गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजे एक बार फिर बीजेपी के लिए खुशी की सौगात लेकर आए हैं. दिल्ली से लेकर गुजरात और पूरे देश में बीजेपी कार्यकर्ताओं में जश्न का माहौल है. 22 सालों से लगातार सत्ता पर काबिज बीजेपी फिर से बहुमत के साथ सरकार बनाती दिख रही है.
बोरसद सीट
लेकिन कुल 182 सीटों में कुछ सीटें ऐसी भी हैं, जहां लाख कोशिशों के बावजूद बीजेपी को जीत नसीब नहीं हो पाई है. इनमें एक सीट बोरसद है. आणंद जिले की इस सीट का इतिहास बीजेपी के लिए हैरान करने वाला रहा है. 1962 में गुजरात विधानसभा का गठन होने के बाद से 2017 तक कभी भी बीजेपी को यहां से जीत नहीं मिल पाई है. हालांकि, ये भी एक तथ्य है कि बीजेपी की स्थापना 1980 में हुई थी.
इस सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार राजेन्द्र सिंह परमार ने जीत दर्ज की है. उन्हें 86254 वोट मिले हैं. जबकि बीजेपी प्रत्याशी रमणभाइ सोलंकी को 74786 वोट हासिल हुए.
महुधा सीट
खेड़ा जिले की ये सीट भी बीजेपी के लिए हमेशा चिंता का विषय रही है. 22 सालों से गुजरात की सत्ता पर काबिज बीजेपी एक बार शासन करने जा रही है, लेकिन महुधा में उसका कमल नहीं खिल पाया है.
पिछले 6 चुनाव में कांग्रेस के नटवर सिंह ठाकोर ने यहां से बाजी मारी है. 2012 में उन्होंने 58373 वोट पाकर बीजेपी के रतनसिंह सोधा को हराया था, जिन्हें 45143 वोट मिले थे.
जबकि 2007 में नटवर सिंह ने बीजेपी के नटवरलाल भट्ट को शिकस्त दी थी. इससे पहले नटवर सिंह ठाकोर ने 2002, 1998, 1995 और 1990 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता था. हालांकि, इस बार कांग्रेस ने इंद्रजीत के रूप में नया कैंडिडेट उतारा और उन्होंने 78 हजार वोट पाते हुए जीत दर्ज की.
व्यारा सीट
व्यारा सीट दक्षिण गुजरात के सूरत जिले का हिस्सा है. ये सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. आजादी के बाद से अब तक इस सीट का इतिहास भी बीजेपी के विरोध में ही रहा है. बीजेपी आज तक यहां कोई चुनाव नहीं जीत पाई है.
इस बार यहां से कांग्रेस के प्रत्याशी गामीत पुनाभाई ढेडाभाई को 87140 वोट मिले हैं. जबकि उनके विरोधी बीजेपी कैंडिडेट अरविंदभाई रूमसीभाई चौधरी को 63677 वोट मिले हैं.
1962, 1967, 1972, 1975 में कांग्रेस को यहां से जीत मिली. इसके बाद 1980 इंदिरा गांधी की कांग्रेस को यहां से जीत हासिल हुई. 1985 में कांग्रेस कैंडिडेट विजेता रहे. इसके बाद 1990 और 1995 में यहां से निर्दलीय उम्मीदवार जीते और फिर 1998, 2002, 2004(उपचुनाव), 2007 और 2012 के बाद 2017 में भी कांग्रेस कैंडिडेट ने ही जीत दर्ज की.
झगाड़िया सीट
आदिवासी बाहुल्य भरुच जिले की झगाड़िया सीट मुख्य राजनीतिक दल कांग्रेस और बीजेपी के दायरे से बाहर जनता दल यूनाइटेड के खाते में भी जाती रही है.
अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस सीट पर लगातार 6 बार से छोटूभाई वसावा जीतते आ रहे हैं. 1990 में उन्होंने जनता दल उम्मीदवार के तौर पर यहां जीत दर्ज की थी. जिसके बाद 1995 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर बाजी मारी. 1998 में फिर जनता दल और उसके बाद लगातार जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर छोटूभाई वसावा जीतते रहे.
यानी इस सीट से कभी भी बीजेपी उम्मीदवार को जीत नसीब नहीं हो पाई है. हालांकि, 1985 और उससे पहले यहां से हमेशा कांग्रेस को जीत मिलती रही है. मौजूदा चुनाव में छोटूभाई वसावा ने भारतीय ट्रायबल पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और उन्हें 113854 वोट मिले, जबकि बीजेपी कैंडिडेट
रवजीभाई ईश्वरभाई वसावा को 64906 वोट मिले.