गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर चुनावी मैदान में उतरने वाली सभी राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने तरीके से चुनावी जमीन तैयार करने में जुट गई हैं. इस चुनावी दौर में हम बात करते हैं, झगडिया विधानसभा सीट के बारे में. इस बार बीजेपी और कांग्रेस के साथ ही आम आदमी पार्टी भी यहां से चुनावी मैदान में है.
आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन करने वाली भारतीय ट्राइबल पार्टी ने 12 सितंबर को अचानक गठबंधन तोड़ दिया. इसके पीछे भारतीय ट्राइबल पार्टी के छोटू वसावा का मानना है कि आम आदमी पार्टी भी बीजेपी की "बी" टीम है. इस चुनाव में आदिवासी वोटों की राजनीति अलग तरह से हो रही है. भारतीय ट्राइबल पार्टी आदिवासियों पर अपनी अच्छी पकड़ का फायदा लेना चाहती है.
छोटू भाई वसावा का राजनीतिक सफर
गुजरात में करीब 27 ऐसी सीटे हैं, जो आदिवासी प्रभावित हैं. झगडिया विधानसभा सीट पर पिछले 35 सालों से छोटू भाई वसावा की पकड़ है. वह यहां से चुनाव जीतते आए हैं. उन्होंने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के साथ की थी.
बाद उन्होंने अपनी पार्टी भारतीय ट्राइबल बनाई. झगडिया विधानसभा सीट से छोटू वसावा 7 बार विधायक रह चुके हैं. इस सीट पर ज्यादातर वोटर आदिवासी समाज के हैं. भरूच और नर्मदा जिले में छोटू वसावा की अच्छी खासी पकड़ है. इलाके के लोग उन्हें मसीहा मानते हैं और दादा कह कर बुलाते हैं.
कांग्रेस के बाद AIMIM से बनाया गठबंधन
2019 के लोकसभा चुनाव में छोटू वसावा ने झगडिया विधानसभा सीट को बीटीपी के लिए छोड़ने की बात कही थी. मगर, कांग्रेस ने यहां से अपना उम्मीदवार मैदान में उतारा दिया था. इसके बाद बीटीपी और कांग्रेस का गठबंधन टूट गया.
स्थानीय निकाय चुनाव में छोटू वसावा ने AIMIM के साथ गठबंधन किया. इससे ओवैसी की पार्टी को सीटों के मामले में काफी फायदा हुआ. 2017 के चुनाव की बात करें, तो बीटीपी के छोटू भाई वसावा को झगडिया विधानसभा सीट पर 113,854 वोट मिले थे. वहीं, बीजेपी से रवजी वसावा को 64,904 वोट मिले थे.