गुजरात विधान सभा चुनाव के कार्यक्रम के ऐलान को लेकर मुख्य चुनाव आयुक्त ए के ज्योति ने साफ कहा कि अब हम किसी भी वक्त ऐलान कर सकते हैं. पंद्रह दिनों के अंतराल पर दो राज्यों हिमाचल और गुजरात की विधान सभा का कार्यकाल खत्म होने के बावजूद एक साथ नये चुनाव का ऐलान न होने पर उठ रहे सवालों के जवाब ए के ज्योति ने 'आजतक' से अनौपचारिक बातचीत में यह बात कही है.
सीईसी ज्योति का कहना था कि कायदे से तो हमें मतदान की तारीख से कम से कम 46 दिन पहले चुनावी तारीखों का ऐलान कर देना चाहिए, यही सुप्रीम कोर्ट की भी गाइडलाइन है. हमारे पास वक्त भी काफी था क्योंकि जनवरी में दोनों विधानसभाओं की मियाद खत्म हो रही है. लेकिन हिमाचल में जल्दी चुनाव कराने की वजह तीन ऊंचे जिलों भरमौर और लाहौल स्पीति में नवंबर मध्य के बाद बर्फबारी की वजह से मतदान में दिक्कत को टालना है.
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्योति ने कहा कि गुजरात में पिछले महीने आई बाढ़ की वजह से अफरा-तफरी रही. वहां के सात जिलों में बाढ़ का सबसे ज्यादा असर रहा और 35 गांव दूसरी जगह बसाए गए. हालात इतने खराब थे कि 230 लोगों की जान चली गई. इन गांवों के नौ तालुकों में 26 हजार 443 सरकारी कर्मचारी हैं, इनमें 23 हजार तो सरकार के रेवेन्यू और वाटर सप्लाई जैसे विभागों के हैं. 1768 तालुका पंचायतों के, 654 जिला पंचायतों के और 912 नगरपालिकाओं के कर्मचारी भी हैं. ऐसे में सात जिलों के नौ तालुकों में बाढ़ की रेत में ढक गये हजारों एकड़ खेतों के सर्वैक्षण के काम में बाधा होती अगर पहले ही चुनाव का ऐलान हो जाता. एक बार आचार संहिता के साथ ही कर्मचारी सर्वेक्षण करते या चुनावी ड्यूटी, इसलिए चुनाव की तारीखों को ऐलान टाला गया.
ज्योति ने कहा कि राज्य में 50 हजार 128 पोलिंग स्टेशन हैं जिनमें वीवीपैट के जरिये मतदान होगा. सभी मतदान कर्मचारियों और अधिकारियों को इसकी ट्रेनिंग देने की भी जिम्मेदारी होगी, क्योंकि पहली बार ईवीएम के साथ वीवीपैट का इस्तेमाल होगा. गुजरात सरकार ने खुद चिट्ठी लिख कर मानवीय आधार पर आयोग से गुजारिश की थी कि कुछ दिन चुनावों का ऐलान टाल दिया जाय तो चुनाव प्रबंधन में आसानी होगी. राजय में बाढ़ की वजह से सड़कें भी खराब हो गई हैं.
नेताओं का सवालों का जवाब देना हमारा काम नहीं
मुख्य चुनाव आयुक्त ए के ज्योति ने कहा कि राजनेता राजनीतिक तौर पर मुद्दे उठाते रहते हैं. कई बार वो चुनाव आयोग पर भी सवाल उठाते हैं. आयोग आमतौर पर उनके राजनीतिक बयानों पर न तो कोई सफाई देता है और न ही कोई प्रतिउत्तर. हमें और भी जरूरी काम करने होते हैं. अगर यही करने में लग गये तो प्रशासनिक काम समय से कैसे पूरा होगा?
ज्योति से जब कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के आयोग को लेकर दिये तंजिया बयान पर प्रतिक्रिया पूछी गई तो उन्होंने मंद मुस्कान के साथ कहा कि जब तक आधिकारिक तौर पर आयोग को ज्ञापन न दिया जाए आयोग अपनी तरफ से किसी को कोई उत्तर नहीं देता. हां, चुनावी प्रक्रिया से संबंधित कोई विवाद या मामला हो तो आयोग कई बार स्वत: संज्ञान लेता है. लेकिन राजनीति से प्रेरित राजनेताओं के बयान पर आमतौर पर हम कोई ध्यान ही नहीं देते.
पिछले हफ्ते पी चिदंबरम ने ये कह दिया था कि चुनाव आयोग ने गुजरात चुनाव की तारीखें तय करने का अधिकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दे दिया है. अपनी रैली में ही पीएम मोदी गुजरात चुनाव की तारीखों का ऐलान करेंगे. इससे पहले भी जब-जब विपक्ष में रहकर बीजेपी चुनाव आयोग पर आरोप चस्पा करती थी तब भी आयोग खामोश और उदासीन रहा और अब बीजेपी सत्ता में है और कांग्रेस या अन्य विपक्षी पार्टियां आरोप उछाल रही हैं तब भी आयोग कुछ बोलने को तैयार नहीं है.