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2024 में मोदी बनाम केजरीवाल? गुजरात चुनाव तय करेगा सूरत-ए हाल

दिल्ली में जब से एक्साइज पॉलिसी की जांच शुरू हुई है, आम आदमी पार्टी ने 2024 के चुनाव में 'मोदी बनाम केजरीवाल' का राग अलापना शुरू कर दिया है. लेकिन ये बयान असल मायनों में सही तभी साबित हो सकता है अगर AAP आगामी गुजरात चुनाव में कोई बड़ा उलटफेर कर दे. पार्टी ने वहां पूरी ताकत भी झोंक रखी है.

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2024 में मोदी बनाम केजरीवाल
2024 में मोदी बनाम केजरीवाल

दिल्ली में शराब घोटाला मामले ने आम आदमी पार्टी सरकार को मुश्किल में डाल दिया है. डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, जिसके चलते उनपर सीबीआई का शिकंजा कस गया है. विपक्ष में बैठी बीजेपी इसे लेकर हमलावर है तो आम आदमी पार्टी इस पूरी कार्रवाई को बदले की भावना बताते हुए 2024 के लिए नरेंद्र मोदी बनाम केजरीवाल का एजेंडा सेट करने की कोशिश कर रही है. हालांकि केजरीवाल का नेशनल ड्रीम तभी संभव है, जब आम आदमी पार्टी गुजरात के चुनावी दंगल में बीजेपी को दमदार चुनौती दे पाए.

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मोदी बनाम केजरीवाल नेरेटिव कैसे शुरू हुआ?

मोदी बनाम केजरीवाल का नेरेटिव आम आदमी पार्टी पहले से ही सेट कर रही थी, लेकिन जब शराब घोटाले में सीबीआई ने मनीष सिसोदिया के घर रेड डाली, तो AAP नेताओं ने इसे भुनाने में देरी नहीं की. सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि जब से पंजाब में आप ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है, लोग कहने लगे हैं कि उन्हें एक विकल्प मिल गया है. देश की राजनीति मोदी बनाम केजरीवाल बन गई है. बीजेपी केजरीवाल से डर गई है, इसलिए उनके मॉडल को खत्म करना चाहती है. 

खुद मनीष सिसोदिया ने भी इसी नेरेटिव को आगे बढ़ाते हुए सीबीआई जांच को 2024 के चुनाव से जोड़ दिया. उन्होंने कहा कि 2024 का चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल ही होने वाला है. केजरीवाल को रोकने के लिए, उन्हें डराने के लिए केंद्र ऐसे हथकंडे आजमा रहा है. लेकिन उसके तमाम प्रयासों के बावजूद केजरीवाल राष्ट्रीय स्तर पर एक विकल्प के रूप में उभरे हैं.

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सवाल ये है कि क्या 2024 के चुनाव को मोदी बनाम केजरीवाल बनाना आम आदमी पार्टी के लिए इतना आसान है? क्या विपक्ष मोदी के खिलाफ केजरीवाल को अपना पीएम उम्मीदवार मानेगा? मोदी को टक्कर देने लायक कद केजरीवाल कैसे हासिल करेंगे? इन सवालों का सही-सही जवाब पाने के लिए गुजरात चुनाव के नतीजों का इंतजार करना होगा.  

गुजरात की सत्ता पर बीजेपी ढाई दशक से ज्यादा समय से काबिज है. अभी तक गुजरात में बीजेपी बनाम कांग्रेस का मुकाबला ही होता रहा है, लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी उतरकर इसे त्रिकोणीय लड़ाई बनाने में जुटी है. केजरीवाल इस समय हिमाचल प्रदेश से ज्यादा गुजरात के चुनाव पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. इस समय भी वो दो दिन के गुजरात दौरे पर हैं, उनके साथ डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया भी गए हैं. अगस्त के महीने में ये उनका चौथी बार गुजरात दौरा है जबकि पिछले चार महीनों में भी वे आधा दर्जन से ज्यादा बार राज्य में पार्टी के लिए प्रचार कर चुके हैं.

गुजरात में क्या है AAP की रणनीति?

आम आदमी पार्टी इस समय गुजरात चुनाव में उसी रणनीति पर काम कर रही है, जिसके दम पर पहले दिल्ली और फिर पंजाब में उसने सरकार बनाई. AAP मॉडल के चार बड़े स्तंभ हैं- अच्छी शिक्षा, अच्छा स्वास्थ्य, मुफ्त बिजली और युवाओं को रोजगार. गुजरात चुनाव में AAP ने इन्हीं पहलुओं को अपनी 'गारंटी' बताया है जो वो सरकार बनते ही देने की बात कर रही है. यहां सबसे बड़ी घोषणा फ्री बिजली वाली है क्योंकि इसी के दम पर पंजाब की जनता ने आम आदमी पार्टी को प्रचंड जनादेश दिया. अब गुजरात में भी ये AAP की पहली गारंटी है.

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वहीं, गुजरात में युवाओं को साधने के लिए अरविंद केजरीवाल ने रोजगार को लेकर बड़ा वादा किया है. उनकी तरफ से जोर देकर कहा गया है कि सरकार बनते ही वे 10 लाख सरकारी नौकरी निकालने वाले हैं, ऐसी योजना तैयार करेंगे जिससे सभी बेरोजगारों को रोजगार मिल सके. जब तक रोजगार नहीं मिल जाता, बेरोजगारों को 3000 रुपये का भत्ता देने की बात भी हुई है. आम आदमी पार्टी के ये वो वादे हैं, जो जाति-धर्म से ऊपर उठकर सीधे सीधे गरीब, निम्न मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग को साधने का काम करते हैं.

