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गुजरात चुनाव: न मोदी न शाह... ऊपर से पाटीदार नाराज, क्या कांग्रेस का खत्म होगा वनवास?

गुजरात में कुल 182 विधानसभा सीटें है. 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत के साथ जीत हासिल की थी. राज्य की 182 सीटों में से बीजेपी ने 115, कांग्रेस 63 और अन्य को 4 सीटें मिली थी. लेकिन अगस्त में हुए राज्यसभा चुनाव में कई कांग्रेसी विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम लिया है.

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राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी
राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी

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गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान आज हो सकता है. जबकि गुजरात का सियासी तापमान पिछले एक महीने से काफी गर्म है. बीजेपी गुजरात की सत्ता पर पिछले पांच बार से काबिज है और छठी बार के लिए बेताब है. वहीं कांग्रेस दो दशक से गुजरात में सत्ता का वनवास झेल रही है, जिसे खत्म करने के लिए राहुल राज्य की जमीन पर उतरकर जद्दोजहद कर रहे हैं.

गुजरात में कुल 182 विधानसभा सीटें हैं. 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत के साथ जीत हासिल की थी. राज्य की 182 सीटों में से बीजेपी ने 115, कांग्रेस 61 और अन्य को 4 सीटें मिली थी. लेकिन अगस्त में हुए राज्यसभा चुनाव में कई कांग्रेसी विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम लिया है.

गुजारत के 2012 विधानसभा चुनाव में मिले वोटों पर नजर डालें तो बीजेपी को 47 फीसदी और कांग्रेस को 38 फीसदी वोट मिले थे. 2007 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 49 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन 2012 में उसे 2 फीसदी कम वोट मिले थे और 2 सीटों का भी नुकसान उठाना पड़ा था. जबकि कांग्रेस के वोट फीसदी में किसी तरह की कोई बढ़ोतरी नहीं हुई. कांग्रेस महज 9 फीसदी वोटों से बीजेपी से पीछे रही.

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गुजरात के तत्तकालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की यह लगातार तीसरी जीत थी, जिसने राज्य में पार्टी के पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए थे. लेकिन मौजूदा समय में हालात बदल गए है. पंद्रह साल बाद सूबे में बीजेपी सीएम का चेहरा नरेंद्र मोदी नहीं होंगे. मोदी-शाह के दिल्ली में आ जाने से राज्य में बीजेपी के पास ऐसा कोई करिश्माई चेहरा नहीं बचा है जो पार्टी और सरकार को उस रुतबे के साथ आगे ले जा सके. हालांकि कांग्रेस के पास भी कोई ऐसा चेहरा नहीं है जिसके सहारे गुजरात की जंग फतह कर सके.

बीजेपी के लिए गुजरात में चुनौतियों का अंबार है. गुजरात के किंग मेकर कहे जाने वाले 20 फीसदी पाटीदार समुदाय जो बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है वह भी कहीं न कहीं से नाराज माने जा रहे हैं. इसके अलावा ऊना कांड के चलते दलितों में कहीं न कहीं नाराजगी बीजेपी के लिए भारी पड़ सकती है.

पिछले तीन सालों में गुजरात में विजय रुपाणी तीसरे सीएम हैं. नरेंद्र मोदी के 2014 में पीएम बनने के बाद उन्होंने अपनी जगह आनंदी बेन पटेल को गुजरात सीएम की कुर्सी सौंपी थी, लेकिन इस कुर्सी पर ज्यादा दिन वह नहीं रह सकीं. सूबे के बिगड़ते हालात के लिए आनंदी बेन की जगह विजय रुपाणी को सीएम बनाया गया है. सीएम के बदलाना बीजेपी का बैकफुट कदम माना जा रहा है. गुजरात में दो दशक से ज्यादा समय से कांग्रेस सत्ता से बाहर है. राज्य में करीब 18 साल से बीजेपी का राज है. इतने लंबे समय से राज करने की वजह से बीजेपी के प्रति लोगों में नाराजगी बढ़ी. एंटी इंकबैंसी का माहौल बीजेपी के लिए मुसीबत का सबब साबित हो सकती है.

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गुजरात की राजनीतिक हालात को बीजेपी बाखूबी समझ रही है. इसीलिए पीएम मोदी लगातार अपने गृह राज्य गुजरात का दौरा कर रहे हैं. पिछले 12 महीने में उन्होंने 12 बार राज्य का दौरा किया है. पार्टी नरेंद्र मोदी के बार-बार राज्य में दौरे करवाकर माहौल को अभी से अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है. इसके अलावा अमित शाह भी पूरी तरह सक्रिय हैं. पटेलों की नाराजगी को दूर करने के लिए लगातार कोशिशें बीजेपी कर रही है.

बीजेपी ने विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को बड़ा झटका भी दिया है. शंकर सिंह वाघेला सहित कई कांग्रेसी नेताओं ने पार्टी को अलविदा कह दिया है. शंकर सिंह वाघेला जहां अलग पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में उतर रहे हैं तो वहीं कांग्रेस के बागी विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम लिया है.

दूसरी ओर राहुल गांधी सत्ता के वनवास को तोड़ने के लिए पिछले 1 महीने दो बार गुजरात की यात्रा कर चुके हैं. इतना ही नहीं गुजरात में बीजेपी के हथियार से मात देने की कोशिश कर रहे हैं. राहुल ने गुजरात में सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चलने की रणनीति अपनाई है.

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