पहली बार सूरत आना हुआ और दो दिन रुकना भी हुआ. जब आप यह डायरी पढ़ रहे होंगे तो मैं सूरत छोड़ चुका होऊंगा.
…तो चलिए जल्दी से आपको बता दूं कि अपने कपड़ा-व्यापार के दम पर देश-दुनिया में पहचान बनाने वाला यह शहर अपने मिजाज में कैसा है?
दो दिनों में जितना देख-समझ पाया, उसके आधार पर यह कह सकता हूं कि यह शहर अभी लड़कपन से किशोर होने वाले अंदाज में है.
शहर सुबह आराम से उठता है. देर रात तक बाइक से तफरी करता है. अगर आप यहां किसी से कहते हैं कि सुबह 6 बजे मिलते हैं तो सामने वाला कहता है - आराम से मिलते हैं ना? नौ बजे के आसपास.
शहर में व्यापार तो है, लेकिन सड़कों पर बहुत भागमभाग नहीं है. बेचैनी नहीं है. एक दूसरे से मीठा बोलते हैं. अगर किसी बाइक वाले ने कार में खरोंच मार दी तो सड़क पर महाभारत शुरू नहीं होता.
यह अपने दो दिनों के अनुभव और महीनों से रह रहे यहां के लोगों से हुई बातचीत के आधार पर कह रहा हूं. चुनावी मौसम है, लेकिन, सड़कों पर चलते हुए या चौराहों से गुजरते हुए इसका अंदाजा नहीं होता है. जैसे उत्तरी भारत, खासकर बिहार और यूपी से महसूस होता आया है. कई कारण होंगे इसके, एक कारण यह दिखा कि नेताओं के पोस्टर चौराहों पर नहीं लगे हैं. कल मुझे पहला पोस्टर दिखा है और वो भी अपने प्रधान सेवक जी का.
आखिर में वो बात, जो शीर्षक में लिखा है. रविवार की रात तकरीबन दस बजे पीपलोध गया था. पीपलोध को आप ऐसे समझें कि यह दिल्ली का सीपी बाजार है या आप जिस शहर में रहते हैं, वहां का सबसे विकसित, चर-फर इलाका.
मुझे सबसे ज्यादा अचम्भा यह देख कर महसूस हुआ कि यहां के लोग अपने परिवार के साथ सड़क किनारे सहज रूप से खाना खाते-पीते-बतियाते दिखे. स्ट्रीट लाइट में पढ़ने वाले लोगों के बारे में तो सुना था, लेकिन इस लाइट में लोगों को अपना रात्रि खाना खाते हुए देखने का यह मेरा पहला अनुभव था. माहौल पूरा पारिवारिक था.
लेकिन, इससे थोड़ी दूर पर माहौल बिलकुल उलट मिला. चौड़ी सड़क उतनी चौड़ी नहीं थी, जैसे यहां पर आने से पहले थी. स्ट्रीट लाइट थी, लेकिन वैसी जैसे कमरे में जीरो वाट् का बल्ब जल रहा हो. इस रौशनी में सड़क किनारे एक के बाद एक कई दोपहिये लगे थे और ज्यादातर दोपहिये से सटे, उसकी ओट में प्रेमिल माहौल था. कोई पूछने वाला नहीं. कोई ताकझांक करने वाला नहीं.
मेरा मानना है कि जो शहर प्रेम को लेकर इतना सहज हो उसे दुनिया की कोई भी ताकत सुखी होने से, खुशमिजाज होने से नहीं रोक सकता. सूरत के साथ भी ऐसा ही है. यहां प्रेम पर पहरा नहीं है. कोई चौकीदार नहीं है. इसलिए वो खुश हैं. तरक्की कर रहे हैं.
सूरत से फिलहाल इतना ही...