गुजरात में पिछले विधानसभा चुनावों में कम से कम 16 ऐसी सीटें थीं, जहां जीत का अंतर 3000 वोटों से भी कम था, जिसने दोनों मुख्य पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस को समान रूप से प्रभावित किया. इनमें से 7 सीटें तो ऐसी थीं जहां 1000 वोट से भी कम अंतर से हुई थी. प्रदेश की ऐसी 16 सीटों में से 10 पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी जबकि कांग्रेस के खाते में सिर्फ 6 सीटें आई थीं.
गुजरात के 2017 चुनावों में वलसाड जिले की कपराडा (एससी आरक्षित) सीट पर सबसे कम जीत का अंतर था. यहां कांग्रेस उम्मीदवार जीतूभाई चौधरी ने बीजेपी उम्मीदवार मधुभाई राउत को 170 वोटों से हरा दिया था. जहां बीजेपी उम्मीदवार को 92,830 वोट मिले थे जबकि कांग्रेस प्रत्याशी को 93000 से ज्यादा लोगों ने वोट किया था. हालांकि बाद में जीतूभाई चौधरी कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए, जिसके बाद बीजेपी ने उसी साल उपचुनाव में और 2022 चुनाव के लिए भी उन्हें ही उम्मीदवार बनाया है.
कुछ जगहों पर देखा गया कि बीएसपी जैसे छोटे दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों ने कांग्रेस का खेल खराब किया. इनमें से एक सीट मुस्लिम बहुल पंचमहल जिले की गोधरी थी. इस सीट पर भाजपा उम्मीदवार सीके राउलजी ने कांग्रेस के प्रवीण सिंह चौहान को 258 वोट के मामूली अंतर से हरा दिया. राउलजी को कांग्रेस ने एक बार फिर गोधरा सीट से टिकट दिया है. बीते चुनाव में करीब 4000 लोगों ने नोटा और बीएसपी का बटन दबाया था. इसके साथ ही करीब 20000 वोट दो निर्दलीय उम्मीदवारों को मिले थे.
बीजेपी नेता चुडासमा ने 327 वोटों से जीत दर्ज की
इसके अलावा ढोलका सीट पर 2017 में बीजेपी के सीनियर नेता भूपेंद्र सिंह चुडासमा ने सिर्फ 327 वोटों से जीत हासिल की थी. कई लोगों का मानना है कि करीब 11,000 वोट जो बीएसपी, एनसीपी और दो निर्दलीय उम्मीदवारों को गए. उसकी वजह से ही कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. गांधीनगर की मानसा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार सुरेश पटेल ने भाजपा के युवा तुर्क अमित चौधरी को 524 वोट से हराया था. चौधरी ने 2012 चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर उसी सीट से जीत हासिल की थी, लेकिन 2017 में पार्टी छोड़कर बीजेपी में चले गए.
सिर्फ 906 वोट से जीते थे बीजेपी उम्मीदवार सौरभ पटेल
आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित डांग सीट पर बीजेपी उम्मीदवार विजय पटेल हार गए, उन्हें कांग्रेस के मंगल गावित ने 768 वोटों से हराया था. गुजरात सरकार में ऊर्जा मंत्री रहे बोटाद सीट से बीजेपी विधायक सौरभ पटेल 906 वोटों के मामूली अंतर से जीत हासिल करने में कामयाब रहे. उन्हें 79,623 वोट मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी डीएम पटेल को 78,717 वोट मिले. सौरभ पटेल को इस बार पार्टी ने बाहर कर दिया है.
देवदार सीट 972 वोट से कांग्रेस को मिली
इसी तरह बनासकांठा जिले की देवदार सीट को कांग्रेस ने महज 972 वोटों से बीजेपी से छीन लिया था. कांग्रेस के शिवभाई भूरिया को जहां 80,432 वोट मिले, वहीं उनके प्रतिद्वंद्वी केशाजी चौहान को 79,460 वोट मिले थे. एसटी आरक्षित छोटा उदयपुर सीट पर 10 बार के कांग्रेस विधायक मोहनसिंह राठवा 1093 वोट से जीतने में कामयाब रहे. इस सीट पर करीब 13,000 वोट नोटा, आप उम्मीदवार अर्जुन राथवा और एक निर्दलीय उम्मीदवार को मिले थे. इसके बाद भी मोहनसिंह ने बीजेपी के जशुभाई राठवा को हराकर जीत हासिल की.
कई सीटों पर अंतर एक से तीन हजार के बीच
इसके अलावा कई सीटों पर जीत का अंतर 1,000 से 3,000 के बीच देखा गया. इनमें तलजा, विजापुर, हिम्मतनगर, पोरबंदर, गरियाधर, खंभात, फतेपुरा और दभोई शामिल हैं. गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष ललित ने कहा कि कांग्रेस को कई सीटों पर मामूली अंतर से नुकसान उठाना पड़ा. इसलिए पार्टी ने इस बार निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या कम करने और छोटी पार्टियों को अपने उम्मीदवार नहीं उतारने के लिए मनाने की योजना बनाई. उन्होंने कहा कि यह तथ्य है कि निर्दलयी और बीएसपी जैसे छोटे दलों ने 2017 में हमारे वोट छीन लिए थे. इसलिए हम छोटे दलों को मनाने की कोशिश करेंगे. हम पूरी कोशिश करेंगे कि हमारे वोट न बंटे.
बीजेपी ने भी बनाई योजना
दूसरी ओर सत्तारूढ़ बीजेपी भी ऐसी सीटें जीतने की योजना लेकर आई थी. गुजरात बीजेपी के प्रवक्ता किशोर मकवाना ने कहा कि बीते चुनाव में हमारे हाथ कम मार्जिन वाली कई सीटें निकल गई थीं. हम उन सीटों को वापस जीतने के लिए बूथ स्तर पर काम कर रहे हैं. इससे हमारे वोट बढ़ेंगे और कम जीत के अंतर का मुद्दा खत्म हो जाएगा.
राजनीतिक विशेषज्ञ क्या सोचते हैं?
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि विरोधियों के वोटों को विभाजित करना चुनावी रणनीतियों में से एक होता है. रवींद्र त्रिवेदी ने कहा कि जब किसी पार्टी को यकीन हो जाता है कि किसी विशेष क्षेत्र या जाति के मतदाता उसके उम्मीदवार को कभी वोट नहीं देंगे, तो वह पार्टी प्रतिद्वंद्वी के लिए वोटों का विभाजन करने के लिए उस क्षेत्र के निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन करेगी. इससे जीतने की संभावना बढ़ जाएगी और कभी-कभी ऐसी सीटें जीत जाती हैं.