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गुजरात के सियासी रण में अंदाज-ए-राहुल, पहले ट्विटर पर, फिर मंच से मोदी पर निशाना

गुजरात के सियासी रणभूमि में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी नए तेवर और नए अंदाज में नजर आ रहे हैं. राहुल चुनावी रैली में पहुंचने से पहले राष्ट्रीय राजनीति के मद्देनजर सरकार पर निशाना साधते हुए एक ट्वीट करते हैं. राहुल के ट्वीट करते ही सियासी चर्चाएं तेज़ हो जाती हैं. इसके कुछ ही देर बाद राहुल रैली के मंच पर होते हैं और हमला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर होता है.

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कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी

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गुजरात के सियासी रणभूमि में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी नए तेवर और नए अंदाज में नजर आ रहे हैं. राहुल चुनावी रैली में पहुंचने से पहले राष्ट्रीय राजनीति के मद्देनजर सरकार पर निशाना साधते हुए एक ट्वीट करते हैं. राहुल के ट्वीट करते ही सियासी चर्चाएं तेज़ हो जाती हैं. इसके कुछ ही देर बाद राहुल रैली के मंच पर होते हैं और हमला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर होता है. बीजेपी इन हमलों के जवाब देने के लिए अपने दिग्गजों की टीम उतरती है और उलझकर रह जाती है. राहुल आगे बढ़ जाते हैं.

गुजरात की सियासी जंग जीतने के लिए राहुल गांधी सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर है. मुस्लिम बहुल इलाके में होनी वाली रैलियों में राहुल के साथ संत महंत मंच पर नजर आते हैं. राहुल का काफिला आगे निकलता है तो रास्ते में पड़ने वाली किसी मस्जिद पर न वो रुकते हैं और नही माथा टेकते हैं.

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रैलियों के भाषण में राहुल की जुबान से ट्वीट की वही लाइनें निकलती हैं, जिसको टीवी और सोशल मीडिया बतौर खबर इस्तेमाल कर सकें. अपने भाषण में राहुल कोशिश करते हैं कि, जनता के साथ संवाद कर सकें. हर सवाल, आरोप और अपनी बात पर वो जनता से हामी भरवाते हैं.

राहुल के भाषण में आंकड़ों की नई चासनी

राहुल कहते हैं- मोदीजी ने आदिवासी इलाकों में योजना के तहत 2007 मैं 15000 करोड रुपए देने का वादा किया था. वह पूरा नहीं हुआ फिर 2012 में 40000 करोड़ रुपए देने का वादा किया आप लोग बताइए कि क्या 40 और 15 मिलाकर 55000 करोड़ रुपए आपको मिले जनता बोलती है नहीं.

राहुल कहते हैं- जल जंगल जमीन गुजरात की परंपरा है मोदी जी ने जल जंगल जमीन आदिवासियों से ली, लेकिन बदले में कुछ नहीं दिया, कुछ मिला क्या आपको?

राहुल ने कहा- चीन में हर 24 घंटे में 50 हजार रोजगार मिलते हैं जब के हिंदुस्तान में सिर्फ 450 अब मोदी जी बताएं कि, साल में दो करोड़ रोजगार का क्या हुआ. फिर राहुल बोलते हैं कि, भारत 70 हज़ार रोज़गार रोज पैदा कर सकता है.

राहुल गांधी ने कहा- गुजरात में मोदी जी ने 7:50 लाख एकड़ जमीन अधिग्रहीत की लेकिन 60 फ़ीसदी जमीन इस्तेमाल नहीं की क्या वह आदिवासियों को वापस की गई, नहीं की गई,  जवाब कौन देगा मोदी जी बताइए.

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राहुल बोलते हैं- मोदी जी टाटा की नैनो के लिए आपने 33 हजार करोड़ रुपए का कर्ज दिया, लेकिन मैं गुजरात घूम रहा हूं नैनो तो दिखती नहीं, इतने पैसे में तो गुजरात के किसानों का कर्ज माफ हो जाता. लेकिन मोदीजी ने किसानों का कर्ज माफ नहीं करते हैं.

सबसे वादा किया था मोदी जी ने कि, सबको घर दूंगा . आप बताएं मिला या नहीं, जनता जोर से बोली नहीं. तो राहुल हंसते हैं. पर राहुल खुद कैसे देंगे इसका जवाब राहुल को देना होगा।

राहुल आम आदमी से जुड़ने की कोशिश

राहुल जब आदिवासी की समस्या की बात करते हैं तो मंच पर भाषण देने के लिए बुलाते हैं एक आदिवासी नौजवान को उसको हिंदी नहीं आती राहुल कहते हैं तुम बोलो मैं किसी और से ट्रांसलेट करके समझ लूंगा और तुम्हारा साथ दूंगा.

राहुल को एहसास है कि उनका जीएसटी यानी गब्बर सिंह टैक्स का डायलॉग हिट हो गया है जनता ताली बजाती है वोट की बात तो बाद में होगी लेकिन खुश होकर राहुल बोल पड़ते हैं. गब्बर सिंह टैक्स यानी यह टैक्स मुझे दे दे यह कमाई मुझे दे दे राहुल डायलॉग भी बोलते हैं.

