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''मैं ये दावा के साथ कह सकता हूं कि मेरे अकेले की शिक्षा, जितने संभावित उम्मीदवार हैं उनसे कहीं ज्यादा है. मैं यहां पैसा कमाने नहीं आया हूं. किसी भी विधायक या सांसद की जितनी सैलरी होगी, उससे ज्यादा मेरी तनख्वाह थी. मैं वो सब छोड़ कर यहां आया हूं. मैं विधायक सत्ता सुख के लिए नहीं बल्कि समाजसेवा के लिए बनना चाहता हूं.'' इन दिनों चुनाव प्रचार के दौरान ये बातें रोहित कुमार अनुराग उर्फ भोला सिंह कह रहे हैं. रोहित कुमार अनुराग, सीवान के दरौंदा विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरने का ऐलान कर चुके हैं. पहले रोहित कुमार अनुराग एयरलाइन कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत थे लेकिन लाखों रुपये की सैलरी वाली नौकरी छोड़कर दरौंदा विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़ने जा रहे हैं.
मजबूत सियासी परिवार के सदस्य
दरौंदा की सियासत में भले ही रोहित कुमार अनुराग नया नाम हो लेकिन उनके भाई जीतेंद्र स्वामी बीजेपी के कद्दावर नेता हैं. तमाम सियासी विवाद और अड़चनों के बाद भी जीतेंद्र स्वामी का इलाके में अपना दबदबा है. वह सीवान एनडीए के बेहद गंभीर नेताओं में जाने जाते हैं. वहीं, रोहित कुमार अनुराग के पिता उमाशंकर सिंह सीवान में समाजवाद के आखिरी बरगद थे. राजनीति में उमाशंकर सिंह का कद इतना बड़ा था कि वह विभिन्न दलों के टिकट पर साल 2005 तक पांच बार विधायक रहे. कहने का मतलब ये है कि उमाशंकर सिंह को जनसमर्थन के लिए पार्टी सिंबल की कोई अहमियत नहीं थी. उन्होंने 2009 के लोकसभा चुनाव में महाराजगंज सीट से जीत हासिल कर इस तथ्य को और मजबूत ही किया.
इस चुनाव में उन्होंने जेडीयू के प्रभुनाथ सिंह को शिकस्त दी थी. हालांकि, बीमारी की वजह से उमाशंकर सिंह का कार्यकाल पूरा करने से पहले ही निधन हो गया. इसके बाद उमाशंकर सिंह के बेटे जीतेंद्र स्वामी ने भी राजनीति में कदम रखा. पिता से सियासत का ककहारा सीखने वाले जीतेंद्र स्वामी ने बेहद कम समय में लोकप्रियता हासिल की. आज किसी पद पर नहीं रहते हुए भी जीतेंद्र स्वामी सीवान एनडीए के कद्दावर नेता माने जाते हैं. बहरहाल, इस बार के चुनाव में जीतेंद्र स्वामी अपने भाई और निर्दलीय उम्मीदवार रोहित कुमार अनुराग का खुलकर समर्थन कर रहे हैं.
अजय सिंह का भी मिल रहा समर्थन
अहम बात ये है कि रोहित कुमार को जेडीयू नेता अजय सिंह का समर्थन भी मिल रहा है. आपको यहां बता दें कि अजय सिंह की पत्नी कविता सिंह दरौंदा से विधायक रह चुकी हैं और वर्तमान में सीवान लोकसभा की सांसद भी हैं. अजय सिंह की मां जगमातो देवी भी लंबे समय तक विधायक रहीं. साल 2011 में जगमातो देवी के निधन के बाद दरौंदा सीट पर उपचुनाव हुआ था. जगमातो देवी का जनाधार इतना मजबूत था कि उपचुनाव में अजय सिंह की नई नवेली पत्नी कविता सिंह को जीत मिल गई.
बीजेपी ने किसे दिया टिकट
दरौंदा विधानसभा सीट से बीजेपी ने करनजीत उर्फ व्यास सिंह को टिकट दिया है. आपको यहां बता दें व्यास सिंह ने बीते साल के उपचुनाव में बीजेपी से बागी रुख अख्तियार किया था. उन्होंने इस सीट पर अजय सिंह को हराकर निर्दलीय जीत हासिल की थी. वहीं विपक्ष की बात करें तो महागठबंधन की ओर से ये सीट माले के खाते में गई है. माले ने अमरनाथ यादव को उम्मीदवार बनाया है. माले को टिकट दिए जाने से स्थानीय स्तर के राजद कार्यकर्ताओं में भी काफी नाराजगी है.
माले के खिलाफ कौन बनेगा कवच?
अतीत में दरौंदा विधानसभा हिंसक झड़प की गवाह रही है. इतिहास को टटोलें तो यहां जाति को लेकर भी कई बार खूनी संघर्ष देखने को मिला है. यही वजह है कि महागठबंधन की ओर से माले को टिकट दिए जाने से लोगों के बीच भय का माहौल है. खासतौर पर सवर्ण समुदाय में यह भय है कि एक बार फिर दरौंदा विधानसभा के क्षेत्र में जातीय लड़ाई का दौर लौट सकता है. बीजेपी नेता जीतेंद्र स्वामी और जेडीयू के अजय सिंह के दबदबे की वजह से स्थानीय स्तर पर लोग ये मानते हैं कि माले के खिलाफ उमाशंकर सिंह का परिवार ही कवच बन सकता है. यही वजह है कि बड़े पैमाने पर लोगों का समर्थन मिल रहा है.
दरौंदा विधानसभा का हाल जान लीजिए
दरौंदा विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो यहां की पूरी आबादी ग्रामीण है. वहीं, कुल जनसंख्या में अनुसूचित जाति (एससी) की आबादी का हिस्सा 11.78 फीसदी है और अनुसूचित जनजाति (एसटी) का अनुपात 3.22 फीसदी है. इस सीट पर 2015 के विधानसभा चुनावों में 52.49% वोटिंग हुई थी. वहीं 2019 के लोकसभा चुनावों में वोटिंग पर्सेंटेज 51.8 फीसदी रहा था.
आपको यहां बता दें कि 2008 में भारत के परिसीमन आयोग के आदेशों के लागू होने के बाद दरौंदा अस्तित्व में आया. इस सीट पर 2010 में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए और जद (यू) की जगमातो देवी को दरौंदा के पहले विधायक होने का सम्मान मिला. उन्होंने 49,115 वोट पाकर जीत हासिल की और राजद के बिनोद कुमार सिंह को 31,135 मतों के अंतर से हराया.