गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर अभी से सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. सूबे में बीजेपी 27 साल से लगातार अपनी जीत के सिलसिले को बरकरार रखने की कवायद में है और इस बार 150 सीटें जीतने का टारगेट तय किया है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए बीजेपी की नजर इस बार पाटीदार के साथ-साथ आदिवासी वोटों पर है.
15 फीसदी आदिवासी समाज को कांग्रेस का परंपरागत वोटर माना जाता है, जिन्हें साधने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को दाहोद में उतर रहे हैं. मोदी विकास की सौगात देने के साथ-साथ आदिवासी महासम्मेलन के जरिए बड़ा सियासी संदेश देने का प्लान है.
पीएम मोदी आदिवासी समाज को देंगे सौगात
पीएम मोदी अपने गृह राज्य गुजरात दौर पर हैं और बुधवार को दाहोद में करीब 22000 करोड़ रुपये की विभिन्न विकास परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास करेंगे. इस प्रोजेक्ट के जरिए दस हजार लोगों को रोजगार मिलेगा. आदिवासी महासम्मेलन में दो लाख से अधिक लोगों के भाग लेने की उम्मीद है, जिसे पीएम मोदी संबोधित करेंगे.
2022 गुजरात चुनाव के लिहाज से यह रैली बीजेपी के लिए काफी अहम और महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि पीएम मोदी यहां से आदिवासी वोटों के लिए सियासी एजेंडा सेट करेंगे? इसीलिए आदिवासी महासम्मेलन में शामिल होने के लिए दाहोद, पंचमहाल, छोटा उदेपुर और महीसागर जिले का गांवों में घर-घर न्योता दिया गया है.
15 फीसदी आदिवासी का 27 सीटों पर असर
गुजरात में 15 फीसदी आदिवासी समाज कई उपजातियों में बंटा हुआ है. इनमें भील, डुबला, धोडिया, राठवा, वर्ली, गावित, कोकना, नाइकड़ा, चौधरी, धानका, पटेलिया और कोली (आदिवासी) हैं. आदिवासी समुदाय गुजरात की 182 विधानसभा सीटों में से 27 सीटों पर खास प्रभाव रखते हैं और पांच जिलों में इनकी अच्छी खासी आबादी है.
बनासकांठा, साबरकांठा, अरवल्ली, महिसागर, पंचमकाल दाहोद, छोटा उदेपुर, नर्मदा, भरूच , तापी, वलसाड, नवसारी, डांग, सूरत में अदिवासी समाज के लोग जीत-हार का फैसला करते हैं.
15 फीसदी आदिवासी वोटबैंक की सियासी ताकत देखते हुए सभी पार्टि अपनी ओर खींचने की कवायद करती हैं. बीजेपी और कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी भी बीटीपी के जरिए अपने पाले में करने की जुगत में है. इसीलिए सभी पार्टियां आदिवासी वोटों को अपने-अपने पाले में करने के लिए अभी से जुट गई हैं. हालांकि, गुजरात में आदिवासी वोटों की पहली पसंद कांग्रेस रही है.
आदिवासी बहुल सीटों पर कांग्रेस का दबदबा
बता दें कि 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में आदिवासी समाज का 50 फीसदी से ज्यादा वोट कांग्रेस को मिला था और 35 फीसदी वोट ही बीजेपी को मिल सका था. 10 फीसदी वोट अन्य के खाते में गया था. आदिवासी समाज कांग्रेस का कोर वोटबैंक माना जाता है और पिछले कई चुनाव से कांग्रेस के पाले में खड़ा है.
2007 के चुनाव में 27 आदिवासी बहुल सीटों में से कांग्रेस ने 14 सीटें जीती थी, तो 2012 में 16 सीटों पर कब्जा जमाया था. 2017 में कांग्रेस ने 14 आदिवासी सीटें अपने नाम की थीं, वहीं एक सीट बीटीपी (भारतीय ट्राइबल्स पार्टी) को मिली थी और 9 सीटें ही बीजेपी को मिल सकी थी.
