गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 89 सीटों के लिए गुरुवार को मतदान होना है. कांग्रेस के लिए गुजरात में पहले चरण किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है, क्योंकि पिछले चुनाव में इन्हीं इलाके में बीजेपी को कांटे की टक्कर देने में सफल रही थी. पांच साल पहले कांग्रेस ने जितनी सीटें जीती थी, उसमें से आधी से ज्यादा सीटें इसी सौराष्ट्र-कच्छ और दक्षिण गुजरात के इलाके की थीं. ऐसे में पार्टी को गुजरात में अपने राजनीतिक वजूद को बचाए रखना है तो बीजेपी से ही नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी से भी पार पाना होगा?
गुजरात में पहले चरण में 89 विधानसभा सीटों के लिए 788 कैंडिडेट्स मैदान में हैं. बीजेपी और कांग्रेस ने सभी 89 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं, जबकि आम आदमी पार्टी के 88, बसपा के 57, सपा के 12, बीटीपी के 14 और AIMIM के 6 उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं. इस चरण में सौराष्ट-कच्छ और दक्षिण गुजरात की सीटों पर चुनाव है. पिछले चुनाव में सौराष्ट्र-कच्छ के इलाके में कांग्रेस ने बढ़त हासिल की थी तो दक्षिण गुजरात में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया था.
सौराष्ट्र में कांग्रेस और दक्षिण में बीजेपी जीती थी
पहले चरण में गुजरात के जिन 89 सीटों पर चुनाव है, उन सीटों पर 2017 के चुनावी नतीजे को देखें तो बीजेपी 48, कांग्रेस 38, बीटीपी 2 और एनसीपी एक सीट जीतने में कामयाब रही थी. क्षेत्रीय आधार पर देखें तो सौराष्ट्र-कच्छ में 54 सीटें है, जिनमें से कांग्रेस 28 सीटें, बीजेपी 20 और अन्य दलों को तीन सीटें मिली थीं. दक्षिण गुजरात इलाके में 35 सीटें हैं, जिनमें से बीजेपी 27 और कांग्रेस आठ सीटें जीती थी.
बीजेपी को नुकसान और कांग्रेस को फायदा
पांच साल पहले गुजरात की कुल 182 सीटों में कांग्रेस ने 77 सीटें जीती थीं. इनमें से सौराष्ट्र-कच्छ और दक्षिण गुजरात इलाके की 38 सीटें थीं जबकि 2012 के चुनाव में कांग्रेस को 22 सीटें, बीजेपी को 63 और अन्य को 4 सीटें मिली थीं. ऐसे में कांग्रेस को 2012 की तुलना में 2017 में 16 सीटों का फायदा मिला था और बीजेपी को 15 सीटों का नुकसान. हालांकि, इस बार सियासी समीकरण पूरी तरह से बदल गए हैं. कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला होने के बजाय लड़ाई त्रिकोणीय है. आम आदमी पार्टी भी पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में है.
पहले चरण में ग्रामीण और शहरी सीटें
सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात के 19 जिलों की इन 89 सीटों में से 41 ग्रामीण और 17 शहरी इलाके की सीटें हैं. दक्षिण गुजरात को बीजेपी का गढ़ कहा जाता है तो कांग्रेस 17 सीटों पर काफी मजबूत रही हैं. पहले चरण में 28 सीटें ऐसी भी हैं, जिनपर 2012 और 2017 के चुनावों में अलग-अलग पार्टियों को जीत मिली. इस तरह से 28 सीटों का ट्रेंड बदलता रहा है. ग्रामीण इलाके में कांग्रेस मजबूत रही है तो शहरों में बीजेपी काफी स्ट्रांग पाजिशन में रही.
कैसा है जातिगत समीकरण?
पहले चरण में जिन विधानसभा सीटों पर चुनाव हैं, उनमें पाटीदार, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी जातियां अहम भूमिका में हैं. जहां सौराष्ट्र-कच्छ में पाटीदार वोटर निर्णायक हैं तो दक्षिण गुजरात में आदिवासी. दक्षिण की डांग, नवसारी, नर्मदा, तापी और वलसाड जिलों में अनुसूचित जनजाति निर्णायक भूमिका में है. इस चरण में झगड़िया सीट पर भी चुनाव है, जहां पर बीटीपी के नेता छोटूभाई वसावा काफी लंबे समय से विधायक हैं.
पहले चरण का वोट शेयर
पहले चरण की सीटों पर 2017 के चुनाव को देखें तो बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला था. कांग्रेस ने 89 में से 38 सीटों पर लगभग 42 प्रतिशत वोट शेयर के साथ जीत हासिल की थी. बीजेपी 49 फीसदी वोट शेयर के साथ 48 सीटों पर जीती. हालांकि, 2012 के चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच का अंतर बहुत बड़ा था. तब बीजेपी (48 प्रतिशत) को कांग्रेस से 10 प्रतिशत ज्यादा वोट मिले थे. 2019 लोकसभा चुनाव के लिहाज से बीजेपी ने 89 में से 85 सीटों पर करीब 62 प्रतिशत वोट शेयर के साथ बढ़त बनाई थी.
कांग्रेस के सामने अपना गढ़ बचाए रखने की चुनौती
गुजरात में कांग्रेस ने ज्यादातर सीटें ग्रामीण इलाके में जीती थी, जिनमें सौराष्ट्र-कच्छ के इलाके में कई जिले में बीजेपी अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी. पहले दौर में 19 जिलों में से बीजेपी 7 जिलों में खाता नहीं खोल सकी थी. अमरेली, नर्मदा, डांग्स, तापी, अरावली, मोरबी और गिर सोमनाथ जिले में बीजेपी को एक सीट नहीं मिली थी. अमरेली में पांच, गिर सोमनाथ में चार, अरावली और मोरबी में तीन-तीन, नर्मदा और तापी में दो-दो और डांग्स में एक सीट है. इन सभी जगह कांग्रेस को जीत मिली थी.
वहीं, सुरेंद्रनगर, जूनागढ़ और जामनगर जिले में कांग्रेस ने बीजेपी से ज्यादा सीटें जीती थी. सुरेंद्रनगर जिले की पांच में से चार, जूनागढ़ जिले की पांच से चार और जामनगर जिले की पांच में से तीन सीटें कांग्रेस जीती थी. ये सभी आदिवासी जिले हैं और कांग्रेस को इन इलाकों में बीजेपी को मात दी थी. ऐसे में कांग्रेस के सामने पहले चरण के चुनाव में अपना सियासी आधार बचाए रखने की चुनौती है?