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गुजरात में कांग्रेस की पहली रणनीतिक जीत, ये युवा चौकड़ी BJP की राह में रोड़ा!

कांग्रेस न सिर्फ इन युवा नेताओं के जरिए गुजरात में वापसी करना चाह रही है, बल्कि गुजरात के जरिए वह राहुल गांधी की राजनीतिक इमेज भी चमकाना चाह रही है.

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हार्दिक, अल्पेश और जिग्नेश ने बीजेपी के खिलाफ बिगुल फूंक दिया है
हार्दिक, अल्पेश और जिग्नेश ने बीजेपी के खिलाफ बिगुल फूंक दिया है

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गुजरात विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस को बहुत बड़ी रणनीतिक जीत मिली है. गुजरात में लंबे समय से दिख रहे युवा असंतोष की पहचान बन चुके हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर का समर्थन कांग्रेस उपाध्यक्ष युवा नेता राहुल गांधी को मिलता नजर आ रहा है. अब देखना यह है कि गुजरात की जनता इन चार युवा नेताओं - राहुल, हार्दिक, अल्पेश और जिग्नेश को हाथों-हाथ लेती है या नहीं.

चारों युवा नेताओं ने मोदी के गुजरात मॉडल में लगा दी है सेंध

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने गृह राज्य गुजरात के विकास का मॉडल पेश कर देश की सत्ता में आए. विकास को अपने हर चुनावी अभियान का नारा बना चुकी बीजेपी के लिए आगे भी गुजरात मॉडल ही सहारा होगा. लेकिन बीते कुछ महीनों के दौरान इन चारों युवा नेताओं ने जिस तरह गुजरात में आरक्षण, शराबबंदी, बेरोजगारी और दलित उत्पीड़न जैसी समस्याओं का पिटारा खोला है, उससे मोदी के इस गुजरात मॉडल में सेंध नजर आने लगी है.

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पाटीदारों के मसीहा के तौर पर उभरे हार्दिक पटेल

पटेल अनामत आंदोलन के जरिए हार्दिक पटेल को प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में नई पहचान मिली. अहमदाबाद के विरमगांव में जन्में हार्दिक अभी 24 साल के ही हैं, लेकिन उनकी रैलियों में जिस तरह लाखों की संख्या में पाटीदार समुदाय जुटा, उससे गुजरात की राजनीति में उनकी ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है. सबसे अहम यह है कि गुजरात में पाटीदारों की आबादी 18 फीसदी है और राज्य की 182 विधानसभा सीटों में से 70 सीटों पर पटेल समुदाय का प्रभाव है. पिछले दो दशक से राज्य का पटेल समुदाय बीजेपी का परम्परागत वोटर रहा है, जो फिलहाल नाराज माना जा रहा है. इसी का नतीजा रहा कि 2015 में हुए जिला पंचायत चुनाव में सौराष्ट्र की 11 में से 8 पर कांग्रेस विजयी रही और बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा.

उना से दलित उत्पीड़न के खिलाफ उठी आवाज के प्रतीक बने जिग्नेश

गुजरात के उना में ऊंची जाति के लोगों द्वारा दलित समुदाय के युवकों की बेरहमी से पिटाई ने गुजरात में दलित उत्पीड़न की ओर पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया. जिग्नेश पेशे से वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. ऊना में गोरक्षा के नाम पर दलितों की पिटाई के खिलाफ हुए आंदोलन जिग्नेश ने नेतृत्व किया. जिग्नेश ने वो काम कर दिखाया, जिससे दलित समाज सदियों से मुक्त होना चाहता था. दलितों के हक में जिग्नेश द्वारा शुरू किए गए 'आजादी कूच आंदोलन ' से जिस तरह दलितों के अलावा मुस्लिम समुदाय एकजुट हुआ, उसने निश्चित तौर पर बीजेपी के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दीं. गौरतलब है कि गुजरात में सात फीसदी दलित आबादी है.

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ओबीसी चेहरा अल्पेश ने मिलाया कांग्रेस से हाथ

गुजरात में 60 से ज्यादा सीटों पर अच्छा प्रभाव रखने वाले ओबीसी समुदाय के नए प्रतिनिध बनकर उभरे अल्पेश ने शनिवार को दिल्ली में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की और जल्द ही कांग्रेस को समर्थन देने का एलान कर दिया है. अल्पेश की पहचान तीन साल पहले ठाकोर सेना से बनी थी. अल्पेश ने गुजरात में शराबबंदी के बावजूद हर जगह आसानी से मिलने वाली देसी शराब को बड़ा मुद्दा बनाया. अल्पेश की अगुआई में ठाकोर सेना ने मध्य और उत्तर गुजरात में देसी शराब के ठिकानों पर 'जनता रेड' करना शुरू किया. अल्पेश ने नशा मुक्ति अभियान के साथ गुजरात में बड़ी संख्या में युवकों के बेरोजगार होने के मुद्दे को भी साथ ले लिया. अल्पेश ने साथ ही ठाकोर सेना का दायरा बढ़ाते हुए पूरे ओबीसी समाज को भी इसमें जोड़ दिया. गुजरात में ओबीसी समाज की 146 जातियां हैं, जो 60 से ज्यादा सीटों पर अपना असर रखती हैं. अल्पेश ने गुजरात के करीब 80 देहात की विधानसभा सीटों पर बूथ स्तर पर प्रबंधन का काम किया है. पिछले कई चुनाव से ओबीसी मतदाता बीजेपी के साथ रहे हैं, लेकिन कुछ समय से ओबीसी समुदाय नाराज है. अल्पेश इसी नाराजगी को कैश कराने के मूड में हैं.

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बदला-बदला है राहुल का अंदाज

अब बात करते हैं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की. कांग्रेस अब तक राहुल गांधी के नेतृत्व या उनके करिश्मे के बूते कोई चुनाव नहीं जीत पाई है. लेकिन बीते कुछ दिनों से राहुल का बिल्कुल नया चेहरा देखने को मिल रहा है. गुजरात में उनकी रैलियों में न सिर्फ अपार भीड़ जुट रही है, बल्कि उनके भाषणों में भी नया चुटीलापन आया है. राहुल गांधी अब 23 अक्टूबर को गुजरात में अल्पेश की जनसभा में अल्पेश के साथ मंच साझा करते नजर आएंगे. आने वाले दिनों में राहुल जब गुजरात के इन युवा नेताओं के साथ मंच साझा करेंगे, तो देखने वाली बात होगी कि गुजरात की जनता इन्हें कैसे लेती है.

कांग्रेस न सिर्फ इन युवा नेताओं के जरिए गुजरात में वापसी करना चाह रही है, बल्कि गुजरात के जरिए वह राहुल गांधी की राजनीतिक इमेज भी चमकाना चाह रही है.

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