बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एक बार फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनों के निशाने पर हैं. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह साल 2019 में बाढ़ को लेकर नीतीश सरकार पर निशाना साध रहे थे. बाद में बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के समझाने पर गिरिराज के नीतीश पर हमले कम हो गए. इस बार प्रहार एनडीए की घटक लोक जनशक्ति पार्टी यानी एलजेपी की तरफ से है. जीतन राम मांझी के एनडीए में शामिल होने से सवाल खड़ा हो गया है कि गठबंधन में दलितों का बड़ा नेता कौन है? कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार, मांझी के बहाने चिराग पासवान को सीमित रखना चाहते हैं, वहीं चिराग आर-पार की लड़ाई लड़कर अपना धमक बनाए रखना चाहते हैं.
जेडीयू नेता सैयद अफजल अब्बास ने aajtak.in से कहा कि जीतन राम मांझी के आने से चिराग पासवान की बौखलाहट बढ़ गई है. क्योंकि उनके पिता की पैठ सिर्फ पासवान जाति के बीच है. जबकि जीतन राम मांझी दलित समुदाय के नेता हैं. पिछली बार भी लोक जनशक्ति पार्टी बीजेपी के साथ थी, इसके बावजूद उन्हें दो सीटें ही मिल पाई थीं. इससे पहले 2010 के चुनाव में भी उन्हें केवल तीन सीटें ही मिली थीं. चिराग पासवान को कुछ भी बोलने से पहले अपनी राजनीतिक हैसियत जान लेनी चाहिए. क्या बीजेपी चिराग को शह दे रही है? इस सवाल पर उन्होंने कहा कि मैं ऐसा नहीं मानता, ये जरूर है कि चिराग खुद को बिहार की राजनीति में बड़े स्तर पर खड़ा करना चाहते हैं.
चर्चा ये भी है कि बीजेपी चाहती है कि एलजेपी गठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़े. इसी वजह से चिराग जेडीयू के खिलाफ प्रत्याशी उतारने की तैयारी में हैं. एलजेपी अगर जेडीयू की सीट कम करने में कामयाब रही तो गठबंधन में बीजेपी का कद बढ़ जाएगा. अब्बास इस बारे में कहते हैं कि इस तरह की बातें सिर्फ मीडिया में होती हैं. बीजेपी-जेडीयू अपनी इच्छा से एक साथ आए हैं, इसलिए ऐसी बात नहीं हो सकती.
अगर सबकुछ अब्बास के बताए मुताबिक ही है तो सवाल उठता है कि चिराग पासवान जेडीयू पर हमला क्यों कर रहे हैं? जवाब में वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन कहते हैं कि चुनाव से पहले इस तरह की बयानबाजी आम है. यह एक तरह की सियासी मोलभाव का पैंतरा है. चिराग या तो केंद्र में अपनी हैसियत बढ़ाना चाहते हैं या फिर राज्य में. वो भी जानते हैं कि वो अकेले बहुत खास नहीं कर सकते. हां, उनके निकलने से एनडीए गठबंधन को नुकसान हो जाएगा. क्योंकि पासवान जाति में रामविलास पासवान को ही चेहरा माना जाता है.
अरविंद मोहन कहते हैं कि जीतनराम मांझी दलितों के नेता के तौर पर जरूर जाने जाते हैं लेकिन एक सच यह भी है कि उनकी लोकप्रियता काफी कम है. पूर्वी बिहार में अब भी दलित समुदाय के लोग खुद को रामविलास पासवान से ही जोड़ते हैं. बीजेपी यह कतई नहीं चाहेगी कि एलजेपी एनडीए गठबंधन से अलग हो क्योंकि जीत उसी को मिलेगी, जिसके साथ पिछड़े और दलित समाज के लोग होंगे. एलजेपी के साथ रहने से एनडीए को दुसाध मतों का ठोस लाभ होगा. क्योंकि दलितों में यही मजबूत और संगठित जाति है. उनके साथ आने से हर इलाके में उसे 5 फीसदी वोटों तक का फर्क पड़ेगा
बता दें, सोमवार को एलजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान के आवास पर बिहार संसदीय बोर्ड की बैठक हुई. इस बैठक में बिहार संसदीय बोर्ड के सदस्यों के साथ, राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान भी मौजूद थे. बैठक में तय हुआ है कि बोर्ड 143 विधानसभा सीटों के लिए प्रत्याशियों की सूची बनाकर जल्द ही केंद्रीय संसदीय बोर्ड को सौपेंगा. इसके अलावा बैठक में गठबंधन को लेकर भी निर्णय लिया गया है. पार्टी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान को गठबंधन पर फैसला लेने का अधिकार दिया है. यानी कि सीटों के बंटवारे और गठबंधन पर फैसला चिराग पासवान का होगा. जानाकारी के मुताबिक चिराग, एनडीए में रहने को लेकर फैसला 15 सितंबर के बाद करेंगे.