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...ये है गोवा में कांग्रेस के जीतकर भी हारने के पीछे की कहानी

गोवा के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भले ही सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन इसके बावजूद सरकार बनाने में बीजेपी को कामयाबी मिली. कांग्रेस की इस नाकामी के पीछे पार्टी के स्थानीय नेताओं खासकर प्रदेश कांग्रेस समिति अध्यक्ष एदुआर्डो फलेरो को जिम्मेदार माना जाता है.

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गोवा में सबसे बड़ी पार्टी बनकर भी सरकार नहीं बना पाई कांग्रेस
गोवा में सबसे बड़ी पार्टी बनकर भी सरकार नहीं बना पाई कांग्रेस

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गोवा के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भले ही सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन इसके बावजूद सरकार बनाने में बीजेपी को कामयाबी मिली. कांग्रेस की इस नाकामी के पीछे पार्टी के स्थानीय नेताओं खासकर प्रदेश कांग्रेस समिति अध्यक्ष एदुआर्डो फलेरो को जिम्मेदार माना जाता है.

सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, कांग्रेस गोवा में चुनाव से पहले ही विजय सरदेसाई की गोवा फॉरवर्ड पार्टी के साथ गठबंधन करना चाहती थी, लेकिन फलेरो की बारंबार आपत्ति की वजह से इस मिलाप को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका.

(पढ़ें- गोवा में सरकार बनने के लिए गडकरी ने कैसे की कोशिश )

इसके बाद कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने गोवा की फतोरदा सीट पर सरदेसाई के खिलाफ अपना उम्मीदवार ना उतारकर समझौते को अघोषित रूप से आगे बढ़ाता दिखा. हालांकि सूत्रों की मानें तो, गोवा कांग्रेस अध्यक्ष फलेरो ने इसमें भी अड़ंगा लगाने की कोशिश की और एक निर्दलीय उम्मीदवार को कांग्रेस के चुनाव चिह्न पर सरदेसाई के खिलाफ खड़ा करने का ऐलान कर दिया.

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गोवा के प्रभारी बनाए गए कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह फिर हरकत में आए और उनकी कोशिशों के बाद अंतिम क्षणों में फलेरो ने अपने कदम वापस खींच लिए.

इसके बाद 11 मार्च को आए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 40 सदस्यीय विधानसभा में 17 सीटें मिलीं और बीजेपी को 13 सीटों से संतोष करना पड़ा. इसके अलाव जीपीएफ और महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी (एमजीपी) को 4-4 सीटें तथा दो निर्दलीय विधायकों को जीत मिली.

इस नतीजे से यह साफ हो गया कि कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए अन्य पार्टियों से समर्थन की दरकार होगी. इसके बाद दिग्विजय सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री दिगंबर कामत ने सरदेसाई से संपर्क साधा. थोड़ी बहुत समझाइश के बाद सरदेसाई सहित जीपीएफ के दो अन्य विधायक कांग्रेस को समर्थन देने पर राजी तो हो गए, लेकिन उन्होंने शर्त रखी कि फलेरो की जगह किसी और मुख्यमंत्री बनाया जाए.

इसके बाद सरदेसाई की कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से भी बात कराई गई. फिर दिग्विजय सिंह और उनकी टीम देर रात तक दिगंबर कामत को मुख्यमंत्री बनाने के लिए फलेरो को राजी करते रहे. हालांकि इस बीच बीजेपी की तरफ से जोड़-तोड़ में जुटे केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने उसी रात सरदेसाई और उनकी पार्टी के दूसरे विधायकों को साध लिया और अगली भोर को जीपीएफ विधायकों ने मनोहर पर्रिकर को सीएम बनाए जाने की शर्त पर बीजेपी को समर्थन का औपचारिक ऐलान कर दिया.

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इस घोषणा से बौखलाए दिग्विजय सिंह और दिगंबर कामत ने सरदेसाई सहित जीपीएफ विधायकों से संपर्क साधने की भरसक कोशिश की, कई फोन भी मिलाए लेकिन उनका फोन बंद आता रहा और इस तरह उनकी तमाम कोशिशों पर पानी फिर गया.

इसके दो घंटे बाद ही मनोहर पर्रिकर ने गोवा की राज्यपाल मृदुला सिन्हा से मिलकर सरकार बनाने के लिए जरूरी विधायकों के समर्थन की चिट्ठी के साथ अपना दावा पेश कर दिया.

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