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क्या है छोटू बसावा और भारतीय ट्राइबल पार्टी की ताकत? जिससे गठबंधन कर गुजरात जीतने की तैयारी में जुटे केजरीवाल

गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस और बीजेपी की भी आदिवासी वोट बैंक पर नजर है. कांग्रेस आदिवासी विधायकों को अपने साथ मिलाकर आदिवासी सम्मेलन का दांव चल रही है. वहीं, बीजेपी आदिवासी वोटबैंक को अपनी तरफ खींचने के लिए गुजरात की भूपेंद्र पटेल सरकार में आदिवासी समुदाय के चार नेताओं को मंत्री बनाया है. साथ ही पीएम मोदी भी आदिवासियों को साधने के लिए आदिवासी सम्मेलन कर चुके हैं.  

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भरूच में रविवार को बीटीपी के आदिवासी सम्मेलन में मौजूद अरविंद केजरीवाल.
भरूच में रविवार को बीटीपी के आदिवासी सम्मेलन में मौजूद अरविंद केजरीवाल.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • भरूच और नर्मदा इलाके में छोटू बसावा का है प्रभाव
  • अरविंद केजरीवाल रविवार को बीटीपी के कार्यक्रम में हुए थे शामिल
  • गुजरात में 15 फीसदी आदिवासी का 27 सीटों पर असर

गुजरात में भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के संस्थापक और भरुच जिले की विधानसभा सीट झगाड़िया सीट से 6 बार के विधायक छोटू वसावा को गरीबों का मसीहा कहा जाता है. राज्य के 15 फीसदी आदिवासी वोट बैंक पर इनकी अच्छी पकड़ भी मानी जाती है. इसे देखते हुए अरविंद केजरीवाल ने बीटीपी के साथ गठबंधन किया है. गरीबों का मसीहा कहे जाने वाले छोटू वसावा अरविंद केजरीवाल की कितनी मदद कर पाएंगे, ये तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चल पाएगा. फिलहाल, आप से गठबंधन के बाद छोटू वसावा एक बार फिर से चर्चा में हैं.

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छोटू वसावा का भरूच और नर्मदा इलाके में खास असर माना जाता है. यहां के लोग छोटू वसावा को मसीहा मानते हैं. आदिवासियों के नेता माने जाने वाले छोटू वसावा पहले जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ते थे लेकिन 2017 विधानसभा चुनाव से पहले अचानक छोटू वसावा जनता दल से अलग हो गए. इसके बाद उन्होंने भारतीय ट्राइबल पार्टी का गठन किया. 2017 विधानसभा चुनाव में उनकी इस पार्टी के दो प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की. 

खुद छोटू वसावा भरुच जिले की झगाड़िया सीट से विधानसभा चुनाव लड़ते हैं. वे यहां से 6 बार चुनाव जीतकर विधायक बन चुके हैं. छोटू वसावा ने पहली बार विधानसभा चुनाव 1990 में लड़कर जीता था. इसके बाद से इस सीट पर हुए विधानसभा चुनावों में उन्हें जीत मिलती रही है. उनके बेटे महेश वसावा भी नर्मदा जिले की डेडियापाडा सीट से विधायक हैं. 

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बता दें कि गुजरात विधानसभा चुनाव में आदिवासी समुदाय के वोटबैंक पर कांग्रेस से लेकर बीजेपी और आम आदमी पार्टी तक की नजर है. 15 फीसदी आदिवासी वोटों का 27 सीटों पर असर है, जिसके चलते आम आदमी पार्टी ने अदिवासी समुदाय के बीच प्रभाव रखने वाली बीटीपी के साथ गठबंधन किया है. 

AAP और BTP के बीच गठबंधन हुआ

बीटीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेश वसावा और आम आदमी पार्टी के गुजरात संयोजक गोपाल इटालिया ने गठबंधन की घोषणा की है.  उन्होंने बताया कि बीटीपी के संस्थापक व विधायक छोटूभाई वसावा ने दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल से मुलाकात कर चुनाव लड़ने का फैसला किया है. इस तरह आम आदमी पार्टी ने गुजरात में आदिवासी वोट बैंक को साधने सेंध लगाने के लिए आदिवासी समुदाय के बीच पकड़ रखने वाली बीपीटी के साथ हाथ मिलाया है. 

