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गुजरात में कल पहले चरण की वोटिंग, जानें कांग्रेस की ताकत-कमजोरी-अवसर और चुनौतियां

गुजरात में कांग्रेस पिछले कई सालों से सत्ता में आने की कोशिश कर रही है. उसका वोट शेयर भी लगातार 38 प्रतिशत के करीब बना हुआ है. ऐसे में जमीन पर पार्टी की उपस्थिति मजबूत है, ऐसा संगठन भी है जो उसे बेहतर नतीजे दिलवा सकता है. लेकिन फिर भी कांग्रेस की राह आसान नहीं रहने वाली है. SWOT ANALYSIS से ये समझा जा सकता है.

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गुजरात में कांग्रेस का SWOT ANALYSIS (पीटीआई)
गुजरात में कांग्रेस का SWOT ANALYSIS (पीटीआई)

गुजरात चुनाव अपने निर्णायक मोड़ पर आ गया है. कल पहले चरण की वोटिंग होने जा रही है और फिर पांच को दूसरे चरण के भी वोट डाले जाएंगे. इस चुनाव में बीजेपी के सामने तो अपना किला बचाने की चुनौती है, लेकिन कांग्रेस को इंतजार है अपना 27 साल का सियासी वनवास खत्म करने का. पिछले कुछ विधानसभा चुनावों के नतीजों पर नजर डालें तो पता चलता है कि कांग्रेस का प्रदर्शन लगातार बेहतर होता गया है. 2017 में तो कांग्रेस ने बीजेपी को ऐसी टक्कर दी थी कि पार्टी 99 सीटों के फेर में फंस गई. ऐसे में इस बार कांग्रेस के पास एक सुनहरा मौका है. वो जनता के सामने बीजेपी का विकल्प बन सकती है. इसमें कितना सफल होती है, इसे जानने के लिए कांग्रेस का SWOT ANALYSIS किया जा सकता है.  

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कांग्रेस का SWOT ANALYSIS

Strength: गुजरात चुनाव में कांग्रेस पिछले 27 साल से सत्ता से दूर चल रही है. एक समय उसने भी गुजरात की धरती पर 27 साल राज किया था. KHAM राजनीति के दम पर उसने रिकॉर्ड सीटें जीतने का कारनामा भी कर रखा है. कहा जा रहा है कि एक बार फिर कांग्रेस इस विधानसभा चुनाव में KHAM रणनीति पर काम कर रही है. आदिवासी, दलित और मुस्लिम गठजोड़ के सहारे पार्टी अपने सियासी वनवास को समाप्त करना चाहती है. 2017 के चुनाव के दौरान उसने सौराष्ट्र-कच्छ इलाके में भी शानदार प्रदर्शन करते हुए 54 में से 28 सीटों पर जीत दर्ज की थी. ऐसे में एक बार फिर पार्टी उस प्रदर्शन को दोहराना चाहती है. 

कांग्रेस की एक मजबूत ताकत ये भी रही है कि पिछले 27 साल से वो सत्ता में तो नहीं आई, लेकिन 38 फीसदी के करीब उसका वोट शेयर लगातार बरकरार रहा. बड़ी बात ये भी है कि एक दर्जन के करीब ऐसी सीटें हैं जो कांग्रेस किसी भी चुनाव में नहीं हारी हैं. इस लिस्ट में खेड़ब्रह्मा, दरियापुर, जमालपुर-खड़िया, जसदान, बोरसाद, महुधा जैसी कई सीटें शामिल हैं. इसके अलवा पार्टी का अभी भी आदिवासी और गैर आदिवासी बहुल ग्रामीण इलाकों में अच्छा प्रभाव है, ऐसा संगठन भी जमीन पर मौजूद है जो उसे इन सीटों पर जीतने में मदद करता है.

