छत्तीसगढ़ में चुनावी बयार है. इसमें रिटायर ज्यूडिशियल अधिकारी से लेकर ब्यूरोक्रेट्स और आध्यात्मिक गुरु तक कूदने के लिए मैदान में आ रहे हैं. हाल ही में तीन नए नामों की खूब चर्चा चल रही है. एक ने जज की नौकरी से इस्तीफा दिया है तो दूसरे जाने-माने आईएएस अधिकारी रहे हैं. तीसरा नाम सतनामी संप्रदाय के आध्यात्मिक गुरु का है. वो एक दिन पहले ही बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. जबकि दो चेहरे भी जल्द राजनीतिक दलों में एंट्री कराएंगे. जानिए कौन हैं, वो तीन नाम...
कैसे प्रोफेसरी से पॉलिटिक्स में आए पूर्व आईएएस नीलकंठ टेकाम?
कांकेर के रहने वाले नीलकंठ टेकाम ने चुनाव के लिए आईएएस की नौकरी छोड़ दी है. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत प्रोफेसर के तौर पर की थी. उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा. नीलकंठ को छात्र जीवन से ही बुनियादी समस्याओं के समाधान के लिए सक्रिय माना जाता रहा है. जन्म कांकेर के अंतागढ़ ब्लॉक में हुआ. शुरुआती अध्ययन के बाद आगे की पढ़ाई के लिए कांकेर जिला मुख्यालय में आए, जहां कॉलेज की पढ़ाई के साथ छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए. कॉलेज के हॉस्टल में रहकर छात्र संघ चुनाव में हिस्सा लिया और अपने कॉलेज का प्रतिनिधित्व किया. 1987-88 में कांकेर महाविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष निर्वाचित हुए. यहीं से ही समाज सेवा को लेकर उनकी यात्रा हुई.
कैसा रहा टेकाम का करियर...
- नीलकंठ टेकाम ने 1989 में समाज शास्त्र से स्नातकोत्तर की. उसके बाद सिर्फ 7 दिन के लिए 1991 में शिक्षक के रूप में चयनित हुए. कुछ दिन बाद अविभाजित मध्य प्रदेश में खंडवा महिला कॉलेज में प्रोफेसरी की. बाद में 1994 में मध्य प्रदेश पीएससी में टॉप सूची में शामिल हुए और बतौर डिप्टी कलेक्टर चयनित होकर बस्तर का नाम गौरवान्वित किया.
- मध्य प्रदेश के धार जिले में एसडीएम रहकर अनुकरणीय कार्य किया. बाद में छत्तीसगढ़ राज्य विभाजन होने पर मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ कैडर मिला और रायपुर पहुंचे. पहली तैनाती जगदलपुर एसडीएम के तौर पर हुई.
- 2008 में आईएएस अवॉर्ड मिला और बस्तर के कोण्डागांव जिले में कलेक्टर बनाए गए. जब कोण्डागांव के कलेक्टर थे तब उनके काम को नीति आयोग ने सराहा था और देश में पहले स्थान पर थे. बतौर कलेक्टर आज भी उनके काम को याद किया जाता है.
- छत्तीसगढ़ के मंत्रालय में कई पदों में अपनी सेवाएं दीं. अब प्रोफेसर से कलेक्टर बनने वाले नीलकंठ टेकाम जल्द ही बीजेपी का दामन थामेंगे. बताते हैं कि उनके वीआरएस के आवेदन पर केंद्र सरकार ने मंजूरी दे दी है. उन्होंने मई 2023 में वीआरएस के लिए आवेदन कर दिया था. वो केशकाल या कोंडागांव सीट से चुनाव लड़ सकते हैं.
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कौन हैं कृष्णकांत भारद्वाज?
कृष्णकांत भारद्वाज न्याय विभाग में पदस्थ रहे. वो कांकेर जिले की कोर्ट में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट रहे हैं. उन्होंने अगस्त महीने के पहले हफ्ते में अपने पद से इस्तीफा दिया था, जिसके बाद से उनके चुनाव मैदान में उतरने की चर्चा थी. अब भारद्वाज का बिलाईगढ़ सीट से चुनाव लड़ना तय हो गया है. उन्होंने ब्लॉक अध्यक्ष को अपना आवेदन दिया है.
