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Gujarat Assembly Election 2022: व्यारा विधानसभा सीट पर 1962 से लगातार जीतती आ रही है कांग्रेस

दक्षिण गुजरात की व्यारा विधानसभा सीट तापी जिले में आती है. व्यारा विधानसभा क्षेत्र में कुल वोटर 2 लाख 22 हजार 629 हैं. इनमें 1 लाख 8 हजार 687 पुरुष वोटर और 1 लाख 13 हजार 942 महिला वोटर हैं. वैसे यह सीट कांग्रेस की परंपरागत मानी जाती है.

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गुजरात विधानसभा चुनाव (प्रतीकात्मक फोटो)
गुजरात विधानसभा चुनाव (प्रतीकात्मक फोटो)

दक्षिण गुजरात की आदिवासी क्षेत्र तापी जिले में दो विधानसभा सीट है. इनमें से एक निझर और दूसरी व्यारा विधानसभा सीट.व्यारा सीट कांग्रेस की परंपरागत मानी जाती है. 

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व्यारा विधानसभा सीट पर 1962 से लेकर 2017 तक लगातार कांग्रेस ने जीत हासिल की है. गुजरात में मोदी लहर होने के बावजूद भाजपा ने कांग्रेस के प्रत्याशी को मात देने में असफल रही. वर्तमान में कांग्रेस से विधायक पूना भाई धेडा भाई गामित हैं. इनकी कुल संपत्ति 65 लाख 29 हजार 633 रुपए हैं. इनके उपर कोई अपराधिक मामला दर्ज नहीं है. 

मतदाताओं के आंकड़े
चुनाव आयोग द्वारा जारी, 2017 की मतदाता सूची के अनुसार व्यारा विधानसभा क्षेत्र में कुल 2 लाख 22 हजार 629 वोटर हैं. इनमे से 1 लाख 8 हजार 687 पुरुष और 1 लाख 13 हजार 942 महिला वोटर हैं. 

राजनीतिक और भौगोलिक स्थिति 
व्यारा विधानसभा सीट पर विधानसभा चुनावों में जाति और आर्थिक समीकरणों से हटकर कांग्रेस की विचारधारा ज्यादा काम करती है. शायद इसी वजह से गुजरात में शासन करने के बाद भी भाजपा जीत दर्ज नहीं कर पाई. साल 1962 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पृथ्वीराज चौधरी, साल 1967 में कांग्रेस के बीएस गामित और 1972 से 1990 तक लगातार कांग्रेस से अमर सिंह चौधरी चुनाव जीतते रहे. 

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इसके बाद साल 2002 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से तुषार चौधरी ने जीत दर्ज की थी. व्यारा विधानसभा सीट पर कांग्रेस से पूना भाई गामित साल 2004 से 2017 तक जीत हासिल की. इस लिहाज से व्यारा विधानसभा सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जानी लगी. 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी पूना भाई गामित को 88 हजार 576 वोट मिले थे. इन्होंने भाजपा के अरविन्द चौधरी को 24 हजार 414 वोटों से हराया. 

आदिवासी समाज में सरकार के प्रति नाराजगी
व्यारा विधानसभा क्षेत्र के लोगों का प्रमुख व्यवसाय खेती है. आदिवासी और जंगली क्षेत्र से होकर गुजरने वाली तापी नर्मदा पावर रिवर लिंक योजना का आदिवासी समाज ने भारी विरोध किया था. विरोध को देखते हुए सरकार ने इस योजना को रद्द कर दिया था. मगर सरकार के प्रति काफी नाराजगी देखी गई थी. आदिवासी समाज योजना रद्द होने के बावजूद श्वेत पत्र की मांग कर रहा हैं. ऐसे में उस नाराजगी का असर विधानसभा चुनाव में पड़ेगा. ऐसा कयास लगाए जा रहे हैं.

 

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