चुनाव प्रचार के दौरान राहुल जब अपनी गाड़ी की छत पर निकलते हैं और भीड़ भाड़ कम होती है तो वह किसी प्यारी लड़की के कहने पर उसको अपने साथ बिठाकर सेल्फी खींचने का मौका भी देते हैं शायद जानते हैं संदेश दूर तक जाएगा.

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चुनाव प्रचार के दौरान देरी हो जाती है रात का 10:00 बज जाता है सब जानते हैं कि नेता भाषण नहीं दे सकते तो राहुल देरी के चलते भाषण तो नहीं देते. लोगों के बीच जाते हैं सेल्फी खिंचवाते हैं. उसमें बूढ़े जवान सब होते हैं पर बच्चों का खास ख्याल रखते हैं, लेकिन अहम बात होती है की इलाके में परंपरा क्या है परंपरा के तहत वह आदिवासियों के मोर पंख के बीच खड़े होते हैं फोटो खिंचाते हैं कोशिश करते हैं उनसे अपनापन हो जाए.

राहुल को एहसास है कि, सियासत में रैलियां भाषण इंतजार का हिस्सा है देर से सभा में पहुंचते हैं तो सबसे पहले कहते हैं माफी दे दो जनता माफी दे दो देर से आया हूं. पहले फंस गया था चुनाव प्रचार में था गलती मेरी है धूप में आप है मेरे ऊपर छतरी है, लेकिन ताकीद करते हैं अपने नेताओं को अगर मैं छतरी में हूं तो जनता भी छतरी में होनी चाहिए और अगर जनता को छतरी नहीं दे सकते तो मुझे छतरी नहीं चाहिए.

मुस्लिम तुष्टिकरण की छवि से निकलते हुए राहुल अब महाभारत का पाठ भी पढ़ाते हैं कहते हैं पांडवों की तरफ से भगवान कृष्ण दुर्योधन से मिलने गए और सिर्फ 5 गांव मांगे दुर्योधन ने जवाब दिया सुई की नोक बराबर भी जमीन नहीं दूंगा. तब भी सत्य और असत्य की लड़ाई थी आज भी लड़ाई सत्य और असत्य की है.  एक और मोदी जी के पास पुलिस सेना और सरकार हैं जो दूसरी तरफ मेरे पास सिर्फ सच्चाई और गुजरात की जनता है. यह सही है हिंदुस्तान में हमेशा सत्य जीता है.

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सियासी जमीन पर राहुल

राहुल मंच पर भाषण देते वक्त जनता से पूछते हैं 15 लाख मिले मोदी जी के वायदे पूरे हुए और जवाब सुनते हैं यह राहुल का नया अंदाज है भाषण देते वक्त राहुल विकास की बात करते हैं जब जनता कहती है वह भी गुजरात की विकास पागल हो गया है तो वह मुस्कुरा कर कहते हैं मैं नहीं कहता आप कहते हैं.

अंदाज़ ए राहुल यह भी है कि, वह आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के बीच में अपना मंच छोड़कर नीचे आते हैं. एक महिला से हाथ मिलाते हैं और फिर मुस्कुराकर हंसते हुए कहते हैं कि आपने इतनी जोर से हाथ मिलाया कि इतनी जोर से तो कोई मर्द भी नहीं मिला सकता. फिर हंसते हुए राहुल बोलते हैं, आप ही बताइए कि, क्या संसद में महिलाओं को आरक्षण मिलना चाहिए जोर से आवाज आती है हां हां हां.

राहुल को नालापोंडा में तानपुरा भेंट किया जाता है, राहुल भेंट स्वीकार ही नहीं करते, बल्कि तानपुरा बजाते हैं. ये भी अंदाज़ ए राहुल ही रहा.

जब से जनता में बात आई कि, राहुल आईकीडो में ब्लैक बेल्ट हैं, तो जनता राहुल से इस बारे में पूछती है, मुस्कुराकर राहुल हामी भरते हैं. फिर जनता और राहुल के बीच प्यार भरा पंजा लड़ाने का मुकाबला भी हो जाता है.

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गुजरात की जंग में कूदे राहुल दिन का सियासी प्रचार खत्म करने के बाद राहुल नौजवान के अंदाज़ में अपनी नीली टीशर्ट पहनकर काठियावाड़ी रेस्टॉरेन्ट में 11 बजे गुजराती खाना भी खाते हैं. साथ में अशोक गहलोत, अहमद पटेल, शक्ति गोहिल, भरत सोलंकी, सिद्धार्थ पटेल, सरीखे नेता भी होते हैं. बाद में जनता के साथ खूब सेल्फी भी होती है.

दरअसल राहुल अपने अन्दाज़ से मीडिया, सोशल मीडिया में छाए रहने की कवायद करते दिखते हैं. राहुल अपने तरीक़ों से जनता से जुड़ने और उनके करीब होने की कोशिश करते हैं, लेकिन सियासत की इस कठिन डगर में अंदाज़ नहीं कांग्रेस को अंजाम तक पहुंचाना राहुल का मक़सद है, और इसी बात पर राहुल की सियासी सफलता और असफलता का फैसला होगा.

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