गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. कांग्रेस से मिली बेरुखी के बाद भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) ने आम आदमी पार्टी (आप) के रूप में नया दोस्त तलाश लिया है. बीटीपी ने AAP के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है, जिसका ऐलान अरविंद केजरीवाल एक मई को गुजरात स्थापना दिवस पर भरुच के आदिवासी महासम्मेलन में करेंगे. ऐसे में सवाल उठता है कि यह गठबंधन गुजरात में कांग्रेस या बीजेपी किसका सियासी खेल बिगाड़ने का काम करेगा?
AAP और BTP के बीच गठबंधन हुआ
बीटीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेश वसावा और आम आदमी पार्टी के गुजरात संयोजक गोपाल इटालिया ने गठबंधन की घोषणा की है. उन्होंने बताया कि बीटीपी के संस्थापक व विधायक छोटूभाई वसावा ने दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल से मुलाकात कर चुनाव लड़ने का फैसला किया है. इस तरह आम आदमी पार्टी ने गुजरात में आदिवासी वोट बैंक को साधने सेंध लगाने के लिए आदिवासी समुदाय के बीच पकड़ रखने वाली बीपीटी के साथ हाथ मिलाया है.
बीटीपी के गुजरात में दो और राजस्थान में तीन विधायक हैं. बीटीपी का राजस्थान के उदयपुर, डूंगरपुर के इलाके में मजबूत पकड़ है तो गुजरात के बांसवाडा, बनासकांठा, अंबाजी, दाहोद, पंचमहाल, छोटा उदेपुर, नर्मदा जिले में अच्छी पैठ है. पिछले चुनाव में बीटीपी ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा थी, जिसका सियासी फायदा दोनों ही पार्टियों को आदिवासी बेल्ट में मिला था.
हालांकि, लोकसभा चुनाव 2019 में बीटीपी ने भरूच सीट छोड़ने की मांग रखी थी, लेकिन कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी उतार दिया था. बीटीपी इसी के बाद से कांग्रेस से नाराज चल रही थी, जो आम आदमी पार्टी के रूप में उसे मजबूत विकल्प मिल गया है. भरुच के चंदेरिया गांव में एक मई को आदिवासी संकल्प महासम्मेलन कर केजरीवाल और छोटू वसावा गठबंधन की घोषणा करेंगे.
15 फीसदी आदिवासी का 27 सीटों पर असर
गुजरात में 15 फीसदी आदिवासी समाज कई उपजातियों में बंटा हुआ है. इनमें भील, डुबला, धोडिया, राठवा, वर्ली, गावित, कोकना, नाइकड़ा, चौधरी, धानका, पटेलिया और कोली (आदिवासी) हैं. आदिवासी समुदाय गुजरात की 182 विधानसभा सीटों में से 27 सीटों पर खास प्रभाव रखते हैं और पांच जिलों में इनकी अच्छी खासी आबादी है. बनासकांठा, साबरकांठा, अरवल्ली, महिसागर, पंचमकाल दाहोद, छोटा उदेपुर, नर्मदा, भरूच , तापी, वलसाड, नवसारी, डांग, सूरत में अदिवासी समाज के लोग जीत-हार का फैसला करते हैं.
गुजरात में आदिवासी वोटबैंक की सियासी ताकत देखते हुए सभी पार्टियां अपनी ओर खींचने की कवायद करती हैं. बीजेपी और कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी भी बीटीपी के जरिए अपने पाले में करने की जुगत में है. इसीलिए सभी पार्टियां आदिवासी वोटों को अपने-अपने पाले में करने के लिए अभी से जुट गई हैं. हालांकि, अभी तक गुजरात में आदिवासी वोटों की पहली पसंद कांग्रेस रही है.
आदिवासी बहुल सीटों पर कांग्रेस का दबदबा
2017 के गुजरात चुनाव में आदिवासी समाज का 50 फीसदी से ज्यादा वोट कांग्रेस को मिला था जबकि 35 फीसदी वोट ही बीजेपी को मिल सका था. 10 फीसदी वोट अन्य के खाते में गया था. आदिवासी समाज कांग्रेस का कोर वोटबैंक माना जाता है और पिछले कई चुनाव से कांग्रेस के पाले में खड़ा है. 2007 के चुनाव में 27 आदिवासी बहुल सीटों में से कांग्रेस ने 14 सीटें जीती थी, तो 2012 में 16 सीटों पर कब्जा जमाया था. 2017 में कांग्रेस ने 14 आदिवासी सीटें अपने नाम की थीं, वहीं एक सीट बीटीपी (भारतीय ट्राइबल्स पार्टी) को मिली थी और 9 सीटें ही बीजेपी को मिल सकी थी.
आदिवासी वोटों को सहेजने में जुटी कांग्रेस
कांग्रेस गुजरात की सत्ता में वापसी के लिए बेताब है. ऐसे में अपने कोर वोटबैंक को कांग्रेस मजबूती के साथ जोड़े रखना की हरसंभव कोशिश में जुटी है. कांग्रेस ने आदिवासी समाज को अपने पाले में बनाए रखने के लिए विधानसभा में सुखराम राठवा को अपना नेता बनाया है तो साथ में बीटीपी के युवा नेता राजेश वसावा को अपने साथ मिलाकर बीटीपी की सियासी झटका दिया है. कांग्रेस आदिवासी वोटों पर पकड़ बनाए रखने के लिए आदिवासी मुद्दों उठाने से पीछे नहीं हट रही. इसीलिए गुजरात की सत्ता पर भले ही बीजेपी 27 सालों से काबिज हो, लेकिन गुजरात के ग्रामीण इलाके में कांग्रेस की पकड़ हमेशा से रही है.
बीजेपी की नजर आदिवासी वोटबैंक पर
बीजेपी इस बार के चुनाव में आदिवासी वोटों पर खास नजर गढ़ाए हुए हैं, जिसके चलते कांग्रेस के आदिवासी विधायकों को अपने साथ मिलाकर भूपेंद्र पटेल सरकार मंत्री बनाने से लेकर आदिवासी सम्मेलन तक का दांव चल रही है. बीजेपी ने कांग्रेस के 16 विधायकों को अपने साथ मिलाया था, जिनमें से 5 विधायक आदिवासी समुदाय से थे और बाद में उनमें से तीन को मंत्री भी बनाया है. बीजेपी आदिवासी वोटबैंक को अपनी तरफ खींचने के लिए गुजरात की भूपेंद्र पटेल सरकार में आदिवासी समुदाय के चार नेताओं को मंत्री बनाया है. साथ ही पीएम मोदी भी आदिवासियों को साधने के लिए दाहोद में आदिवासी सम्मेलन कर चुके हैं.
AAP क्या कांग्रेस का खेल बिगाड़ेगी
कांग्रेस अपने आदिवासी वोटबैंक को मजबूती से जोड़े रखने में जुटी हैं तो बीजेपी और आम आदमी पार्टी सेंधमारी के लिए बेताब हैं. आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए आम आदमी पार्टी ने बीटीपी से गठबंधन किया है. ऐसे में निश्चित तौर पर आदिवासी बहुल 27 सीटों पर आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है. आदिवासी नेता छोटू वसावा भरूच जिले की झगड़िया सीट से विधायक चुनते आ रहे हैं और उन्हें हराना आसान नहीं है. हालांकि, बीटीपी और आम आदमी पार्टी के बीच सीट बंटवारा नहीं हो सका है. ऐसे में देखा है कि आम आदमी पार्टी और बीटीपी मिलकर क्या सियासी करिश्मा दिखाती हैं?