तीन चेहरे... हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी, अल्पेश ठाकोर. तीनों की बिसात, और 2017 को लेकर बिछाई है ऐसी चौसर जिसमें 2002, 2007, 2012 के चुनाव में करीब 45 से 50 फीसदी तक वोट पाने वाली बीजेपी के पसीने निकल रहे हैं. यानी जिस मोदी के दौर में हार्दिक जवान हुए. जिग्नेश और अल्पेश ने राजनीति का ककहरा पढ़ा. वही तीनों 2017 में ऐसी राजनीति इबारत लिख रहे हैं. जहां पहली बार खरीद-फरोख्त के आरोप बीजेपी पर लग रहे हैं.
गुजरात में हवा इतनी बदल रही है कि राहुल गांधी भी अल्पेश ठाकोर को कांग्रेस में शामिल कर मंच पर बगल में बैठाने पर मजबूर हैं. गुपचुप तरीके से हार्दिक पटेल से मिलने को मजबूर हैं. चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद जिग्नेश से भी हर समझौते के लिए तैयार हैं.
- बीजेपी-कांग्रेस दोनों इस तिकड़ी के सामने नतमस्तक है.
- ओबीसी-दलित-पाटीदार नये चुनावी समीकरण के साथ हर समीकरण बदलने को तैयार है.
- 18 से 35 बरस के डेढ़ करोड़ युवा अपनी शर्तों पर राजनीति को चलाना चाहते हैं.
सवाल ये है कि क्या गुजरात बदल रहा है क्योंकि...
- पाटीदार समाज बीजेपी का पारंपरिक वोट बैक रहा है.
- अल्पेश ठाकोर के पिता खोडाजी ठाकोर कांग्रेस में आने से पहले संघ से जुड़े रहे हैं.
- दलित समाज खुद को ठगा हुआ महसूस करता रहा.
यानी चेहरे के आसरे अगर राजनीति होती है तो फिर समझना होगा 2002 से 2012 तक मोदी अपने बूते चुनाव जीतते रहे. दिल्ली से बीजेपी नेता के प्रचार की जरूरत कभी मोदी को गुजरात में नहीं पड़ी, तो मोदी के बाद बीजेपी का कोई ऐसा चेहरा भी नहीं बना जिसके आसरे बीजेपी चल सके और अब मोदी दिल्ली में है और चेहरा खोजती गुजरात की राजनीति में कोई चेहरा कांग्रेस के पास भी नहीं है.
ऐसे में इन तीन चेहरे यानी हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी, अल्पेश ठाकोर पर देश की दोनों बड़ी पार्टियों की निगाहें टिकी हैं. क्योंकि गुजरात में 54 फीसदी ओबीसी, 18 फीसदी पाटीदार और 7 फीसदी दलित आबादी है.
हार्दिक, जिग्नेश और अल्पेश सिर्फ चेहरे भर नहीं हैं, बल्कि इनके साथ जुड़ा वही वोट बैक हैं जिसपर कभी बीजेपी काबिज रही. खासकर 54 फीसदी ओबीसी और 18 फीसदी पाटीदार. पहली बार 7 फीसदी दलित भी उभर कर सामने हैं.