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Weakness: गुजरात में कांग्रेस के पास नरेंद्र मोदी जैसा नेता नहीं है. कई स्थानीय नेता तो पार्टी में मौजूद हैं, लेकिन उनका प्रभाव भी सिर्फ सीमित क्षेत्रों तक रहता है. ऐसे में कोई एक चेहरा जिसके दम पर पार्टी वोट मांग सके या कहें जीत सके, वो कड़ी मिसिंग है. इसके अलावा कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी इस चुनावी प्रचार में ज्यादा सक्रिय नहीं दिख रहे हैं. उनकी तरफ से भारत जोड़ो यात्रा निकाली जा रही है, वे मध्य प्रदेश में भ्रमण कर रहे हैं. लेकिन गुजरात में उनकी ज्यादा संभाए नहीं हुई हैं. बड़ी बात ये है कि 2017 के चुनाव में राहुल गांधी के धुंआधार प्रचार ने पार्टी में नई जान फूंक दी थी और करीब तीस साल बाद पार्टी ने सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया था. लेकिन इस चुनाव में वो धुंआधार प्रचार कही नहीं दिख रहा है.

बड़ी बात ये भी है कि इस बार जमीन पर कांग्रेस के पास वो मुद्दे मौजूद नहीं हैं जिनके दम पर उसने 2017 में बीजेपी को कड़ी चुनौती दी थी. पाटीदार आंदोलन ठंडा पड़ चुका है, हार्दिक बीजेपी में शामिल हो गए हैं. वहीं ऊना वाली घटना के बाद दलितों का जो गुस्सा देखने को मिला था, इस बार जमीन पर वो भी गायब है. अब चुनावी मुद्दों के साथ-साथ कांग्रेस को कई अपनों का ही साथ नहीं मिल रहा है. कई ऐसे विधायक हैं जो बीजेपी का दामन थाम चुके हैं. 2017 के बाद से 14 विधायकों ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी ज्वाइन की है. ऐसे में इस दलबदल ने भी पार्टी को सियासी नुकसान पहुंचाने का काम किया है.

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Opportunity: कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा अवसर तो उस एंटी इनकम्बेंसी को भुनाना है जो बीजेपी के खिलाफ जमीन पर दिख रही है. पिछले 27 साल से बीजेपी की सरकार है, ऐसे में नए विजन के साथ पार्टी गुजरात की जनता के सामने विकल्प के तौर पर सामने आ सकती है. बड़ी बात ये भी कि पिछले विधानसभा चुनाव में कई ऐसी भी सीटें रहीं जहां पर कांग्रेस काफी कम अंतर से हारी थी. उन सीटों पर जीत का अंतर 3000 वोटों से भी कम रहा था. ऐसे में अगर उन सीटों पर पार्टी ज्यादा मेहनत कर ले तो उसका सीटों का आंकड़ा और बेहतर हो सकता है. इस चुनाव में कांग्रेस के सामने AAP को रोकना भी अपने आप में एक बड़ा मौका है. अरविंद केजरीवाल दावा कर रहे हैं कि इस चुनाव में कांग्रेस रेस में भी नहीं है, ऐसे में अगर पार्टी बेहतर प्रदर्शन करती है, इसका सियासी संदेश AAP के साथ-साथ पूर देश के लिए होगा.    

Threat: गुजरात चुनाव में इस बार कांग्रेस के सामने एक नहीं, कई सियासी खतरे हैं. सबसे बड़ा खतरा तो वो नेरेटिव है जहां कहा जा रहा है कि बीजेपी को कांग्रेस नहीं हरा सकती है. ओवैसी से लेकर अरविंद केजरीवाल तक गुजरात में इस बात का प्रचार कर रहे हैं. ऐसे में अगर एक और चुनावी हार कांग्रेस की झोली में आती है, उस स्थिति में 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर भी कांग्रेस की विपक्ष के सामने दावेदारी कमजोर पड़ सकती है. वहीं जानकार मान रहे हैं कि इस चुनाव में आम आदमी पार्टी की एंट्री से सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है. अगर आप का प्रदर्शन कांग्रेस से बेहतर रहा और वो मुख्य विपक्षी दल के रूप में भी सामने आ गई, उस स्थिति में सियासी खामियाजा कांग्रेस को ही भुगतना पड़ेगा. 

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