- बता दें कि कृष्णकांत कांकेर से पहले भानुप्रतापपुर ब्लॉक के व्यवहार न्यायालय में पदस्थ थे. प्रमोशन के बाद सुकमा पहुंचे थे, जिसके बाद कांकेर न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश के पद पर तैनात रहे.
- भारद्वाज 14 साल की नौकरी पूरी कर चुके थे. उनकी 16 साल की नौकरी अभी बाकी थी. कृष्णकांत भारद्वाज कांकेर में डेढ़ साल से पदस्थ थे. उन्होंने अगस्त के पहले हफ्ते में नौकरी से इस्तीफा दिया है.
- भारद्वाज के बारे में कहा जा रहा है कि उनकी टिकट को लेकर बातचीत चल रही है. किस पार्टी में शामिल होंगे, यह अभी तय नहीं हो सका है. जल्द ही वो निर्णय लेंगे.
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जानिए आध्यात्मिक गुरु बालदास के बारे में...
गुरु बालदास को अनुसूचित जाति के लोगों में अच्छी खासी पकड़ रखने वाला माना जाता है. वो सतनामी समाज के बहुत बड़े आध्यात्मिक चेहरे हैं. कहा जाता है कि उन्होंने अब तक जिस पार्टी के लिए कैंपेनिंग की जिम्मेदारी उठाई है, वो दल सत्ता में पूर्ण बहुमत से काबिज हो जाता है. साल 2013 में भारतीय जनता पार्टी के लिए कैंपेनिंग करना हो या 2018 में कांग्रेस में शामिल होकर सतनामी समाज का समर्थन दिलाना हो.
- गुरु बालदास ने दोनों बेटे खुशवंत साहब, सौरभ साहेब और बेटी को भी भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता दिलवाई है. बड़े बेटे खुशवंत साहब ने रायपुर के पास आरंग सीट से चुनावी दावेदारी भी कर दी है. कयास लगाया जा रहा है कि अगर सर्वे की रिपोर्ट में सकारात्मक परिणाम आते हैं तो खुशवंत को टिकट मिलना तय है. बताते चलें कि छत्तीसगढ़ के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री गुरु रूद्र कुमार भी सतनामी संप्रदाय के गुरु परिवार से हैं.
छत्तीसगढ़ में सतनामी आध्यात्मिक गुरु बालदास ने पाला बदला, BJP में वापसी, बदलेंगे चुनावी समीकरण?
- छत्तीसगढ़ में कुल 90 विधानसभा सीटें हैं. इनमें 20 सीटों पर सतनामी समाज का दबदबा माना जाता है. ऐसे में हर राजनीतिक दल इस समाज को बड़ा वोट बैंक मानकर साधने की कोशिश करता है. छत्तीसगढ़ में विशेष रूप से अनुसूचित जाति की अधिकांश आबादी बाबा गुरु घासीदास द्वारा स्थापित सतनामी संप्रदाय में बहुत आस्था रखती है.
- राज्य की आबादी में अनुसूचित जाति की हिस्सेदारी करीब 14% है. वे अधिकतर मैदानी इलाकों में बसे हुए हैं. 2013 में छत्तीसगढ़ में बीजेपी को कांग्रेस से 10 सीटें ज्यादा मिली थीं और 2018 में कांग्रेस को 71 और बीजेपी को 14 सीटें मिली थीं.
इससे पहले 2005 बैच के आईएएस ओपी चौधरी ने भी पिछले विधानसभा चुनाव में इस्तीफा देकर खरिसया से चुनाव लड़ा था, लेकिन वो जीत नहीं पाए थे. उसके बाद से वो राजनीति में सक्रिय रहे. वर्तमान में चौधरी छत्तीसगढ़ बीजेपी के प्रदेश महामंत्री की जिम्मेदारी देख रहे हैं. आम तौर पर यह देखा जाता है कि कोई बड़ा अधिकारी या नेता रायपुर या दिल्ली में पार्टी पदाधिकारियों के समक्ष राजनीतिक दल में एंट्री लेता है. लेकिन आईएएस नीलकंठ टेकाम का केशकाल में आकर बीजेपी में शामिल होना चर्चा का विषय बना हुआ है.