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सूरत कपड़ा मार्केट: ‘मोदी जी को सुनना अच्छा लगता है लेकिन मालूम है जो सुन रहे हैं वो भ्रम है’

जब देश में नोटबंदी हुई या जीएसटी लागू हुआ तो सूरत के कपड़ा व्यापारियों को इसकी बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी. बक़ौल इन व्यापारियों के आज भी मार्केट अपने पुराने रुतबे में नहीं लौटा है.

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सूरत कपड़ा मार्केट
सूरत कपड़ा मार्केट

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शाम के सात-साढ़े सात का वक़्त हो रहा है. रिंग रोड पर स्थित सूरत का टेक्सटाइल मार्केट इस शहर का सबसे व्यस्त इलाक़ा है. सड़क पर वैसे ही भाग-दौड़ मची है, जैसे दिल्ली के चांदनी चौक इलाक़े में रहती है. बस वहां के मुक़ाबले यहां की सड़कें चौड़ी हैं और सड़क को बीच से काटते हुई एक फ़्लाइओवर गुज़र रहा है. हर बड़े शहर की तरह यहां भी लोग सर पर गठरी लेकर इधर से उधर भागते दिखते हैं. सड़क किनारे कतार से माल ढोने वाली गाड़ियां यहां भी वैसे ही खड़ी हैं.

मार्केट के बाहर बड़े-बड़े बोर्ड लगे हैं, जिसमें अंग्रेजी मॉडल्स साड़ी पहने बैठी हैं, लेटी हैं या चहलक़दमी के अंदाज में चिपकी पड़ी हैं. यह एक चीज़ आपको पुरानी दिल्ली में नहीं मिलेगी क्योंकि वहां तो एक दुकान दूसरी में घुसी रहती है. बोर्ड टांगने की जगह वहां किसके पास है? ख़ैर तभी वो पुरानी दिल्ली का साड़ी मार्केट है और ये सूरत का टेक्सटाइल मार्केट . यहां 165 कपड़ा मार्केट हैं और हर मार्केट में क़रीब-क़रीब 500 दुकानें हैं. ज़्यादातर दुकानों में यहां साड़ी, लहंगा-दुपट्टा मिलता है, लेकिन अब कुछ दुकानों में रेडीमेड ड्रेस भी मिलने लगी हैं.

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जब देश में नोटबंदी हुई या जीएसटी लागू हुआ तो सूरत के कपड़ा व्यापारियों को इसकी बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी. बक़ौल इन व्यापारियों के आज भी मार्केट अपने पुराने रुतबे में नहीं लौटा है. एक व्यापारी ने कहा कि अभी शादियों का मौसम है और इस वक़्त तो यहां इतनी भीड़ रहती है कि आप पूछिए मत. हमारे मुताबिक़ सड़क पर ठीक-ठाक भीड़ है लेकिन स्थानीय व्यापारी के मुताबिक इस भीड़ को भीड़ नहीं मानते, सामान्य सा है.

केंद्र सरकार के हालिया दो कदम नोटबंदी और जीएसटी से इस मार्केट को हुए नुकसान और इस वजह से व्यापारियों में उपजी नाराज़गी को भांपने के लिए हमने रूख किया ‘फ़ेडरेशन ऑफ सूरत टेक्सटाइल ट्रेडर्स एसोसीएशन (फ़ोसटा)’ के दफ़्तर का. जैसा की हमने आपको ऊपर बताया इस इलाक़े में 165 कपड़ा मार्केट हैं और हर मार्केट का अपना एक एसोसिएशन है. फ़ोसटा उन सभी एसोसिएशन्स का एसोसिएशन है और इसी वजह से इसे यहां कपड़ा बाज़ार के ‘एसोसिएशन्स का एसोसिएशन’ भी कहा जाता है.

फ़ोसटा के दफ़्तर से हमने यूट्यूब लाइव किया 

लेकिन यह रिपोर्ट उस लाइव के बाद जो बातें हुईं उसके बारे में है. जीएसटी और नोटबंदी से हुए नुकसान के बारे में व्यापारी एक मत हैं. सबका कहना है कि भारी नुक़सान हुआ है और बाज़ार अभी तक मंदी के दौर से गुज़र रहा है लेकिन जैसे ही बात आती है आगामी चुनाव में बीजेपी के समर्थन करने न करने की तो इनके बीच का मतभेद सामने आ जाता है. यूट्यूब लाइव के दौरान एसोसिएशन के 12 डायरेक्टरों में से एक रंगनाथ साढा ने कहा कि व्यापारी नाराज़ हैं, दुखी हैं लेकिन वो वोट तो बेजीपी के लिए ही करेंगे. घर की बात है. घर के लोगों से नाराज़गी है तो इसमें बाहर वालों को फ़ायदा नहीं मिलेगा.

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जब हम लाइव से लौटे तो दफ़्तर में बैठे फ़ोसटा प्रेसिडेंट मनोज अग्रवाल और ट्रेसरार राजेश अग्रवाल ने उनसे अपनी असहमती जताई. बक़ौल मनोज अग्रवाल व्यापारी हमेशा से बेजेपी के साथ रहे हैं लेकिन इस बार स्थिति अलग है. वो कहते हैं, ‘लोगों में बहुत ग़ुस्सा है. सबका धंधा चौपट हुआ है. इसलिए यह कहना कि सारे के सारे कपड़ा व्यापारी बेजीपी के साथ ही रहेंगे, सही नहीं होगा.

यह बातचीत क़रीब एक घंटे तक चली. चार लोग कमरे में थे, चारों व्यापारी. चारों बीजेपी को वोट देने वाले लेकिन आज की तारीख में उनके बीच ही समहती नहीं है. ऐसे में सभी 45-50 हज़ार व्यापारियों के बारे में कुछ कहना सही में जल्दीबाज़ी होगी.

सूरत जिले में 16 विधानसभा सीट हैं और इसमें से 15 सीटों पर बेजेपी के विधायक हैं, 1 कांग्रेस के पास है. जिले की एक सीट ऐसा है जिसपर कपड़ा व्यापारियों का समर्थन किसी भी पार्टी के लिए मायने रखता है और वो है, मजूरी. तो क्या आगामी चुनाव में मजूरी सीट पर बेजीपी को दिक्कत हो सकती है? स्थानीय पत्रकार ऐसा नहीं मानते हैं. उनके मुताबिक़ सूरत का यह वर्ग बीजेपी का कैडर वोटर है. व्यापारी तबके में जीएसटी की वजह से नाराज़गी है लेकिन वो बीजेपी से अलग नहीं रहेंगे. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि फ़िलहाल व्यापारियों में जो छटपटाहट दिख रही है या कुछ ही सही लेकिन जो व्यापारी अब बेजीपी के ख़िलाफ खुलकर बोल रहे हैं वो भी नया ट्रेंड है.

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इस बात को आप फ़ोसटा के प्रेसीडेंट मनोज अग्रवाल की बात से बेहतर समझ पाएंगे. वो कहते हैं, ‘हम जादू देखने जाते हैं ना? पता होता है कि जादूगर जो दिखा रहा है वो भ्रम है लेकिन आंखों को अच्छा लगता है.

इसलिए देखते हैं और ताली भी बजाते हैं. वैसा ही अब मोदी जी के साथ है. उनके मुंह से बड़ी-बड़ी बात सुनना अच्छा लगता है लेकिन दिल में चलता है कि जो सुन रहे हैं ना वो भ्रम है. उसका हकीकत से कोई सरोकार नहीं.’

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