बीजेपी की नजर कांग्रेस के कोर वोटबैंक पर है
बीजेपी इस बार के चुनाव में आदिवासी वोटों पर खास नजर गढ़ाए हुए हैं, जिसके चलते कांग्रेस के आदिवासी विधायकों को अपने साथ मिलाकर भूपेंद्र पटेल सरकार मंत्री बनाने से लेकर आदिवासी सम्मेलन तक का दांव चल रही है. बीजेपी ने कांग्रेस के 16 विधायकों को अपने साथ मिलाया था, जिनमें से 5 विधायक आदिवासी समुदाय से थे और बाद में उनमें से तीन को मंत्री भी बनाया है.
बीजेपी आदिवासी वोटबैंक को अपनी तरफ खींचने के लिए गुजरात की भूपेंद्र पटेल सरकार में आदिवासी समुदाय के चार नेताओं को मंत्री बनाया है. भूपेंद्र पटेल की अगुवाई में बीजेपी सरकार में आदिवासी समाज के विधायक नरेश पटेल, जीतू चौधरी, कुबेर डिंडोर को मंत्री बनाया गया है. साथ ही केंद्र की मोदी सरकार ने आदिवासी समुदाय की सांसद गीताबेन राठवा को BSNLका अध्यक्ष भी बनाया है. बीजेपी पार्टी में और सरकार में आदिवासी समाज के नेताओं को जगह देकर आदिवासी वोट बैंक को अपनी ओर खींचने का प्रयास कर रही है.
आदिवासी समाज को साधने का बीजेपी का प्लान
आदिवासी वोटबैंक सेंध लगाने का काम बीजेपी ने सांसद मनसुख वसावा को जिम्मा सौंप रखा है. यही वजह है कि मनसुख वसावा हर मुद्दे पर बीटीपी को घेरते हुए नजर आते हैं. सूबे में आदिवासी वोटबैंक को अपने पाले में लाने के लिए बीजेपी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है. भरुच, नर्मदा जिले से कई बीटीपी के कई नेताओं को बीजेपी ने पार्टी में शामिल कर लिया है जिसका फायदा पंचायत चुनाव ने बीजेपी को मिला था.
वहीं, अब पीएम नरेंद्र मोदी आदिवासी समुदाय को साधने के लिए बुधवार को खुद भी मैदान में उतर रहे हैं और विकास की सौगात देंगे. पीएम मोदी 9 हजार एचपी इलेक्ट्रिक इंजन उत्पादन यूनिट प्लांट का दाहोद में शिलान्यास करेंगे. इसका फायदा यहां के आदिवासियों को होगा. इस प्लांट से 10 हजार से ज्यादा लोगों को रोजगार मिल सकेगा. साथ ही प्रधानमंत्री जिले में 550 करोड़ रुपए की पीने के पानी की सप्लाई, 175 करोड़ की लागत के दुधीमाता नदी के प्रोजेक्ट और 300 करोड़ की लागत से बनने वाले दाहोद स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की भी सौगात देंगे.
आदिवासी कांग्रेस का कोर वोटबैंक है
कांग्रेस गुजरात की सत्ता में वापसी के लिए बेताब है, जिसके लिए अपने कोर वोटबैंक के साथ-साथ बीजेपी के परंपरागत वोटों पर भी नजर गढ़ाए हुए हैं. कांग्रेस ने आदिवासी समाज को अपने पाले में बनाए रखने के लिए विधानसभा में सुखराम राठवा को अपना नेता बनाया है तो साथ में बीटीपी के युवा नेता राजेश वसावा को कांग्रेस ने अपने साथ मिलाकर बीटीपी की आदिवासी युवा टीम में सेंध लगाने की कोशिश की है. इसके अलावा कांग्रेस आदिवासी वोटों पर पकड़ बनाए रखने के लिए आदिवासी मुद्दों को लेकर भी मुखर है.
