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गुजरात डायरीः शौचालय बनवाने के लिए दो साल लड़ा दलित परिवार

पीएम मोदी के गृह जिला में दलित परिवार को अपने घर के आगे शौचालय बनवाने के लिए लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी. एक शौचालय बनवाने में लग गए दो साल.

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गुजरात विधानसभा चुनाव 2017 : कितना हुआ विकास
गुजरात विधानसभा चुनाव 2017 : कितना हुआ विकास

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह जिले में एक दलित परिवार को अपने घर के आगे शौचालय बनवाने के लिए लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी. ये लड़ाई इतनी लंबी चली कि शौचालय बनवाने में परिवार को दो साल लग गए. 

गुजरात के जिले मेहसाणा में एक गांव है, लक्ष्मीपुरा-भांडू. मेहसाणा से गांव पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगता है, क्योंकि सड़क पक्की और सही हालत में है. शहर से गांव जाते हुए एक सवाल मुझे बार-बार परेशान कर रहा है. सवाल यह कि अगर किसी परिवार के पास अपने लिए शौचलाय बनवाने का सामर्थ्य हो, उसने सारे समान का इंतजाम भी कर लिए हो तो शौचालय बनने में कितना वक्त लग सकता है?

शायद पांच महीने, छह महीने या ज्यादा से ज्यादा साल भर. उससे ज्यादा तो नहीं ही लग सकता.

लेकिन, लक्ष्मीपुरा-भांडू गांव में रह रहे एक मात्र दलित परिवार के मुखिया भीखाभाई सेनमा को अपने परिवार के लिए शौचालय बनवाने में दो साल से ज्यादा का समय लग गया. इतना वक्त इसलिए लगा, क्योंकि वो दलित हैं और उनके आसपास रह रहे चौधरी परिवार. चौधरी परिवारों को इनके शौचालाय बनवाने से दिक्कत थी. उन दो वर्षों में खूब कागजी कार्रवाई हुई.

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यह पूरा वाकया फरवरी 2016 में सामने आया. खबरें बनीं और फिर जिला प्रशासन पर दबाव बनने पर आनन-फानन में भीखाभाई के घर के पास स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचलाय बनवाया गया. इस गांव की आबादी करीब पांच सौ है और इनमें ज्यादातर घर चौधरी जाति के हैं. भीखाभाई सनेमा इसी गांव में अपने 13 सदस्यों वाले परिवार के साथ रहते हैं.

गांव की शुरुआत में ही उनके परिवार का घर हैं. सड़क के बिलकुल किनारे. घर के चारों ओर खूब हरियाली है. आगे की तरफ खूब सारे ऐसे पौधे लगे हैं, जिनकी शाखाएं आपस में मिलकर एक दीवार-सी बन गई है. झाड़ियों की दीवार. घर साफ-सुथरा है. हर चीज कायदे से अपनी जगह पर रखी हुई है. घर के पास सरकारी नल है. पास में एक झोपड़ी है, जिसमें जलावन के लिए सूखी लकड़ियां रखी हुई हैं. बगल में ही मिट्टी का एक बड़ा मटका रखा है, मटका परिवार का फ्रिज है.

इनके घर के पास ही एक मंदिर भी है, जिसमें देवी दुर्गा का एक कैलेंडर टंगा हुआ है.

परिवार के मुखिया भीखाभाई घर पर नहीं हैं. वो बाहर किसी काम से गए हैं, लेकिन परिवार के बाकी सदस्य हैं. गुजरात में फिलहाल चुनाव का माहौल है. राजनैतिक गहमागहमी वाले इस माहौल के बीच इस दलित परिवार के पास आने की एक मुख्य वजह यह जानना है कि जिस परिवार को अपने लिए शौचालय बनवाने के लिए दो साल की लड़ाई लड़नी पड़ी वो आज कैसे रह रहा है?

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यहां आपको यह भी बताते चलें कि जिला मेहसाणा पीएम मोदी का गृह जिला है और यहां से थोड़ी ही दूर पर है उनका जन्मस्थान वडनगर.

सेनमा मेहुल परिवार के एक युवा सदस्य हैं और संस्कृत से बीए कर रहे हैं. उनके मुताबिक घर में हर वक्त किसी ना किसी मर्द सदस्य को रहना ही पड़ता है. वो कहते हैं, ‘घर में किसी ना किसी मर्द को रहना पड़ता है. अभी पिताजी बाहर गए हैं, सो मैं यहां हूं.’

ये सुनने में थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन ऐसा ही है. उनके मुताबिक सड़क से जाते-आते दूसरी जाति के कुछ लोग फब्तियां कसते हैं. गालियां भी देते हैं. मेहुल बताते हैं, ‘इधर शराब पीते हैं और सड़क से आते-जाते कुछ बोलते हुए जाते हैं. वैसे तो कोई हमें छेड़ता नहीं है, लेकिन भय बना रहता है.’

