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बीजेपी के लिए क्या केशुभाई पटेल से बड़ी चुनौती बन पाएंगे हार्दिक?

गुजरात में कांग्रेस से सत्ता छीनकर उसे बीजेपी की झोली में डाल देने का श्रेय केशुभाई पटेल को जाता है. हालांकि केशुभाई पटेल ने 2012 में बीजेपी से बगावत करके जब अलग किस्मत अजमाई तो पाटीदार समाज ने उन्हें भाव नहीं दिया. अब एक बार फिर पटेल समुदाय से 24 साल के हार्दिक पटेल ने बीजेपी के खिलाफ झंडा बुलंद किया है. सवाल उठ रहे हैं कि क्या हार्दिक पटेल बीजेपी के लिए 2012 के केशुभाई पटेल से भी बड़ी चुनौती साबित होंगे?

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केशुभाई पटेल और हार्दिक पटेल
केशुभाई पटेल और हार्दिक पटेल

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गुजरात की सियासत में पाटीदार किंगमेकर की भूमिका निभाते हैं. वो राज्य में सरकार बनवाने से लेकर बिगाड़ने तक का माद्दा रखते हैं. पाटीदार गुजरात में कांग्रेस से अलग हुए तो 22 साल से पार्टी सत्ता से बाहर है. दूसरी ओर बीजेपी उन्हीं के सहारे राज्य में एक के बाद एक लगातार पांच विधानसभा चुनाव जीतकर सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होती आ रही है.

गुजरात में कांग्रेस से सत्ता छीनकर उसे बीजेपी की झोली में डाल देने का श्रेय केशुभाई पटेल को जाता है. हालांकि केशुभाई पटेल ने 2012 में बीजेपी से बगावत करके जब अलग किस्मत अाजमाई तो पाटीदार समाज ने उन्हें भाव नहीं दिया. अब एक बार फिर पटेल समुदाय से 24 साल के हार्दिक पटेल ने बीजेपी के खिलाफ झंडा बुलंद किया है. सवाल उठ रहे हैं कि क्या हार्दिक पटेल बीजेपी के लिए 2012 के केशुभाई पटेल से भी बड़ी चुनौती साबित होंगे? हार्दिक के साथ दिख रहा पाटीदार क्या बीजेपी के खिलाफ वोट करेगा? क्या हार्दिक पटेल गुजरात में नरेंद्र मोदी के रथ को रोकने में कामयाब हो पाएंगे?

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गुजरात का किंग मेकर

गुजरात में पाटीदार समुदाय करीब 16 फीसदी है. राज्य की 182 सीटों में से 60-65 सीटें ऐसी हैं, जहां पाटीदार समुदाय जीत-हार तय करता है. पिछले चुनाव में करीब 50 विधायक पटेल समुदाय से ही जीते थे. बीजेपी विधायक दल में 44 विधायक पाटीदार हैं. उपमुख्यमंत्री सहित कैबिनेट में 10 मंत्री पटेल हैं.

केशुभाई ने जमाई बीजेपी की जड़ें

गुजरात में बीजेपी को मजबूती से खड़ा करने में केशुभाई पटेल की अहम भूमिका रही है. उन्होंने गुजरात में बीजेपी की जड़ों को इतना मजबूत किया कि पार्टी पिछले दो दशक से सत्ता पर काबिज है. राज्य में पहली बार 1995 में बीजेपी की सरकार बनी और केशुभाई पटेल के सिर मुख्यमंत्री का ताज सजा. केशुभाई ने पाटीदार समाज को बीजेपी का परंपरागत मतदाता बना दिया. हालांकि सियासत ने ऐसी करवट ली कि केशुभाई पटेल को सात महीने के बाद ही मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा. इसके बाद 1998 में केशुभाई दोबारा मुख्यमंत्री बने और करीब चार साल तक मुख्यमंत्री रहे. बाद में उन्हें हटाकर नरेंद्र मोदी को बीजेपी ने मुख्यमंत्री बनाया.

