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हिमाचल चुनाव: बीजेपी को मोदी से आस, कांग्रेस कलह से परेशान

2012 विधानसभा चुनाव में मिले वोटों पर नजर डालें तो कांग्रेस को 43 फीसदी और बीजेपी को 39 फीसदी वोट मिले थे. 2007 की तुलना में कांग्रेस का वोट 5 फीसदी बढ़ा जबकि बीजेपी को 5 फीसदी वोट का नुकसान उठाना पड़ा.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हिमाचल के CM वीरभद्र सिंह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हिमाचल के CM वीरभद्र सिंह

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हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान आज हो सकता है. कांग्रेस जहां अपनी सत्ता को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही है, तो दूसरी ओर बीजेपी मोदी के सहारे सत्ता में वापसी की आस लगाए है. पिछले कुछ विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो साफ है कि एक बार कांग्रेस और एक बार बीजेपी राज्य की सत्ता के सिंहासन पर काबिज होती रही है.

हिमाचल प्रदेश में कुल 68 विधानसभा सीटे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य की 68 सीटों में से कांग्रेस को 36, बीजेपी को 26 तो अन्य को 6 सीटें मिली थीं. कांग्रेस को 2007 की तुलना में 2012 के विधानसभा चुनाव में 13 सीटों का फायदा हुआ था, वहीं बीजेपी को 2007 की तुलना में 2012 में 16 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था.

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कांग्रेस के वोट बढ़े, बीजेपी के घटे

2012 विधानसभा चुनाव में मिले वोटों पर नजर डालें तो कांग्रेस को 43 फीसदी और बीजेपी को 39 फीसदी वोट मिले थे. 2007 की तुलना में कांग्रेस का वोट 5 फीसदी बढ़ा जबकि बीजेपी को 5 फीसदी वोट का नुकसान उठाना पड़ा. बीजेपी महज 4 फीसदी वोटों से कांग्रेस से पीछे रही लेकिन कांग्रेस की तुलना में उसे 10 सीटें कम मिलीं.

हिमाचल विधानसभा चुनाव 2012 के नतीजों से साफ है कि हर बार की तरह राज्य की जनता ने सत्ता परिवर्तन करके कांग्रेस के हाथों में बागडोर सौंपी. हिमाचल की सत्ता के सिंहासन पर 2012 में कांग्रेस के वीरभद्र सिंह की ताजपोशी हुई, लेकिन पांच सालों में उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. वीरभद्र सिंह और हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू के बीच कलह खुलकर सामने आ गई. हिमाचल के 21 विधायकों ने वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में चुनाव लड़ने से मना कर दिया है.

मोदी के नाम पर ही वोट मांगेगी बीजेपी

उधर बीजेपी सत्ता में वापसी के लिए मोदी के सहारे है. मौजूदा समय में बीजेपी हिमाचल में किसी चेहरे को आगे नहीं बढ़ा रही है. यूपी, उत्तराखंड, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के नक्शे कदम पर बीजेपी चल रही है. यानी यहां भी चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री का चेहरा पेश कर सकती है.

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बता दें कि हिमाचल में 1985 से लेकर अभी तक जितने विधानसभा चुनाव हुए हैं. इनमें एक बार कांग्रेस तो एक बार बीजेपी सत्ता के सिंहासन पर काबिज हुई है. हिमाचल विधानसभा का गठन 1962 में हुआ. इससे पहले हिमाचल पंजाब का हिस्सा हुआ करता था. हिमाचल में 12 बार विधानसभा का चुनाव हुआ है. इनमें से 8 बार कांग्रेस, 3 बार बीजेपी और 1 बार जनता पार्टी सत्ता के सिंहासन पर काबिज हुई है.

हिमाचल में कांग्रेस को पहला झटका 1977 में लगा, जब जनता पार्टी से उसे बुरी तरह मात खानी पड़ी. 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी तो शांता कुमार हिमाचल के  मुख्यमंत्री बने. इसके बाद 1982 में विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी को कांग्रेस से हार का सामना करना पड़ा.

1985 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस फिर सत्ता पर काबिज हुई. लेकिन इसके बाद 1990 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापस आई और शांता कुमार मुख्यमंत्री बने. पर तीन साल बाद 1993 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई.

दोहराया जाएगा इतिहास या होगा चमत्कार

पांच साल बाद 1998 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई और प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री बने. इसके बाद जब 2003 में विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी को कांग्रेस ने शिकस्त देते हुए सत्ता में वापसी की. इसी तरह 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल होना पड़ा और बीजेपी की वापसी हुई. हिमाचल ने 2012 में फिर अपने इतिहास को दोहराया और कांग्रेस की वापसी हुई और बीजेपी सत्ता से आउट हो गई. इस राजनीतिक परंपरा को देखा जाए तो बीजेपी इस बार अपनी जीत आश्वस्त मानकर चल रही है. दूसरी ओर कांग्रेस जिस अंतर्कलह से जूझ रही है और वीरभद्र सिंह जिस तरह के आरोपों में फंसे हैं उसे देखते हुए पार्टी को अपनी सत्ता बचाने के लिए किसी चमत्कार की ही उम्मीद रखनी होगी.

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