गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 में अब राजनीति के कई रंग देखे जा रहे हैं. इन रंगों में एक रंग है, दल-बदल की राजनीति. राजकोट की जसदण सीट पर भी 2017 के चुनाव के बाद दल-बदल की राजनीति देखी गई. इसने पूरे जसदण की राजनीति को ही बदल दिया.
दरअसल, राजकोट की जसदण सीट बीजेपी और कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा की जंग भी मानी जाती है. इस सीट पर राजनीतिक पार्टी से ज्यादा उम्मीदवार का व्यक्तित्व देखा जाता है. वैसे तो जसदण सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है. यहां 1995 से 2017 तक लगातार कांग्रेस ने जीत हासिल की है.
मगर, 2009 और 2019 में हुए उपचुनाव में दोनों बार बीजेपी ने जीत हासिल की. जसदण सीट पर 1995 से कोली समुदाय से आने वाले कुंवरजी बावलिया कांग्रेस से विधायक रहे हैं. 2009 में लोकसभा चुनाव में भी राजकोट सीट से कुंवरजी बावलिया चुनाव जीते थे.
इसके बाद 2009 में हुए उपचुनाव में बीजेपी के डॉ. भरत बोधरा की जीत हुई. वहीं, साल 2012 में विधानसभा चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस विजयी हुई.
बीजेपी को टिकट देने की चुनौती
कुंवरजी बावलिया 2017 के चुनाव में कांग्रेस से जसदण विधानसभा सीट पर जीत हासिल की. हालांकि, उन्होंने इसके बाद बीजेपी का दामन थाम लिया. इस सीट पर 2019 में उपचुनाव हुए और कुंवरजी बावलिया बीजेपी से चुनाव जीत गए.
उस दौर के गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी की कैबिनेट में 3 साल तक मंत्री भी रहे. उनकी पहचान दलबदलू नेता के रूप में होती है. ऐसे में सवाल है कि कुंवरजी बावलिया को इस बार बीजेपी टिकट देगी या नहीं. वहीं, गुजरात बीजेपी के उपाध्यक्ष भरत बोधरा भी यहां से चुनाव लड़ना चाहते हैं.
जातिगत मतदाताओं के आंकड़े
जसदन विधानसभा सीट पर हमेशा कोली वोटर का दबदबा देखा गया है. जसदण सीट पर अगर जाति की बात करें तो 70 हजार कोली वोटर हैं. लेउवा पाटीदार वोटरों की संख्या 40 से 42 हजार है. कडवा पाटीदार वोटरों की तादाद 10 हजार है.
भरवाड और रबारी समाज के वोटर की तादाद भी 12 हजार के आस-पास है. अगर वोटिंग प्रतिशत में देखें, तो 100 प्रतिशत वोटर में से 35 प्रतिशत कोली, 20 प्रतिशत लेउवा पटेल, 10 प्रतिशत दलित, 7 प्रतिशत मुस्लिम, 7 प्रतिशत कड़वा पटेल, 8 प्रतिशत क्षत्रिय और 13 प्रतिशत अन्य वोटर हैं.