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मध्य गुजरात में बीजेपी पहले से ज्यादा हुई ताकतवर, कांग्रेस का लगा झटका

गुजरात की 182 सीटों में से 40 सीट मध्य गुजरात से आती है. इस सीटों में से बीजेपी ने 23 सीट जीतने में कामयाब रही, वहीं कांग्रेस के खाते में 16 सीटें गई हैं. जबकि पिछले चुनाव 2012 में दोनों पार्टियों के बीच कांटे का मुकाबला रहा है. मध्य गुजरात की 40 सीटों में से 22 पर बीजेपी ने जीत दर्ज की और कांग्रेस को 18 सीटें हासिल की थीं. इस बार कांग्रेस को 2 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है.

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पीएम नरेंद्र मोदी
पीएम नरेंद्र मोदी

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गुजरात की सियासी बाजी एक बार बीजेपी के नाम रही. सहकारी संस्थाओं और दुग्ध उत्पादन के लिए मशहूर मध्य गुजरात में बीजेपी का दबदबा कायम रहा. बीजेपी ने अपनी सीट बचाई ही नहीं, बल्कि पिछले चुनाव से बेहतर नतीजा हासिल किया है. कांग्रेस अपनी पहले वाली सीट बचाने में भी नाकाम रही है. राज्य के मध्य क्षेत्र में कांग्रेस को दो सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है.

बीजेपी को मिली पहले से ज्यादा सीटें

गुजरात की 182 सीटों में से 40 सीट मध्य गुजरात से आती है. इस सीटों में से बीजेपी ने 23 सीट जीतने में कामयाब रही, वहीं कांग्रेस के खाते में 16 सीटें गई हैं. जबकि पिछले चुनाव 2012 में दोनों पार्टियों के बीच कांटे का मुकाबला रहा है. मध्य गुजरात की 40 सीटों में से 22 पर बीजेपी ने जीत दर्ज की और कांग्रेस को 18 सीटें हासिल की थीं. इस बार कांग्रेस को 2 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है.

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मध्य गुजरात में अहमदाबाद, दाहोद, खेड़ा, आणंद, पंचमहल, वडोदरा जिले आते हैं. इनमें से अहमदाबाद और वडोदरा बीजेपी का मजबूत गढ़ है. ये दोनों जिले शहरी क्षेत्र में हैं. बीजेपी ने पिछले चुनाव की तरह इस बार भी शहरी सीटों को जीत का परचम लहराने के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में अपने पैर पसारे हैं.

इन जिलों में किसी मिली कितनी सीटें

अहमदाबाद जिले में 15 बीजेपी और 6 कांग्रेस को मिली है. बडोदरा की बीजेपी को 8 और कांग्रेस को 2 सीटें मिली हैं. पंचमहल की चार पांच सीटों में से 3 बीजेपी, 1 कांग्रेस और 1 अन्य को मिली है. आणंद में 2 बीजेपी और 3 कांग्रेस को मिली है. जबकि पिछले चुनाव में अहमदाबाद की 21 सीटों में बीजेपी ने 17 तो 4 कांग्रेस सीटें जीती थी.

कोली, ओबीसी बीजेपी के लिए बने संजीवनी

मध्य गुजरात का क्षेत्र में व्यापारी, पाटीदार, ओबीसी  और कोली समुदाय के मतदाओं का दबदबा है. पाटीदारों की नाराजगी को बीजेपी ने ओबीसी और कोली समाज को अपने साथ जोड़कर नुकसान की भरपाई की है. जबकि मध्य गुजरात में पाटीदार आरक्षण आंदोलन सहित बेरोजगारी-कारोबार पर असर ज्वलंत, किसानों की कर्जमाफी का मुद्दा छाया हुआ था. इसके बावजूद बीजेपी अपनी बावशाहियत को बचाने में सफल रही है. वहीं कांग्रेस को शहरी सीटों में जहां कुछ फैयदा हुआ है तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है.

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