गोवा विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर को पणजी सीट से टिकट नहीं दिया. बीजेपी ने मौजूदा विधायक अतानासियो मोनसेरेट को उतारा है तो उत्पल पर्रिकर भी निर्दलीय ही चुनावी मैदान में कूद गए हैं. ऐसे में पणजी सीट बीजेपी के लिए गले की फांस बन गई है. इंडिया टुडे के कार्यक्रम में गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कहा कि उत्पल पर्रिकर को 3-4 सीटें ऑफर की थीं, उन्हें एक सीट तो चुनना चाहिए थे. वो लड़ते तो बड़े नेता बन जाते.
प्रमोद सावंत ने कहा कि उत्पल पर्रिकर को हमने 3-4 सीट ऑफर की थी. तो उन्हें किसी एक सीट का चयन करके चुनाव लड़ना चाहिए था. हमारे सभी पार्टी के नेताओं ने उनसे बात की थी. उन्हें समझाया गया. जिन 3-4 सीट का ऑफर किया गया था, उस पर लड़ना चाहिए था. वो लड़ते तो जरूर बड़े नेता बन सकते थे. मुझे पता नहीं है कि उनका पर्सनल क्या है, वो पणजी सीट पर चुनाव लड़ने की जिद कर रहे थे.
पणजी सीट से बीजेपी ने जिस अतानासियो मोनसेरेट को टिकट दी है. वो बाहुबली हैं और उनके ऊपर तमाम सारे केस दर्ज हैं. महिलाओं के खिलाफ अपराध का भी केस है. इस सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा कि वो मनोहर पर्रिकर की सरकार में भी मंत्री रहे थे. 2002 की सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं. 2017 में भी रह चुके हैं. पणजी सीट पर उनकी अच्छी पकड़ है और वो इस बार के चुनाव में भी जीतकर आएंगे.
बीजेपी के 25 फीसदी क्रिमिनल प्रत्याशियों के सवाल पर प्रमोद सावंत ने कहा कि हमने तो उपचुनाव में साफ छवि वाले को टिकट दी थी. लोगों ने चुना ही नहीं. ट्रैक रिकॉर्ड होने से कोई गुंडा नहीं जाता है. अब वो सुधर गए होंगे. आप पणजी के लोगों से पूछकर देखा. वो लोगों के बीच में रहते हैं. अपने लोगों का काम करते हैं. मैं कह रहा हूं वो बड़े मार्जिन से जीतकर आएंगे. केस लगने का मतलब ये नहीं है कि वो अपराधी है. मामला कोर्ट में है.
कौन हैं अतानासियो मोनसेरेट?
मोनसेरेट 2002 से राजनीति में हैं. उनके खिलाफ आपराधिक मामलों की एक लंबी सूची है, जिसमें बलात्कार का आरोप भी शामिल है. वो पणजी से तब तक दूर रहे जब तक मनोहर पर्रिकर सीट से चुनाव नहीं लड़ रहे थे. लेकिन उनके निधन के बाद से पणजी सीट को ही अपनी कर्मभूमि बना ली.
मोनसेरेट को तिस्वाड़ी की सांताक्रूज़ सीट से विधायक के रूप में चुना गया था, जबकि उनकी पत्नी जेनिफर ने तालेइगाओ सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी. 2017 के चुनावों में पर्रिकर केंद्रीय मंत्रिमंडल में चले गए थे और मोनसेरेट ने पणजी से चुनाव लड़ा और पहली बार पर्रिकर के नायक सिद्धार्थ कुनकालिनकर के हाथों चुनावी हार का स्वाद चखा. लेकिन पर्रिकर की मृत्यु के बाद 2019 के उपचुनाव में मोनसेरेट ने कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में कुनकालिनकर को पछाड़ पणजी को जीत लिया.
2019 के उपचुनाव में भी उत्पल पर्रिकर ने मोनसेरेट के खिलाफ पणजी सीट से चुनाव लड़ने के लिए पार्टी से टिकट मांगा था. उस समय भी बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया. हालांकि मोनसेरेट ने जीत दर्ज की थी. मोनसेरेट ने 2019 में कांग्रेस के 10 विधायकों को भाजपा में शामिल कराने में भी खास भूमिका निभाई, जिसने गोवा सरकार पर पार्टी की पकड़ मजबूत की, इसलिए नेतृत्व उन्हें एक उम्मीदवार के रूप में नजरअंदाज नहीं कर सका.
गौरतलब है कि एक तरफ मनोहर पर्रिकर के बेटे हैं जो कभी राजनीति में नहीं रहे, कभी चुनाव नहीं लड़ा, और लोगों को दिखाने के लिए उनके पास अपना काम नहीं है. वह अपने पिता की सद्भावना को लेकर ही आगे बढ़ रहे हैं. हालांकि उन्हें दूसरे दलों का समर्थन भी हासिल है. ऐसे में शिवसेना ने उत्पल के समर्थन में अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है.