गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर चुनावी मैदान में उतरने वाले सभी राजनीतिक दल अपने-अपने तरीके से चुनावी जमीन तैयार करने में जुट गए हैं. गुजरात में राजनीतिक, विकास के साथ-साथ जातिवाद पर भी की जाती हैं. जिसमें उत्तर गुजरात में सबसे ज्यादा जातिवाद की राजनीति देखी जाती हैं. यहां 2012 और 2017 में गेनी बेन ठाकोर (कांग्रेस) और शंकर चौधरी (बीजेपी) के बीच मुकाबला हुआ था. यहां पार्टी से ज्यादा प्रत्याशी का अपना दवदवा होता है. वैसे में सवाल यह खड़ा होता है कि क्या इस चुनाव में भी मुकाबला इन दोनों नेताओं के बीच ही होगा?
2017 में कांग्रेस विधानसभा चुनाव में वाव सीट पर काफी अच्छा प्रदर्शन किया था. हालांकि, इस बार वाव विधानसभा सीट पर कांग्रेस की अंदरूनी गुठ बाजी भी कांग्रेस के लिए मुसीबत साबित हो सकती हैं. कांग्रेस से विधायक गेनी बेन ठाकोर के लिए कहा जा रहा है कि उन्होंने इन पांच साल में यहां काफी अच्छी पकड़ बनायी हैं. कोरोना काल में भी गेनी बेन ठाकोर ने लोगों के लिए दिन-रात काम किया है. यहां तक की अपने चुनावी क्षेत्र में कोरोना से एक पति पत्नी की मौत हुई तो उनकी अनाथ बेटी के लिए खुद माता पिता बन कर उसकी शादी भी करवाई थी.
गेनी बेन ठाकोर की लोगों के बीच काफी मजबूत पकड़ है. लेकिन बनासकांठा जिले में ज्यादातर लोगों का प्रमुख काम पशुपालन है. जिसमें महिलाएं बढ़चढ़कर हिस्सा लेती है और पशुपालन से करोड़ो की कमाई करती है. जिस के लिए बनासडेरी सबसे बड़ा जरिया हैं. गुजरात में दूध उत्पादन सबसे ज्यादा बनासडेरी करता है. इस बनासडेरी का चेयरमैन बीजेपी के शंकर चौधरी है. बतौर चेयरमैन उन्हों ने पशुपालकों और यहां के लोगों के लिए काफी काम किए हैं.
बनासकांठा की वाव विधानसभा सीट पर 2017 और 2012 दोनों ही चुनाव में शंकर चौधरी और गेनी ठाकोर ही एक दूसरे के सामने चुनावी मैदान में थे. जिसमें 2012 में बीजेपी से शंकर चौधरी की जीत हुई थी, जब की 2017 में शंकर चौधरी 6655 वोटो से कांग्रेस के गेनी बेन ठाकोर से चुनाव हार गये थे. वाव विधानसभा सीट पर कुल 3 लाख 70 वोटर हैं. इस में ज्यादातर वोट ग्रामीण इलाके के हैं. जिसमें अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या काफी ज्यादा है. इस पूरे इलाके में वोटिंग पैटर्न जाति आधारित काफी ज्यादा देखने को मिलती हैं. यहां दो समुदाय का प्रभाव काफी ज्यादा है, जिसमें चौधरी और दूसरे ठाकोर. इनके अलावा मालधारी रबारी कम्युनिटी का भी प्रभाव देखने को मिलता है. इस पूरे इलाके में अल्पेश ठाकोर का काफी ज्यादा प्रभाव है. ऐसे में अल्पेश ठाकोर के बीजेपी में होने के बाद अब बीजेपी की पकड़ को काफी मजबूत मानी जाती है.