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क्या इस बार भी दिल्ली में वोटर देंगे किसी एक पार्टी के पक्ष में निर्णायक फ़ैसला?

दिल्ली में बाजी किसके हाथ रहेगी ये तो 11 फरवरी को ही साफ होगा. चुनाव आयोग ने दिल्ली के 11वें विधानसभा चुनाव की तारीख का एलान कर दिया है. दिल्ली के 1.46 लाख वोटर 8 फरवरी को ईवीएम पर बटन दबा कर तय करेंगे कि दिल्ली पर अगले पांच साल के लिए कौन राज करेगा.

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अरविंद केजरीवाल और पीएम नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो-PTI)
अरविंद केजरीवाल और पीएम नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो-PTI)

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  • कांग्रेस बढ़ा सकती है AAP की मुश्किल
  • बीजेपी पर बेहतर प्रदर्शन का दबाव

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 कौन जीतेगा? क्या अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी बिजली, स्वास्थ्य, स्कूल और पानी को लेकर अपने काम के दावों के दम पर सत्ता अपने पास ही रखने में कामयाब होगी? या फिर बीजेपी ‘मोदी, मंदिर और पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में प्रताड़ित हिन्दू अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के नाम पर’  दिल्ली की सत्ता आम आदमी पार्टी से झटकने में सफल होगी?

दिल्ली में बाजी किसके हाथ रहेगी ये तो 11 फरवरी को ही साफ होगा. चुनाव आयोग ने दिल्ली के 11वें विधानसभा चुनाव की तारीख का एलान कर दिया है. दिल्ली के 1.46 लाख वोटर 8 फरवरी को ईवीएम पर बटन दबा कर तय करेंगे कि दिल्ली पर अगले पांच साल के लिए कौन राज करेगा?

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दिल्ली के वोटरों की निर्णायक प्रवृत्ति

दिल्ली के वोटरों का मूड भांपने के लिए उनके जेहन को सतर्कता से पढ़ने की आवश्यकता है. इसके लिए बीते कुछ चुनावों पर भी नज़र डालना ज़रूरी है. जब से आप का राजनीतिक उदय हुआ, 2013 में हुआ विधानसभा चुनाव पूरी तरह से त्रिकोणीय मुकाबला था. 2013 को छोड़ दे बीते कुछ चुनावों में दिल्ली के वोटरो ने निर्णायक तौर पर वोट दिया. चाहे वो विधानसभा चुनाव हों, एमसीडी चुनाव हो या लोकसभा चुनाव.

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ऊपरी ग्राफ से साफ है कि आप जब से दिल्ली के राजनीतिक मैदान मे आई है, कांग्रेस यहां तीसरे स्थान पर खिसक गई है. ये वही कांग्रेस है जिसने 1998 से लेकर 2013 तक लगातार 15 साल दिल्ली पर राज किया था. आप ने अधिकतर कांग्रेस का वोट शेयर ही झटका जबकि बीजेपी का बीते तीन विधानसभा चुनावों में वोट शेयर 32 से 36% के बीच बना रहा. तीसरी अहम बात ये है कि दिल्ली के वोटरों ने छोटी पार्टियों या निर्दलीय उम्मीदवारों को अधिक तवज्जो नहीं दी. पिछले कुछ चुनावों में (चाहे वो विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा) तीनों अहम पार्टियों- आप, बीजेपी और कांग्रेस को मिलाकर 95% से अधिक वोट मिले.

लेकिन साथ ही दिल्ली के वोटरों ने जिस पार्टी को भी जनादेश दिया ‘छप्पड़ फाड़ के’ दिया.  2015 विधानसभा चुनाव में आप ने कुल 70 विधानसभा सीटों में से 67 पर जीत हासिल की. बीजेपी को महज़ 3 सीट से ही संतोष करना पड़ा जबकि कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल सका.

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अगर वोट शेयर की बात की जाए तो ये देखना हैरानी वाला है कि कैसे दिल्ली के वोटरों ने निर्णायक ढंग से और इकतरफा बर्ताव किया. आप ने 2015 विधानसभा चुनाव में 54% वोट हासिल किए. लेकिन आप का यही वोट प्रतिशत 2019 लोकसभा चुनाव में घट कर 18 फीसदी ही रह गया. दूसरी तरफ बीजेपी का वोट शेयर 2015 विधानसभा चुनाव की तुलना में 2019 लोकसभा चुनाव में 25% बढ़ गया.

