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गुजरातः शपथ से पहले केशुभाई से आशीष लेने पहुंचे मोदी के 'राम-लखन'

बता दें कि 22 सालों में ये पहली बार है कि जब बीजेपी को गुजरात में 100 सीटों से कम मिली हैं. बीजेपी को राज्य की 182 सीटों में से 99 सीटें मिली हैं. बीजेपी को सबसे बड़ा झटका सौराष्ट्र क्षेत्र में लगा है.

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केशुभाई पटेल से आशीर्वाद से लेते विजय रुपाणी और नितिन पटेल
केशुभाई पटेल से आशीर्वाद से लेते विजय रुपाणी और नितिन पटेल

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गुजरात की सियासत में विजय रूपाणी और नितिन पटेल मोदी के 'राम-लखन' माने जाते हैॆं. इन दोनों नेताओं ने शपथ ग्रहण से एक दिन पहले सोमवार को गुजरात में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री रहे केशुभाई पटेल से आशीर्वाद लिया. हालांकि 2012 के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद नरेंद्र मोदी ने भी जाकर केशुभाई पटेल को मिठाई खिलाई थी. मोदी की तर्ज पर रूपाणी और नितिन पटेल के केशुभाई के पास जाने के पीछे सियासी मायने छिपे हैं.

बता दें कि 22 सालों में ये पहली बार है कि जब बीजेपी को गुजरात में 100 सीटों से कम मिली हैं. बीजेपी को राज्य की 182 सीटों में से 99 सीटें मिली हैं. बीजेपी को सबसे बड़ा झटका सौराष्ट्र क्षेत्र में लगा है. सौराष्ट्र क्षेत्र की 54 सीटों में से बीजेपी को 25 सीटें मिली हैं. जबकि कांग्रेस को 29 सीटें मिली हैं.

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सौराष्ट्र बीजेपी का दुर्ग माना जाता है. बीजेपी 1995 में सत्ता में जब पहली बार आई थी, तो सौराष्ट्र क्षेत्र से 44 सीटें जीती थीं. इसके बाद से सौराष्ट्र बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जाने लगा. सौराष्ट्र में बीजेपी की जड़ें जमाने का काम केशुभाई पटेल ने किया. 1995 से लेकर 2012 तक ये क्षेत्र बीजेपी के लिए गढ़ साबित होता रहा है, लेकिन इस बार कांग्रेस इस किले को भेदने में काफी हद तक सफल रही है.

2017 में सौराष्ट्र से बीजेपी की सीटें घटना पार्टी के लिए चिंता का सबब है. ऐसे में मोदी के 'राम-लाखन' माने जाने वाले विजय रूपाणी और नितिन पटेल ने केशुभाई के दर पर जाकर दस्तक दी है. विजय रूपाणी सौराष्ट्र के राजकोट से ही विधायक बने हैं. ऐसे में उनके क्षेत्र में सीटें कम होने पर उनकी चिंता लाजमी है. खासकर तब जबकि वो नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारी को तौर पर राज्य के मुख्यमंत्री के सिंहासन पर दोबारा विराजमान होने जा रहे हैं. वहीं नितिन पटेल दोबारा से डिप्टी सीएम की कमान संभालेंगे.

बीजेपी केशुभाई पटेल के जरिए सौराष्ट्र में खिसके जनाधार को वापस लाने की जुगत में है. दोनों नेताओं की केशुभाई से मुलाकात इसी मायने में निकाली जा रही है. वैसे विजय रूपाणी ने अपने नामांकन से पहले भी केशुभाई पटेल के पास जाकर उनका आशीर्वाद लिया था. अब सत्ता में वापसी के बाद दोबारा उनके दरबार में दस्तक दी है. इसके पीछे सीधे तौर पर सौराष्ट्र के बिगड़े सियासी समीकरण को सुधारने की मंशा देखी जा रही है. क्योंकि 18 महीने के बाद लोकसभा का चुनाव है. ऐसे में ये कदम पटेलों की नाराजगी दूर करने की दिशा में भी समझा जा सकता है. गुजरात में आज भी केशुभाई पटेल अपने समुदाय के भीष्म पितामाह माने जाते हैं. ये अलग बात है कि उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को समाज का उतना सपोर्ट नहीं मिला .

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