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पटेलों के सिर से उतरने लगा हार्दिक का खुमार, ट्विटर पर छलका पाटीदार नेता का दर्द

दो साल पहले बीजेपी के खिलाफ बगावत का झंडा उठाने वाले हार्दिक के साथियों के दिल में कमल खिल रहा है और वो एक-एक करके बीजेपी का दामन थाम रहे हैं. हार्दिक धीरे-धीरे गुजरात की सियासी रणभूमि में अकेले पड़ते जा रहे हैं.

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हार्दिक पटेल
हार्दिक पटेल

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गुजरात के मौजूदा सियासी हालात को देखते हुए लगने लगा है कि पाटीदारों के सिर से हार्दिक पटेल का जादू उतरने लगा है. दो साल पहले हार्दिक के एक फरमान पर राज्य का पटेल समुदाय अपनी जान न्यौछावर करने को तैयार था, लेकिन सियासी शतरंज पर ऐसी बाजियां चली गईं कि आज वही पटेल समुदाय हार्दिक पटेल से दूरी बनाने में लगा है.

दो साल पहले बीजेपी के खिलाफ बगावत का झंडा उठाने वाले हार्दिक के साथियों के दिल में कमल खिल रहा है और वो एक-एक करके बीजेपी का दामन थाम रहे हैं. हार्दिक धीरे-धीरे गुजरात की सियासी रणभूमि में अकेले पड़ते जा रहे हैं. उनके अकेलेपन का ये दर्द अब उनके ट्वीट से भी झलकने लगा है. सोमवार की दोपहर हार्दिक ने ट्वीट किया...

सियासत की रंगत में ना डूबो इतना,

कि वीरों की शहादत भी नजर ना आए,

जरा सा याद कर लो अपने वायदे जुबान को,

गर तुम्हे अपनी जुबां का कहा याद आए.

हार्दिक पटेल  इस ट्वीट के बाद ही नहीं रुके, उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की लिखी पंक्तियों के जरिए भी अपना दर्द बयां किया. उन्होंने ट्वीट किया-बाधाएं आती हैं आएगी, घिरे प्रलय की घोर घटा, पांवों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसे यदि ज्वालाएं,निज हाथों में हंसते हंसते, आग लगाकर जलना होगा, क़दम मिलाकर चलना होगा.

बता दें कि पटेल आरक्षण आंदोलन के जरिए हार्दिक पटेल को प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में नई पहचान मिली थी. हार्दिक पटेल ने आंदोलन के जरिए गुजरात की तस्वीर को बदल कर रख दिया था. हार्दिक पटेल ने 25 अगस्त, 2015 को अहमदाबाद के जीएमडीसी ग्राउंड में रैली की. इस रैली में 5 लाख से ज्यादा लोगों की भीड़ हार्दिक के फरमान पर सड़कों पर उतर आई थी. इस आंदोलन के बाद हुई हिंसा में कई पटेल युवकों की जानें भी गई थी.

गुजरात में पटेल समुदाय करीब 16 फीसदी है. जो सत्ता बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखता है. राज्य की 182 विधानसभा सीटों में से 70 सीटों पर पटेल समुदाय का प्रभाव है. पिछले दो दशक से राज्य का पटेल समुदाय बीजेपी का परम्परागत वोटर रहा है, लेकिन अब वो नाराज चल रहा है. इसी का नतीजा रहा कि 2015 में हुए जिला पंचायत चुनाव में पाटीदार बाहुल्य इलाके में कांग्रेस विजयी रही और बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा था.

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हार्दिक की खुमारी पटेल समुदाय के युवकों के सिर इस कदर चढ़कर बोल रही थी, कि पिछले दिनों गुजरात में बीजेपी की निकली गौरव यात्रा में डिप्टी सीएम नीतिन पटेल को भी नाराजगी का सामना करना पड़ा था. इसके अलावा आरक्षण आंदोलन के दौरान गुजरात में बीजेपी की रैली के मंच पर लोहे की जाली लगानी पड़ी थी ताकि अमित शाह को किसी भी संभावित हमले से बचाया जा सके.

वक्त बदला और सियासत ने ऐसी करवट ली कि बीजेपी के खिलाफ बगावती तेवर अख्तियार करने वाले पटेल समुदाय के नेताओं को फिर बीजेपी रास आने लगी है. गुजरात विधानसभा चुनाव का बिगुल बजते ही बीजेपी ने पटेल समुदाय की नाराजगी दूर करने के जतन में लग गई. इस दौरान हार्दिक पटेल की अश्लील सीडी भी जारी हुईं, जिससे उनकी छवि कमजोर हुई. बीजेपी हार्दिक के साथियों को तोड़कर अपने साथ मिलाने लगी. आरक्षण आंदोलन के हार्दिक के साथी एक-एक करके बीजेपी का दामन थाम रहे हैं. इनमें रेशमा पटेल, चिराग पटेल केतन पटेल, अमरीश व श्वेता पटेल जैसे युवा नेता शामिल हैं.

गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर जय प्रकाश प्रधान कहते हैं कि पटेल समुदाय की नाराजगी को बीजेपी ने काफी हद तक दूर कर लिया है. वो 2015 में जिस तरह से नाराज थे अब वैसे नहीं हैं. यही वजह है कि हार्दिक के कई साथियों ने बीजेपी का दामन थाम लिया है. पटेल समुदाय बीजेपी का परंपरागत वोट है, कांग्रेस के साथ वह बहुत ज्यादा सेट नहीं हो सकता है.

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गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मात देने के लिए कांग्रेस को गले लगाने की कवायद हार्दिक ने शुरू की. इस कड़ी में उन्होंने कांग्रेस के सामने आरक्षण सहित कई शर्त रखी, जिस पर कई राउंड की मीटिंग के बाद थोड़ी सहमति बनी. पर कांग्रेस की पहली लिस्ट आते ही पाटीदार अनामत आंदोलन समिति ने कांग्रेस के खिलाफ बगावत का झंडा उठा रखा है. सोमवार को गुजरात के कई स्थानों पर कांग्रेस और पाटीदार समुदाय के बीच झड़पें हुईं. इसे देखकर हार्दिक पटेल ने अपनी सूरत में होने वाली रैली को रद्द कर दिया है.

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