केजरीवाल और उनकी चुनौती

दिल्ली चुनाव में आखिरी मौके तक दिल्ली वोटरों का वोट स्विंग दिलचस्पी बनाए रखता है. जैसे कि दिल्ली में गवर्नेंस को लेकर प्रतिष्ठित संस्था लोकनीति-CSDS की ओर से हाल में कराए गए सर्वे से सामने आया कि अरविंद केजरीवाल सरकार के कामकाज से लोग काफी हद तक संतुष्ट हैं. कुल प्रतिभागियों में से 86 प्रतिशत ने कहा कि या तो वो पूरी तरह संतुष्ट (53%) हैं या ज्यादातर संतुष्ट (33%) हैं. संतुष्टता का ये स्तर ना सिर्फ अरविंद केजरीवाल की निजी लोकप्रियता की वजह से है बल्कि उनकी सरकार की से चलाई गई विभिन्न कल्याण योजनाओं के प्रभाव से भी है, जैसे कि मुफ्त पानी, बिजली के कम दाम, मोहल्ला क्लिनिक, स्कूलों के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाना.

हालांकि दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 की लड़ाई आप के लिए बहुत आसान भी नहीं है. 2015 विधानसभा चुनाव के बाद दिल्ली में जितने भी चुनाव हुए आप का वोट शेयर गिरता ही रहा है.

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ऊपर का ग्राफ दिखाता है कि आप का वोट शेयर किस तरह गिरा. दो साल पहले एमसीडी चुनाव में आप ने 2015 विधानसभा चुनाव की तुलना में 25% वोट खो दिए. और आप के वोटों में ये गिरावट 2019 लोकसभा चुनाव में भी जारी रही. इस चुनाव में आप का वोट शेयर सिर्फ 18% ही रह गया. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ने 2019 लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन दिखाते हुए 2015 विधानसभा और 2017 एमसीडी चुनाव से ज्यादा वोट शेयर हासिल किया.

बीजेपी ने न सिर्फ 7 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की बल्कि 65 विधानसभा सीटों पर भी बढ़त हासिल की. वहीं कांग्रेस का प्रदर्शन दिल्ली में हुए पिछले तीन चुनावों में खास नहीं रहा लेकिन उसका प्रदर्शन इस बात पर ही टिका रहा कि आप ने संबंधित चुनाव में कैसा प्रदर्शन किया. इन चुनावों में कांग्रेस का वोट शेयर बढता रहा लेकिन ये इसी पर निर्भर रहा कि आप को कितना वोट शेयर मिला.

1990 के दशक से सिर्फ़ बीजेपी को दिल्ली में 30% से अधिक वोट शेयर मिलता रहा. वहीं आप और कांग्रेस का वोट शेयर चुनाव दर चुनाव ऊपर नीचे होता रहा है. अगर बीजेपी अपने काडर वोट को बनाए रखती है और कांग्रेस को वोटों का संतोषजनक हिस्सा मिलता है तो दिल्ली विधानसभा 2020 चुनाव का नतीजा दिलचस्प हो सकता है.

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दिल्ली में 20-20 का गेम

दिल्ली विधानसभा चुनाव को त्रिकोणीय बनाने के लिए कांग्रेस को 2019 लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को दोहराने की जरूरत है. उस चुनाव में कांग्रेस को 23% वोट मिले थे. हालांकि ऐसा होने की संभावना कम ही है. इसके दो कारण है- जब राज्य सरकार चुनने की बात आए तो पहला, किसी विश्वसनीय चेहरे (नेता) का अभाव और दिल्ली में कांग्रेस का कमज़ोर संगठन. और दूसरी वजह है दिल्ली के वोटरों की निर्णायक प्रवृत्ति क्योंकि वो हमेशा लीड करने वाली पार्टी के साथ ही रहना पसंद करते हैं.

एक और अहम पहलू है कि 2019 लोकसभा चुनाव के बाद से जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए हैं वहां बीजेपी बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई है. हरियाणा और झारखंड विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने 2019 लोकसभा चुनाव की तुलना में करीब 20% वोट शेयर खोया. जबकि ये चुनाव लोकसभा चुनाव के कुछ ही महीने बाद हुए. 2017 गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी किसी भी राज्य में अकेले बूते बहुमत हासिल नहीं कर पाई है. ये बीजेपी की राज्य विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन को लेकर कमजोरी को दिखाता है.

मोदी के नाम पर पार्टी राज्य विधानसभाओं में अपना बेस वोट एक तिहाई पर रखने में कामयाब होती आई है लेकिन जब लड़ाई राज्य में अरविंद केजरीवाल जैसे मजबूत नेता से हो तो बीजेपी को चुनाव जीतने के लिए अपने वोट बेस से 5-10% अधिक वोट हासिल करने की ज़रूरत है. चाहें मोदी हों, राम मंदिर पर फैसला हो या नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA), जिन तीन मुद्दों पर बीजेपी ज़ोर दे रही हैं, क्या इनके दम पर बीजेपी चुनाव में आप को शिकस्त देने के लिए अतिरिक्त वोट हासिल कर पाएगी?  ये समय ही बताएगा.

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