गुजरात की ऊना विधानसभा सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है. यहां कांग्रेस का दबदबा रहा है. हालांकि, बदलते समय में कांग्रेस के लिए इस सीट पर टिके रहना आसान नहीं है. आइए आपको बताते हैं ऊना विधानसभा क्षेत्र के बारे में, जहां 1962 से 2017 तक हुए चुनाव में खासकर सौराष्ट्र में किसी जाति नहीं, बल्कि उम्मीदवार की कार्यशैली महत्वपूर्ण रही है.
मतदाताओं का समीकरण
ऊना सीट के ज्यादातर गांव समुद्र तट के किनारे बसे हैं. इस सीट के अधिकांश गांव गिर के जंगल में बसे हैं. ऊना निर्वाचन क्षेत्र में कुल 79 हजार 512 मतदाता हैं. इनमें 40 हजार 726 पुरुष और 38 हजार 786 महिला मतदाता हैं. इस सीट पर कोली समुदाय अधिक प्रभाव रखता है.
खास बात ये है कि इस सीट पर कोली समुदाय के लोग पाटीदारों का समर्थन करने के मूड में दिख रहे हैं. शायद गुजरात में पहली बार पटेल और कोली नेता एकजुट नजर आ रहे हैं. इस वजह से इन दोनों समाजों के वर्चस्व वाली सीट काफी अहम हो गई है.
क्या है सियासी समीकरण
पिछले ढाई दशक से गुजरात की सत्ता पर बीजेपी का कब्जा है. हालांकि, कुछ सीटें ऐसी भी हैं, जहां आज तक बीजेपी अपनी पकड़ मजबूत नहीं कर पाई है. इनमें से एक सीट ऊना भी है. यहां बीजेपी ने 1962 के पहले चुनाव से लेकर 2017 के चुनाव तक केवल एक बार जीत हासिल की है.
साल 2007 में भाजपा के राठौर कलाभाई ने कांग्रेस के पूजाभाई वंश के खिलाफ ऊना सीट 10 हजार से अधिक मतों से जीती थी. इस सीट पर अब तक 6 बार पूजाभाई जीत दर्ज करा चुके हैं. इसके साथ ही वह इस सीट को कांग्रेस का गढ़ बना चुके हैं.
क्या है इस क्षेत्र की समस्या
ऊना सीट क्षेत्रफल में बड़ी है, लेकिन छोटे शहरों और गांवों में बंटी है. 25 से 2000 की आबादी वाले छोटे गांवों में अभी भी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो पाई हैं. यहां तक कि अधिकांश गांवों में बिजली, पानी, सड़क, स्कूल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जैसी आवश्यक मूलभूत सुविधाएं भी नहीं हैं.
कांग्रेस के विधायक इस सीट से 6 चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं. मगर, जनता के हित के लिए कोई खास काम नहीं कर पाए हैं. देश की आजादी के 75 साल बाद भी यह क्षेत्र विकास के मामले में काफी पिछड़ा हुआ है.
पिछले चुनाव का परिणाम