 वोट हासिल हुए. नोटा का विकल्प 1407 लोगों ने चुना. इस सीट से कुल 22 प्रत्याशी चुनावी समर में थे.
मरी बख्तियारपुर सीट पर कांटे की टक्कर देखने को मिली. इस विधानसभा सीट पर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन(एनडीए) की ओर विकासशील इंसान पार्टी के अध्यक्ष और उम्मीदवार मुकेश साहनी ने महागठबंधन को कड़ी टक्कर दी लेकिन हार गए.

कभी जेडीयू का था दबदबा
बख्तियारपुर विधानसभा क्षेत्र में सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) का कभी दबदबा रहा है. हालांकि सीट बंटवारे में यह सीट वीआईपी को मिली. इस विधानसभा सीट पर साल 2005 से ही जेडीयू के उम्मीदवार जीतते रहे हैं. हालांकि, पिछले साल हुए उपचुनाव में जेडीयू उम्मीदवार को लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के जफर इस्लाम से पराजय झेलनी पड़ी थी. इस बार अंतिम चरण में यानी 7 नवंबर को सिमरी बख्तियारपुर के 58.22 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया.
इस चुनाव में इस सीट से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के घटक विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के अध्यक्ष मुकेश सहनी चुनाव लड़े लेकिन हार मिली. एनडीए उपचुनाव में गंवाई अपनी सीट फिर से हासिल करने के लिए पूरा जोर लगाई लेकिन कामयाबी नहीं मिली.
सिमरी बख्तियारपुर विधानसभा क्षेत्र के चुनावी अतीत की बात करें तो साल 1967 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के चौधरी मोहम्मद सलाहुद्दीन विधायक निर्वाचित हुए थे.
हालांकि, दो साल बाद ही यानी 1969 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यह सीट संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) को गंवा दी. एसएसपी के रामचंद्र प्रसाद कांग्रेस उम्मीदवार को पराजित कर विधानसभा पहुंचने में सफल रहे. 1972 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर विजयश्री पाई. कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे चौधरी मोहम्मद सलाहुद्दीन ने एसएसपी के उम्मीदवार को पराजित कर 1969 में मिली चुनावी हार का बदला चुकता कर दिया.
मोहम्मद सलाहुद्दीन ने 1977, 1980 और 1985 के चुनाव में भी जीत के क्रम को बरकरार रखा. 1990 में जनता दल के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे दिनेश चंद्र यादव ने कांग्रेस के विजय रथ को रोक दिया और चुनावी बाजी जीतकर विधायक निर्वाचित हुए. साल 1995 के चुनाव में महबूब अली कैसर ने सिमरी बख्तियारपुर सीट फिर से कांग्रेस की झोली में डाल दी.
उपचुनाव में जीती थी कांग्रेस
साल 2000 के चुनाव में भी कांग्रेस के महबूब अली कैसर विधायक निर्वाचित हुए. साल 2005 में दो दफे चुनाव हुए और दोनों ही बार जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के दिनेश चंद्र यादव विधायक निर्वाचित हुए. 2009 में इस सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस के महबूब अली कैसर ने बाजी मार ली. हालांकि, कांग्रेस इस सीट को बरकरार नहीं रख पाई और 2010 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू के अरुण कुमार विजयी रहे.
साल 2015 में जेडीय ने इस सीट से फिर अरुण यादव पर ही भरोसा जताया और जनता ने भी उस भरोसे पर मुहर लगा दी. यादव इस सीट पर जेडीयू का कब्जा बरकरार रखने में सफल रहे. 2019 में उपचुनाव हुए और इस बार आरजेडी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे जफर आलम विजयी रहे और यह सीट पहली बार लालू प्रसाद की पार्टी जीतने में कामयाब रही.