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हिमाचल कांग्रेस में शह-मात का खेल जारी, तीन दिन बाद ही सुक्खू को हटवाने में कामयाब रहे वीरभद्र

हिमाचल विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया है और यहां सियासी तापमान काफी गर्म हो गया है. बीजेपी दोबारा से सत्ता में वापसी की राह बनाने की जुगत में हैं तो वहीं कांग्रेस में शह-मात का खेल चल रहा है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सुखविन्दर सिंह सुक्खू और सीएम वीरभद्र सिंह को बीच इन दिनों सियासी खीचतान जारी है.

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सुखविन्दर सिंह सुक्खू, राहुल गांधी और वीरभद्र सिंह
सुखविन्दर सिंह सुक्खू, राहुल गांधी और वीरभद्र सिंह

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हिमाचल विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया है और यहां सियासी तापमान काफी गर्म हो गया है. बीजेपी दोबारा से सत्ता में वापसी की राह बनाने की जुगत में हैं तो वहीं कांग्रेस में शह-मात का खेल चल रहा है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सुखविन्दर सिंह सुक्खू और सीएम वीरभद्र सिंह के बीच इन दिनों सियासी खींचतान जारी है.

कांग्रेस ने सोमवार को मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को राज्य में पार्टी प्रचार समिति का प्रमुख बनाया. वीरभद्र को प्रदेश कांग्रेस प्रमुख सुखविन्दर सिंह सुक्खू को हटाकर यह जिम्मेदारी दी गई है. जबकि तीन दिन पहले ही कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने सुक्खू को प्रचार समिति का अध्यक्ष और वीरभद्र को उसका सदस्य बनाया था. लेकिन वीरभद्र कांग्रेस आलाकमान पर दबाव बनाने में सफल रहे और बाजी उनके हाथ लगी. अब हिमाचल में कांग्रेस उम्मीदवारों का फैसला सुक्खू नहीं बल्कि वीरभद्र सिंह करेंगे.

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पिछले चुनाव में वीरभद्र बनाम कौल के बीच शह-मात

हिमाचल में 2017 के विधानसभा की सियासी सरगर्मियां चल रही हैं लेकिन कांग्रेस की हालत 2012 जैसी ही नजर आ रही है. पांच साल में वक्त कितना बदल गया, लेकिन वीरभद्र नहीं बदले हैं. 2012 के विधानसभा चुनाव में वीरभद्र तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष कौल सिंह ठाकुर से बीच सियासी वर्चस्व की जंग चल रही थी.

कौल और वीरभद्र दोनों लोग उस वक्त कांग्रेस के सीएम का चेहरा बनने के कोशिश में थे. यही वजह थी कि वीरभद्र सिंह रह-रहकर कौल सिंह ठाकुर को कोस रहे थे. इतना ही नहीं NCP में जाने की बातें भी चलने लगी थी. वीरभद्र की बगावती तेवर के आगे कांग्रेस ने कौल सिंह ठाकुर को शांत कर दिया था.

सत्ता के लिए कांग्रेस वीरभद्र के आगे झुकी थी

वीरभद्र को चुनाव प्रचार समिति का प्रमुख तो बनाया ही गया था, आलाकमान ने कई मीटिंगों के बाद उन्हें प्रदेश अध्यक्ष भी बना ही दिया. दरअसल वीरभद्र के सारे करीबी विधायक उनके साथ लामबंद हो गए थे. हिमाचल में बारी-बारी से सरकारें बदलती रही है. ऐसे में कांग्रेस का नंबर आने वाला था. कांग्रेस आलाकमान नहीं चाहता था कि यह मौका हाथ से जाए सत्ता में आने का. इसलिए उसने वीरभद्र के आगे घुटने टेक दिए थे. वीरभद्र कांग्रेस को सरकार में लाने में कामयाब भी रहे और फिर उन्होंने मुख्यमंत्री बनने पर कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष पद छोड़ दिया था.

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वीरभद्र और सुक्खू  के बीच छत्तीस का आकड़ा

विधानसभा चुनाव 2012 में जिस प्रकार वीरभद्र सिंह ने कौल सिंह ठाकुर से अदावत जगजाहिर है, उसी तर्ज पर इस सुक्खू सिंह से है. पिछले दिनों वीरभद्र सिंह ने कांग्रेस आलाकमान से चिट्ठी लिखकर कहा था कि प्रदेश में यही हाल रहा तो वह चुनाव नहीं लड़ेंगे. इसके बाद उनके खास और कैबिनेट मंत्री प्रकाश चौधरी ने कहा कि वह नहीं लड़ेंगे तो मैं भी नहीं लड़ूंगा और बाकी विधायकों की भी यही राय है.

दरअसल सुक्खू राहुल के करीबी माने जाते हैं और वीरभद्र सोनिया खेमे से. लेकिन हिमाचल की सियासत के वीरभद्र बेताज बादशाह हैं, कई बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं. इसीलिए कांग्रेस ने उनकी नाराजगी को देखते हुए फिलहाल सुक्खू को साइड लाइन करते हुए सूबे में चुनाव समीति की कमान उन्हें सौंप दी है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सुखविन्दर सिंह सुक्खू 2017 से ज्यादा 2022 को ध्यान में रखकर चल रहे हैं. इसीलिए वे फिलहाल वीरभद्र के आगे झुक गए हैं.

पांच फीसदी वोट से बनती बिगड़ती सरकारें

बता दें कि हिमाचल में सरकारें बदलने में कुछ फीसदी वोट की मार्जिन से सरकार पलट जाती है. 2007 के विधानसभा चुनावों के बाद जब बीजेपी सत्ता में आई थी, तब उसे 43.78 फीसदी वोट मिला था और कांग्रेस को 38.90 फीसदी. लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव में मामला उलट-पलट हो गया. बीजेपी का वोट शेयर घटकर 38.47 फीसदी रह गया और कांग्रेस का 42.81 फीसदी हो गया. इससे साफ जाहिर है कि साढ़े चार से साढ़े 5 फीसदी वोटरों का रुख ही तय करता है कि सरकार किसकी बननी है.

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