रेवड़ी कल्चर बनाम भगवान का प्रसाद

आम आदमी पार्टी जिसे अपनी गारंटी बता रही है, बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसे 'रेवड़ी संस्कृति' का नाम दे दिया है. असल में गुजरात चुनाव में इस बार रेवड़ी कल्चर' बड़ा मुद्दा बनता दिख रहा है. पीएम ने अपने रेवड़ी वाले बयान में किसी भी राजनीतिक दल का नाम नहीं लिया था, लेकिन आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने गुजरात की धरती से इसे ही एक बड़ा मुद्दा बनाया और अपनी मुफ्त स्कीमों को भगवान का प्रसाद बताया और कहा कि ये पाप नहीं है. 

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर दो-दो हाथ

गुजरात में आम आदमी पार्टी अपनी सरकार की स्वच्छ छवि का मॉडल बेच पाती उससे पहले ही दिल्ली में शराब घोटाले पर पड़े सीबीआई के छापों ने उसे बैकफुट पर धकेल दिया है. पीएम मोदी लाल किले की प्राचीर से पहले ही संदेश दे चुके हैं कि वे भ्रष्टाचार पर और ज्यादा कठोर कार्रवाई करने वाले हैं. ऐसे में मनीष सिसोदिया पर शराब घोटाले पर कसता शिकंजा बीजेपी के हाथ लगा वो मुद्दा है, जिसे लेकर वो आम आदम पार्टी के नैरेटिव की हवा निकाल सकती है. 

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आम आदमी पार्टी भी ये बात बखूबी समझती है कि ताजा छापे उसकी छवि को गुजरात में खराब कर सकते हैं, इसलिए वो सीबीआई को केंद्र की कठपुतली बताते हुए ताजा कार्रवाई को राजनीति से प्रेरित और केंद्र सरकार की आप को कमजोर करने की साजिश बता रही है. ये कुछ-कुछ वैसा ही है जब गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने मनमोहन सरकार के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों के एक्शन को राजनीति से प्रेरित बताया था और जनता ने इसपर भरोसा भी किया था. ये इत्तेफाक नहीं है कि मनीष सिसोदिया ने अपने यहां छापे पड़ने के बाद मोदी का ही वो पुराना वीडियो ट्वीट किया जिसमें वो सीबीआई को केंद्र की कठपुतली बता रहे हैं.

गुजरात पर बीजेपी की पकड़ जैसा दूसरा उदाहरण नहीं

गुजरात की सत्ता पर बीजेपी 27 साल से काबिज है और पार्टी सातवीं बार जीत का परचम फहराने की कवायद में है. साल 1995 से लगातार राज्य में बीजेपी चुनाव जीतती आ रही. 1995 , 1998, 2002, 2007 और 2012 के बीच 5 चुनावों में बीजेपी 182 विधानसभा सीटों में से 115 से लेकर 127 के बीच सीटें जीतकर सत्ता में रही. 2017 में 99 सीटें जीतकर छठी बार सरकार बनाई तो 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में क्लीन स्वीप कर सभी 26 सीटें भी जीती. इस तरह से गुजरात बीजेपी का इतना मजबूत गढ़ है, जितना किसी दूसरी पार्टी के पास कोई प्रदेश नहीं है. वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का गृह राज्य है. यही वजह है कि यहां केजरीवाल कोई करिश्मा दिखा पाए तो ये उनके लिए 2024 की दावेदारी को बूस्टर दे सकता है.

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केजरीवाल की असल परीक्षा गुजरात

आम आदमी पार्टी ने अभी तक जिन दो राज्यों में सत्ता हासिल की है, वो दोनों ही राज्य कांग्रेस से छीने हुए हैं. गुजरात के सियासी हालात दिल्ली और पंजाब से काफी अलग हैं. नरेंद्र मोदी के करिश्मे और बीजेपी के कुशल नेतृत्व की वजह से कांग्रेस की दाल 27 सालों से यहां नहीं गल पा रही है. ऐसे में आम आदमी पार्टी गुजरात में चुनाव में किस्मत आजमाने उतरी है और केजरीवाल ताबड़तोड़ दौरे कर रहे हैं.

साल 2013 में आम आदमी पार्टी की गुजरात इकाई का गठन हुआ और उसने 2017 में पहली बार किस्मत आजमाई, लेकिन उसका एक भी कैडिंडेट जमानत नहीं बचा सका. हालांकि, 2020 में पार्टी के प्रदेश संगठन का पुनर्गठन हुआ. 2021 में अरविंद केजरवाल की आप को पहली बार सफलता सूरत नगर निगम चुनाव में मिली. गुजरात नगर निकाय चुनाव में आप आदमी पार्टी ने सूरत नगर निगम की 120 में से 27 सीटें जीती थीं और कांग्रेस को पछाड़कर वह मुख्य विपक्षी पार्टी बनी. इसके अलावा गांधीनगर निगम में भी आप के पास एक पार्षद है. इस तरह नगर निकाय चुनाव के परिणाम से गुजरात में आम आदमी पार्टी का आत्मविश्वास बढ़ गया है. 

बीजेपी की तुलना में आम आदमी पार्टी के पास राज्य में न तो मजबूत संगठन है और न ही जातीय आधार. अरविंद केजरीवाल ने हालांकि बीटीपी के साथ गठबंधन कर रखा है और वो फ्री बिजली-पानी के वादों के सहारे बीजेपी को मात देने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. वो इसमें कितना सफल हो पाते हैं ये साल के अंत में चुनाव नतीजों से तय होगा. लेकिन अगर गुजरात में मुख्य मुकाबला बीजेपी बनाम कांग्रेस ही रहा तो केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को अपना नेशनल ड्रीम 2029 तक के लिए मुल्तवी करना होगा.

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