पाटीदार केशुभाई पटेल के भी नहीं हुए

केशुभाई पटेल ने बीजेपी से बगावत करके अपनी अलग गुजरात परिवर्तन पार्टी बनाई. 2012 के विधानसभा चुनाव में राज्य की 182 सीटों में से 164 सीटों पर अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे. विधानसभा चुनाव अपने शबाब पर था. पाटीदारों के गढ़ राजकोट में मोदी के तब धुर विरोधी रहे केशुभाई पटेल की रैली थी. मैदान खचाखच भरा था और 'बापा तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं’ के नारे से गूंज रहा था.

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केशुभाई ने अपने सियासी दौर में यह नारा कई बार सुना रहा होगा लेकिन इस बार बात कुछ अलग थी. 2012 में केशुभाई पटेल बीजेपी के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए वोट मांग रहे थे. केशुभाई ने माइक पकड़ा और कहा कि यह आप लोगों को सुनिश्चित करना है कि इस इलाके से बीजेपी एक भी सीट न जीतने पाए. वो ये बात अपनी हर रैली में दोहरा रहे थे. लेकिन जब चुनावी नतीजे आए तो केशुभाई पटेल के सारे अरमान धरे रह गए.

केशुभाई की पार्टी को महज 2 सीटें मिलीं और करीब 4 फीसदी वोट मिले. नरेंद्र मोदी परिणाम साफ होते ही सबसे पहले केशुभाई पटेल के पास गए और उन्हें मिठाई खिलाई. नतीजों ने साफ कर दिया कि केशुभाई पाटीदार समुदाय के नेता कभी रहे होंगे लेकिन आज मोदी का वक्त है और गुजरात की राजनीति में केशुभाई की कोई अहमियत नहीं बची है.

केशुभाई पटेल के विद्रोह से बीजेपी को बहुत बड़ा नुकसान नहीं हुआ. वो महज कुछ सीटों पर असर डाल पाए. गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जय प्रकाश प्रधान कहते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ने 2012 में लोगों को तीसरा विकल्प देकर गलती कर दी. नाराज पटेल वोट तो उन्हें मिले, लेकिन इससे न तो बीजेपी को नुकसान हुआ और न ही कांग्रेस को फायदा. इस बार पटेलों के पास बीजेपी से नाराजगी का कांग्रेस ही विकल्प है.

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हार्दिक बने बीजेपी की चुनौती

नरेंद्र मोदी के गुजरात से दिल्ली आने से राज्य में बीजेपी की पकड़ कमजोर हुई है. 2014 के बाद ही हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पाटीदार आरक्षण आंदोलन खड़ा हुआ. पाटीदारों के इस आंदोलन ने धीरे-धीरे पूरे गुजरात के युवाओं को अपने साथ मिला लिया. हार्दिक पटेल के नेतृत्व में शुरू हुए पटेल आंदोलन ने बीजेपी की दिक्कतें बढ़ा दीं. इसी का नतीजा रहा कि 2015 में हुए जिला पंचायत चुनाव में सौराष्ट्र की 11 में से 8 सीटों पर कांग्रेस विजयी रही. हार्दिक पटेल की चुनौती से बीजेपी परेशान है. बीजेपी हार्दिक की काट के लिए हरसंभव कोशिश में लगी है, लेकिन अभी तक पाटीदारों पर चढ़ा बुखार उतरने का नाम नहीं ले रहा है.

हार्दिक की रैलियों में पाटीदार समाज की भीड़ जुट रही है. युवा बेरोजगार गरीब पाटीदारों का एक बड़ा खेमा हार्दिक को समर्थन कर रहा है. गुजरात में युवाओं की बड़ी तादाद ऐसी भी है, जिन्होंने बीजेपी के सिवा किसी और पार्टी का शासन देखा ही नहीं. उधर बीजेपी के साथ पाटीदारों के पैसे वाले लोग अभी भी जुड़े हुए हैं. ऐसे में हार्दिक बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए कितनी बड़ी चुनौती बनते हैं ये 18 दिसंबर को मतगणना के वक्त साफ होगा.

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