बीटीपी के गुजरात में दो और राजस्थान में तीन विधायक हैं. बीटीपी का राजस्थान के उदयपुर, डूंगरपुर के इलाके में मजबूत पकड़ है तो गुजरात के बांसवाडा, बनासकांठा, अंबाजी, दाहोद, पंचमहाल, छोटा उदेपुर, नर्मदा जिले में अच्छी पैठ है. पिछले चुनाव में बीटीपी कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी, जिसका सियासी फायदा दोनों ही पार्टियों को आदिवासी बेल्ट में मिला था. 

हालांकि, लोकसभा चुनाव 2019 में बीटीपी ने भरूच सीट छोड़ने की मांग रखी थी, लेकिन कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी उतार दिया था. बीटीपी इसी के बाद से कांग्रेस से नाराज चल रही थी, जो आम आदमी पार्टी के रूप में उसे मजबूत विकल्प मिल गया है. भरुच के चंदेरिया गांव में एक मई को आदिवासी संकल्प महासम्मेलन कर केजरीवाल और छोटू वसावा गठबंधन की घोषणा करेंगे. 

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15 फीसदी आदिवासी का 27 सीटों पर असर

गुजरात में 15 फीसदी आदिवासी समाज कई उपजातियों में बंटा हुआ है. इनमें भील, डुबला, धोडिया, राठवा, वर्ली, गावित, कोकना, नाइकड़ा, चौधरी, धानका, पटेलिया और कोली (आदिवासी) हैं. आदिवासी समुदाय गुजरात की 182 विधानसभा सीटों में से 27 सीटों पर खास प्रभाव रखते हैं और पांच जिलों में इनकी अच्छी खासी आबादी है. बनासकांठा, साबरकांठा, अरवल्ली, महिसागर, पंचमकाल दाहोद, छोटा उदेपुर, नर्मदा, भरूच , तापी, वलसाड, नवसारी, डांग, सूरत में अदिवासी समाज के लोग जीत-हार का फैसला करते हैं. 

गुजरात में आदिवासी वोटबैंक की सियासी ताकत देखते हुए सभी पार्टियां अपनी ओर खींचने की कवायद करती हैं. बीजेपी और कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी भी बीटीपी के जरिए अपने पाले में करने की जुगत में है. इसीलिए सभी पार्टियां आदिवासी वोटों को अपने-अपने पाले में करने के लिए अभी से जुट गई हैं. हालांकि, अभी तक गुजरात में आदिवासी वोटों की पहली पसंद कांग्रेस रही है. 

आदिवासी बहुल सीटों पर कांग्रेस का दबदबा

2017 के गुजरात चुनाव में आदिवासी समाज का 50 फीसदी से ज्यादा वोट कांग्रेस को मिला था जबकि 35 फीसदी वोट ही बीजेपी को मिल सका था. 10 फीसदी वोट अन्य के खाते में गया था. आदिवासी समाज कांग्रेस का कोर वोटबैंक माना जाता है और पिछले कई चुनाव से कांग्रेस के पाले में खड़ा है. 2007 के चुनाव में 27 आदिवासी बहुल सीटों में से कांग्रेस ने 14 सीटें जीती थी, तो 2012 में 16 सीटों पर कब्जा जमाया था. 2017 में कांग्रेस ने 14 आदिवासी सीटें अपने नाम की थीं, वहीं एक सीट बीटीपी (भारतीय ट्राइबल्स पार्टी) को मिली थी और 9 सीटें ही बीजेपी को मिल सकी थी. 

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आदिवासी वोटबैंक पर बीजेपी की भी नजर

बीजेपी इस बार के चुनाव में आदिवासी वोटों पर खास नजर गड़ाए हुए हैं, जिसके चलते कांग्रेस के आदिवासी विधायकों को अपने साथ मिलाकर भूपेंद्र पटेल सरकार मंत्री बनाने से लेकर आदिवासी सम्मेलन तक का दांव चल रही है. बीजेपी ने कांग्रेस के 16 विधायकों को अपने साथ मिलाया था, जिनमें से 5 विधायक आदिवासी समुदाय से थे और बाद में उनमें से तीन को मंत्री भी बनाया है. बीजेपी आदिवासी वोटबैंक को अपनी तरफ खींचने के लिए गुजरात की भूपेंद्र पटेल सरकार में आदिवासी समुदाय के चार नेताओं को मंत्री बनाया है. साथ ही पीएम मोदी भी आदिवासियों को साधने के लिए दाहोद में आदिवासी सम्मेलन कर चुके हैं.  

 

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