गुजरात के कच्छ जिले में भुज सबसे बड़ा शहर है. यहां से पाकिस्तान बॉर्डर भी बेहद करीब है. गुजरात के भुज की अगर बात करें तो यहां 2017 में जीत का जो मार्जिन था, वो 14 हजार के आसपास था. इस वजह से यहां इस बार बीजेपी काफी मेहनत करती दिख रही है. भुज विधानसभा सीट बीजेपी के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि भुज में होने वाली राजनैतिक गतिविधियों का असर कच्छ की दूसरी सीटों पर भी पड़ता है.
भुज सीट पर बीजेपी पिछले 7 चुनावों में सिर्फ 2002 का चुनाव हारी है. बाकी यहां पर बीजेपी लगातार जीत दर्ज करवाती आई है. 2002 में यहां कांग्रेस को इसलिए जीत मिली थी, क्योंकि यहां मुस्लिम और गैर गुजराती वोटर की तादात अच्छी खासी है. 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी इस सीट पर खुद की जीत के लिए आश्वत नजर आ रही है.
गुजरात की भुज विधानसभा सीट पर भाजपा जीत की हैट्रिक लगा चुकी है. 2007, 2012 और 2017 के चुनावों में बीजेपी ने यहां से जीत दर्ज की है. 2017 में गुजरात विधानसभा में बीजेपी के प्रत्याशी डॉ. नीमा बेन आचार्य यहां से चुनाव जीती थीं. नीमा बेन ने 2002 में कांग्रेस की टिकट पर अबडासा की सीट से चुनाव जीता था, लेकिन 2007 में वो बीजेपी में शामिल हो गईं. 2007 में भी उन्होंने अबडासा सीट से चुनाव जीता, लेकिन 2012 और 2017 में भुज से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. 2017 के चुनाव में नीमा बेन को 8653 वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के प्रत्याशी को 72510 वोट मिले थे.
गुजरात में विजय रूपाणी के पूरे के पूरे मंत्रिमंडल को बीजेपी के जरिए हटाने के बाद जब भूपेंद्र पटेल सरकार आई तो नीमा आचार्य को गुजरात विधानसभा का अध्यक्ष बनाया गया. फिलहाल वह गुजरात विधानसभा की अध्यक्ष के तौर पर काम कर रही हैं.
2002 में आए भूकंप में इस पूरे इलाके में काफी नुकसान हुआ था. कोई भी दो मंजिला इमारत नहीं बची थी. भूकंप के बाद हुए गुजरात के दंगे की वजह से भुज के इस इलाके के लोगों में नाराजगी काफी बढ़ गई थी. इस वजह से 2002 के चुनाव में बीजेपी के वासणभाई आहीर यहां से चुनाव हार गए थे.
गुजरात के भुज विधानसभा सीट पर 2,55,000 से ज्यादा वोटर हैं. यहां बीजेपी की मजबूत पकड़ है. जातिगत समीकरण की बात की जाए तो यहां हिंदू मतदाता ज्यादा हैं. गुजरात का कच्छ इसलिए भी जाना जाता है कि हड़प्पा संस्कृति भी यहां से मिली है. यहां धोलावीरा बड़ी आर्कियोलॉजिकल साइट है.
भुज का पूरा इलाका समुद्री तट के किनारे बसा हुआ है. कच्छ में स्थानीय भाषा कच्छी है, जो सिंध प्रदेश में बोली जाती थी. 2002 के भूकंप के बाद इस पूरे इलाके को गुजरात सरकार ने टैक्स फ्री किया था. इस वजह से यहां बड़ी-बड़ी इंडस्ट्रीज भी हैं.