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गुजरात चुनाव: दूसरे दौर में BJP के सामने अपना मजबूत किला बचाने की चुनौती

उत्तर गुजरात में बीजेपी का दबदबा रहा है. पिछले 2012 के विधानसभा चुनाव में इस इलाके की 53 विधानसभा सीटों में से बीजेपी को 32 और कांग्रेस को 21 सीटें मिली थीं. लेकिन बदले सियासी समीकरण में गुजरात में मामला कांग्रेस और बीजेपी में करीबी मुकाबला नजर आ रहा है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

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गुजरात के सियासी जंग में पहले दौर के बाद अब जोर आजमाइश मध्य गुजरात और उत्तर गुजरात में है. प्रदेश की सियासत में इन दोनों क्षेत्रों की खास अहमियत है. इन दोनों क्षेत्रों में से उत्तर गुजरात बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जाता है. बीजेपी उत्तर गुजरात के जरिए पिछले दो दशक से सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होती रही है. लेकिन इस बार बीजेपी के लिए उत्तर गुजरात को फतह करना आसान नहीं लग रहा है. ऐसे में बीजेपी के सामने अपने मजबूत किला बचाने की सबसे बड़ी चुनौती है. 

2012 में बीजेपी का दबदबा

बता दें कि उत्तर गुजरात में बीजेपी का दबदबा रहा है. पिछले 2012 के विधानसभा चुनाव में इस इलाके की 53 विधानसभा सीटों में से बीजेपी को 32 और कांग्रेस को 21 सीटें मिली थीं. लेकिन बदले सियासी समीकरण में इस बार गुजरात में मामला कांग्रेस और बीजेपी में करीबी मुकाबला नजर आ रहा है.

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उत्तर गुजरात के जिले

उत्तर गुजरात में गांधीनगर, बनासकांठा, साबरकांथा, अरवली, मेहसाना और पाटन जिले आते हैं. माना यही जा रहा है कि इस बार गुजरात में बीजेपी को कांग्रेस कड़ी टक्कर देने की स्थिति में नजर आ रही है. हार्दिक पटेल से लेकर अल्पेश ठाकोर इस क्षेत्र से आते हैं.

किसे मिली कितनी सीटें

गौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव में उत्तर गुजरात की बनासकांठा जिले की 9 विधानसभा सीटों में बीजेपी ने  4 और कांग्रेस के कब्जे में 5 सीटें हैं, पाटन जिले की 4 सीटों में से 3 पर बीजेपी और 1 पर कांग्रेस का कब्जा है. महेसाणां जिले में 7 विधानसभा सीटें हैं, इनमें 5 बीजेपी और 1 कांग्रेस का कब्जा है. राज्य के उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल महेसाणां सीट से ही विधायक हैं और दोबारा से चुनावी मैदान में है. साबरकांठा की 4 सीटों में से 3 कांग्रेस और 1 बीजेपी के पास हैं. जबकि अहमदाबाद से सटे गांधीनगर की 5 विधानसभा सीटों में से 2 पर भाजपा और 3 पर कांग्रेस का कब्जा है.

बीजेपी की कमजोर होती पकड़

2012 के चुनावों में वोट शेयर के देखते हैं तो कांग्रेस से बीजेपी करीब 10 फीसदी आगे थी. शंकर सिंह वघेला के इसी क्षेत्र से आते हैं. वघेला ने कांग्रेस से बगावत करके चुनावी मैदान में है. वाघेला फैक्टर कांग्रेस के लिए नुकसान साबित हो सकता है. लेकिन अगर शंकर सिंह वाघेला फैक्टर काम नहीं करता है तो कांग्रेस और बीजेपी के बीच अंतर और कम हो सकता है.

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उत्तर गुजरात की सीमाएं राजस्थान से सटी हुई हैं. राजस्थान से लगी हुए कई विधानसभा सीटें हैं. कांग्रेस ने अशोक गहलोत को गुजरात का प्रभारी बनाकर इन सटे हुए क्षेत्रों में अपनी पकड़ को और भी मजबूत बनाया है.

 बीजेपी के लिए पटेल बने चुनौती

उत्तर गुजरात के सियासी फैसले में किसानों, पाटीदारों, ओबीसी और आदिवासियों की अहम भूमिका रहती है. पाटीदारों और किसानों पर मजबूत पकड़ के चलते बीजेपी लगातार सत्ता के सिंहासन पर काबिज होती आ रही है. पटेल आंदोलन का सर्वाधिक असर इसी इलाके में रहा है. इसी मद्देनजर राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीजेपी की पकड़ उत्तर गुजरात में कमजोर हुई है. ऐसे में बीजेपी ने अपने दुर्ग को बचाने के लिए एनआरआई पटेलों की लॉबी को मैदान में उतारा है. अब देखना है कि बीजेपी अपना किला बचाने में कामयाब होती है या नहीं.

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