पाटीदार आरक्षण आंदोलन के जरिए अपनी पहचान बनाने वाले हार्दिक पटेल ऐसे सियासी चक्रव्यूह में फंस गए हैं कि उनके पास कांग्रेस के सिवा कोई और विकल्प नहीं बचा है. हार्दिक पटेल ने कांग्रेस को समर्थन करने के एवज में कुछ मांगें रखी हैं, जिसमें से कांग्रेस ने कई मान भी ली हैं, हालांकि आरक्षण के मुद्दे पर गोलमोल ही जवाब दिया है. लेकिन राजनीतिक समीकरण बताते हैं कि कांग्रेस का रुख कुछ भी हो, हार्दिक पटेल के पास कांग्रेस का समर्थन करना ही एकमात्र विकल्प है.
गुजरात की सियासत में दो प्रमुख पार्टियां हैं. एक सत्ताधारी बीजेपी, जो पिछले पांच विधानसभा चुनाव से लगातार जीत रही है. दूसरी तरफ कांग्रेस, जो दो दशक से गुजरात में सत्ता का वनवास झेल रही है. इसके अलावा बाकी दलों के लिए गुजरात में कुछ खास नहीं है.
हार्दिक पटेल ने 2015 में पाटीदार समुदाय के लिए आरक्षण आंदोलन शुरू किया. इसके चलते हार्दिक और सत्ताधारी बीजेपी आमने-सामने आ गई. हार्दिक की सारी लड़ाई बीजेपी के खिलाफ थी. हार्दिक ने बीजेपी यहां तक कि खुद प्रदानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ शब्दों के चयन में कोई परहेज नहीं किया. यही वजह है कि बीजेपी के अंदर हार्दिक के लिए सारे दरवाजे बंद हो गए हैं.
गुजरात विधानसभा चुनाव का बिगुल बजते ही कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने हार्दिक पटेल को साथ आने का न्योता दिया. हार्दिक ने कांग्रेस को समर्थन करने के लिए शर्तें रखीं, जिनमें से कांग्रेस ने कुछ मानी और कुछ टाल दीं. कांग्रेस के इस रवैये पर हार्दिक ने ट्वीट करके चेतावनी देते हुए कहा कि 3 नवंबर तक पार्टी पाटीदारों को संवैधानिक आरक्षण देने पर अपना रुख साफ करे और बताए कि वह संवैधानिक आरक्षण कैसे देगी.
हार्दिक ने चेताते हुए कहा कि कांग्रेस इस मुद्दे पर अपना स्टैंड क्लियर कर दे नहीं, तो सूरत में अमित शाह जैसा मामला होगा. बता दें कि सूरत में अमित शाह की रैली में पाटीदारों ने जमकर बवाल मचाया था. कुर्सियां उठाकर फेंक दी थी और शाह के विरोध में नारे लगाए थे.
हार्दिक लाख चेतावनी दें, लेकिन अगर अब गुजरात की सियासत में उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है. कांग्रेस चाहे हार्दिक की शर्त माने, चाहे न माने. इसके बावजूद उन्हें कांग्रेस का समर्थन करना मजबूरी है.