बिजवासन विधानसभा सीट (Bijwasan Assembly constituency) दिल्ली की 70 सीटों में से एक है. परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद 2008 में यह सीट पहली बार अस्तित्व में आई. बिजवासन विधानसभा क्षेत्र दक्षिण दिल्ली जिले का हिस्सा है और 2008 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के सतप्रकाश राणा ने जीत हासिल की थी. राणा ने कांग्रेस के विजय सिंह लोचव को हराया था. राणा लगातार दूसरी बार 2013 में भी विधायक चुने गए. 2015 के चुनाव में इस सीट से आम आदमी पार्टी (AAP) के कर्नल देविंदर शेहरावत ने सतप्रकाश राणा को हराया और विधायक बने.
बिजवासन विधानसभा सीट का गणित
बिजवासन विधानसभा सीट पर कुल मतदाताओं में अनुसूचित जाति के 13.78 फीसदी वोटर्स हैं. 2019 की मतदाता सूची के मुताबिक इस सीट पर 19,3,205 मतदाता हैं जो 192 मतदान केंद्रों पर वोटिंग करेंगे. पिछली बार यानी 2015 के विधानसभा चुनावों में इस सीट पर 63.42% लोगों ने मतदान किया था . भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को क्रमशः 38.46%, 4.45% और 54.99% मत मिले थे.
विधानसभा चुनाव 2015
कर्नल देविंदर शेहरावत- आम आदमी पार्टी-65,006 (54.99%)
सतप्रकाश राणा-बीजेपी-45,470 (38.46%)
विजय सिंह लोचव -कांग्रेस-5,258 (4.44%)
विधानसभा चुनाव 2013
सतप्रकाश राणा-बीजेपी-35,988 (34.65%)
देविंदर शेहरावत- आम आदमी पार्टी-33,574 (32.32%)
विजय सिंह लोचव -कांग्रेस-18,173 (17.50%)
2013 और 2015 की कहानी
बहरहाल, दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) के राष्ट्रीय संयोजक एवं मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के समक्ष अपना सबसे मजबूत किला बचाने की प्रबल चुनौती है.
पिछले विधानसभा चुनाव में दिल्ली विधानसभा की 70 में से 67 सीटें जीतने वाले केजरीवाल का जादू इस बार चलेगा या नहीं इस पर पूरे देश की निगाहें हैं. केजरीवाल अपने पांच वर्ष के कार्यकाल के दौरान विशेषकर स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में किए गए कार्यों को गिनाते हुए इस बार भी पूरे आत्मविश्वास में हैं जबकि राजनीतिक पंडितों का मानना है कि पिछला करिश्मा दोहराना मुश्किल नजर आ रहा है.
वर्ष 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले ही ‘AAP’ का गठन हुआ था और उस चुनाव में दिल्ली में पहली बार त्रिकोणीय संघर्ष हुआ जिसमें 15 वर्ष से सत्ता पर काबिज कांग्रेस 70 में से केवल आठ सीटें जीत पाई जबकि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार बनाने से केवल चार कदम दूर अर्थात 32 सीटों पर अटक गई. ‘आप’ को 28 सीटें मिली और शेष दो अन्य के खाते में रहीं.
भाजपा को सत्ता से दूर रखने के प्रयास में कांग्रेस ने ‘AAP’ को समर्थन दिया और केजरीवाल ने सरकार बनाई. लोकपाल को लेकर दोनों पार्टियों के बीच ठन गई और केजरीवाल ने 49 दिन पुरानी सरकार से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा और फरवरी 2015 में ‘AAP’ने सभी राजनीतिक पंडितों के अनुमानों को झुठलाते हुए 70 में से 67 सीटें जीतीं. बीजेपी तीन पर सिमट गई जबकि कांग्रेस की झोली पूरी तरह खाली रह गई.
कब होगी वोटिंग और मतगणना?
दिल्ली की पहली विधानसभा का गठन 1993 में हुआ था और इस बार यहां पर सातवां विधानसभा चुनाव कराया जा रहा है. इससे पहले राजधानी दिल्ली में मंत्रीपरिषद हुआ करती थी. दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा में इस बार महज एक चरण में मतदान हो रहा है. 8 फरवरी को वोट डाले जाएंगे जबकि 11 फरवरी को मतगणना होगी. छठी दिल्ली विधानसभा का कार्यकाल 22 फरवरी 2020 को समाप्त हो जाएगा.