दक्षिण गुजरात में तापी नर्मदा रिवर लिंक प्रोजेक्ट को लेकर आदिवासी समुदाय बीजेपी से नाराज माने जा रहे हैं. आदिवासी समुदाय के कांग्रेस विधायक अनंत पटेल और आनंद पटेल काफी समय तापी नर्मदा रिवर प्रोजेक्ट को लेकर विरोध कर रहे हैं. उनका जय जोहार के साथ यह आंदोलन इतना उग्र था कि इस प्रोजेक्ट पर केंद्र सरकार को अपने कदम पीछे खीचने पड़े हैं. जन समर्थन मिलता देख कांग्रेस विधायक अब इस प्रोजेक्ट के पुरी तरह बंद कराने की मांग उठा रहे हैं, जिसके जरिए वो चुनाव में सीधे तौर पर फायदा उठाने की कवायद मानी जा रही.
AAP-BTP में क्या मिलाएंगे आपस में हाथ
कांग्रेस-बीजेपी दोनों आदिवासी वोट बैंक को अपनी ओर खींचने में लगी हुई है तो तीसरी सियासी पार्टी के रूप में एंट्री करने वाले आम आदमी पार्टी की नजर भी आदिवासी वोट पर है. आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए आम आदमी पार्टी ने आदिवासी समुदाय के बीच पकड़ रखने वाली भारतीय ट्राइबल पार्टी के साथ दोस्ती के लिए हाथ बढ़ाया है. कुछ दिनों पहले ही आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और बीटीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष महेश बसावा के बीच मुलाकात हुई थी.
आम आदमी पार्टी और बीटीपी आपस में हाथ मिलाते हैं तो निश्चित तौर पर बीजेपी-कांग्रेस को आदिवासी बहुल 27 सीटों पर नुकसान पहुंच सकता है. आदिवासी नेता छोटू वसावा भरूच जिले की झगड़िया सीट से विधायक चुनते आ रहे हैं और उन्हें हराना आसान नहीं है. बीटीपी ने पिछला चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ा था, जिसका फायदा कांग्रेस को मिला. इस बार भी बीटीपी ने कांग्रेस के बजाय आम आदमी पार्टी के साथ हाथ मिलाने की तैयारी में है.
गुजरात में आदिवासी समाज क्यों नाराज?
दक्षिण गुजरात में तापी नर्मदा रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट का आदिवासियों ने जबरदस्त विरोध किया था. हजारों आदिवासी समाज के लोग सड़कों पर आ गए थे. आदिवासी समाज एक होकर आंदोलन कर रहा था जिसके बाद राज्य सरकार बचाव की मुद्रा में आ गई थी. आखिरकार कृषि कानून की तरह बीजेपी सरकार को इस प्रोजेक्ट को भी फिलहाल स्थगित करना पड़ा. इसके अलावा आदिवासी समाज के मुद्दों की बात करें तो नर्मदा जिले में इको सेंसेटिव जोन का जो मुद्दा है वह भी बीजेपी के लिए गले की फांस बनता जा रहा है.
कांग्रेस और बीटीपी हमेशा ये मुद्दा उठाती रहती है. साथ मे स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के एरिया में आदिवासी गांवों की समस्या का अभी भी निपटारा नहीं हो पाया है. ऐसे में जिले के डिप्टी कलेक्टर ने जो आदिवासियों को लेकर गलत बयान दिया था उसको सभी पार्टियों ने हाथों हाथ लिया था और आदिवासियों के विरोध में इसने आग में घी का काम किया.
दाहोद में आदिवासी वोटबैंक का अच्छा खासा दबदबा है. राज्य में पिछले पांच साल में सरकार के कई प्रोजेक्ट से आदिवासी खासा नाराज हैं. इसलिए उनकी नाराजगी खत्म करने पीएम के दाहोद दौरा बेहद खास माना जा रहा है. यह भी एक फैक्ट है कि कई सालों से आदिवासी वोटबैंक कांग्रेस का माना जाता रहा है. ऐसे में बीजेपी का फोकस है कि इस साल के आखिरी में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में आदिवासी समाज को अपने पाले में लेकर सत्ता को बरकरार रखना चाहती है. आदिवासी समाज के वोटों के शह-मात के खेल में कौन भारी पड़ता है?