सेनमा मेहुल संस्कृत की पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन उनके परिवार का कोई भी सदस्य गांव के मंदिर की चौखट नहीं लांघ सकता है और इसी वजह से इन्होंने अपने घर के बाहर मंदिर बनवाया है. इनके मंदिर में भी देवी दुर्गा की तस्वीर लगी है. शायद ये वाली देवी दुर्गा दलित हैं!

इस बारे में परिवार की एक वरिष्ठ सरिता बेन कहती हैं, ‘हम उनके मंदिर में नहीं जा सकते हैं. इसलिए हमने अपना अलग मंदिर बनवा लिया है.’

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यहां उस घटना का जिक्र करना सही लगा, क्योंकि इस परिवार के मन में बसे भय की झलक साफ दिखती है. घर के अहाते में ही सरिता बेन से बात करना चाह रहे हैं, लेकिन इनकी तरफ से एक इशारा हुआ कि बातचीत वहां खुले में ना करके अंदर की जाए. वजह यह कि आसपास के चौधरी परिवारों को पता चलेगा तो दिक्कत होने की संभावना है.

(अगर आप इस वाकये को देखना चाहते हैं तो वीडियो को 09: 32 से 10:01 मिनट तक देखें)

यहां इनकी अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार का क्या हो रहा है, वो आप पाठक तय करें.

परिवार में एक युवा लड़की है. उसका नाम सेनमा रिंकू है और यहां इसका ननिहाल है. रिंकू वहीं की बेटी है, जहां के बेटे हैं पीएम मोदी यानी रिंकू का पैतृक निवास वडनगर है. रिंकू के पिताजी का काफी पहले निधन हो गया, जिसकी वजह से वो अपने ननिहाल में रह रही है और अपने स्नातक की पढ़ाई पूरी कर रही है.

बकौल रिंकू दलितों के साथ होने वाले छूआछूत में कोई बदलाव नहीं आया है. आज भी हालात वैसे ही हैं. वो कहती हैं, ‘कुछ नहीं बदला है. आज भी हम एक साथ पानी नहीं भर सकते. सार्वजनिक मंदिर में तो जा ही नहीं सकते. अगर उनका कोई कार्यक्रम होता है और अगर हम खाने जाते हैं तो हमारा इंतजाम अलग से होता है, हम वहीं खाते हैं. हम उनके घर में ही नहीं जा सकते. हम बाहर ही रहते हैं. अगर उन्हें पानी-वानी हमें देना होता है तो वो ऊपर से ही देते हैं. जैसा पहले था, अभी भी वही है.’

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एक तरफ बेटी को बचाने और पढ़ाने के वायदे हो रहे हैं. बेटियों को आगे बढ़ाने की बातें हो रही हैं, वहीं यह लड़की शाम होने से पहले घर लौट आती है, क्योंकि अगर किसी ऊंची जाति के लड़के-आदमी ने इसके साथ कोई गलत हरकत की और इसने उनके परिवार से शिकायत की तो इसे कहा जाता है कि मेरा लड़का तो शराब के नशे में था, आप तो होश में थे ना?

रिंकू कॉलेज जाती है. उसे वो सारी बड़ी-बड़ी बातें मालूम हैं, जो किताबों में दलितों को लेकर की जाती हैं, लेकिन जब वो अपने गांव लौटती है तो हालात एकदम उल्टा पाती है. वो पढ़कर बस एक सरकारी नौकरी चाहती है.

शौचालय बन जाने के बाद यह परिवार अपने घर के आगे एक पक्की दीवार बनवाना चाहता है, ताकि सड़क और उनके घर के बीच एक पक्का पर्दा बन सके. फिलहाल परदे का काम कुछ हद तक वो झाड़ियां कर रही हैं, जो इन्होंने लगाई हैं. असल में परिवार के पास कोई बाथरूम नहीं है. नल भी बस दरवाजे पर ही लगा है. परिवार के मर्द सदस्यों के लिए तो कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन महिला सदस्यों को नहाने से लेकर कपड़ा धोने तक का सारा काम इसी नलके पर करना पड़ता है. ऐसे में परिवार की महिलाएं नहाने के लिए अंधेरे का सहारा लेती हैं.

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परिवार की एक मात्र युवती रिंकू अपने कॉलेज सुबह के दस बजे जाती है, लेकिन नहाती सुबह ही है. यह सवाल जब हमने उससे पूछा कि तुम कब नहाती हो तो वो हंसते हुए कहती है, ‘सुबह के चार बजे. जब अंधेरा रहता है. सुबह होने के बाद तो नहा नहीं सकती ना, सो सुबह-सुबह अंधेरे में ही नहाती हूं.’

रिंकू अपनी मासूम हंसी के साथ यह बात बहुत ही सहजता से बोल जाती है. वो इसके लिए ना तो किसी से शिकायत करती है और ना ही कहते हुए परेशान होती है. लेकिन उसके इस एक जवाब से विकास के उन दावों की पोल खुलती है, जिसकी चर्चा इनदिनों आम है.

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