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Gujarat Assembly Election 2022: जानिए, दक्षिण गुजरात की डांग विधानसभा सीट पर क्या है चुनावी समीकरण ?

डांग विधानसभा सीट में कुल 1 लाख 66 हजार 443 वोटर हैं. यहां की एक खासियत ये भी है कि यहां पुरुषों से ज्यादा महिलाओं की संख्या है. यहां पर आदिवासी जाति के ही कुकड़ा समाज का वर्चस्व ज्यादा है. इनकी कुल आबादी 45 प्रतिशत है.

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गुजरात विधानसभा चुनाव (प्रतीकात्मक फोटो)
गुजरात विधानसभा चुनाव (प्रतीकात्मक फोटो)

दक्षिण गुजरात की डांग विधानसभा सीट वलसाड लोकसभा क्षेत्र में आती है. दक्षिण गुजरात का डांग जिला जंगल और पहाड़ों की खूबसूरती के लिए जाना जाता है. इस जिले के सापुतारा हिल स्टेशन पर गुजरात ही नहीं पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र से भी लोग घूमने आते हैं. 

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जिले की 94 प्रतिशत आबादी आदिवासी समाज से आते हैं. डांग विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. वर्तमान में डांग विधानसभा सीट से भाजपा के विधायक विजय भाई रमेश भाई पटेल हैं. इनकी कुल संपत्ति 1 करोड़ 57 लाख 78 हजार 818 रुपए हैं. इनपर कोई अपराधिक मामला दर्ज नहीं है.

मतदाताओं के आंकड़े
डांग विधानसभा सीट में कुल 1 लाख 66 हजार 443 वोटर हैं. यहां की एक खासियत ये भी है कि यहां पुरुषों से ज्यादा महिलाओं की संख्या है. यहां पर आदिवासी जाति के ही कुकड़ा समाज का वर्चस्व ज्यादा है. इनकी कुल आबादी 45 प्रतिशत है. इसके अलावा वारली समाज 40 प्रतिशत और कुकड़ा वसावा समाज 5-8 प्रतिशत है. 

राजनीतिक पृष्ठभूमि
साल 1975 में डांग-वांसदा विधानसभा सीट अस्तित्व में आई थी. डांग विधानसभा सीट पर अब तक 6 प्रत्याशी जीत दर्ज कर चुके हैं. 1975 में पहली बार हुए इस विधानसभा सीट से चुनाव में एनसीओ ( नेशनल कांग्रेस ऑर्गेनाइजेशन ) की टिकट पर भास्कर भाई बागुल विधायक के रूप में चुने गए थे. इस सीट से सबसे ज्यादा जीत माधुभाई भॉय के नाम है. ये पहली बार जेडीयू से चुने गए थे. इसके बाद कांग्रेस में शामिल हो गए और तीन बार विधायक चुने गए. 

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साल 2007 के चुनाव में भाजपा से विजय भाई पटेल ने जीत दर्ज की थी. 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में फिर से कांग्रेस के मंगल भाई गावित जीते थे. इसके बाद उन्होंने पार्टी बदल कर भाजपा का दामन थाम लिया. साल 2020 के चुनाव में भाजपा ने मंगल गावित की जगह विजय पटेल को टिकट देकर मैदान में उतार दिया और उन्होंने अपनी जीत दर्ज की. 

2022 के लिए चुनावी मुद्दा
इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में चुनावी मुद्दा केंद्र और राज्य सरकार द्वारा किए काम हो सकते हैं. वहीं दूसरी तरफ विपक्ष बेरोजगारी, अच्छी शिक्षा और प्रदूषण रहित उद्योग की स्थापना करना हो सकता है. विकास की बात करें तो सड़क पहले से बेहतर हो गए हैं. मगर कई इलाको में पीने योग्य पानी की समस्या अब भी बरकरार है. 

यहां के रहने वाले आदिवासी लोग अभी भी कई तरह की प्राथमिक सुविधाओं से वंचित हैं. अब देखना होगा कि इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में आदिवासी लोग किस पार्टी को अपना बहुमत देकर विधायक चुनते हैं. 

 

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