हिमाचल प्रदेश में मंडी जिले की द्रंग विधानसभा सीट कांग्रेस का मजबूत गढ़ है. द्रंग हिमाचल की ऐसी सीट हैं, जहां से पिछले आठ चुनाव से कांग्रेस के नेता कौल सिंह लगातार जीतते आ रहे हैं. लेकिन इस बार की द्रंग की चुनावी फिजा बदली हुई है. कांग्रेस प्रत्याशी ठाकुर कौल सिंह के खिलाफ इस बार उनके ही राजनीतिक शिष्य चंद ठाकुर ने कांग्रेस से बगावत करके ताल ठोंक रखी है. यही वजह है कि द्रंग विधानसभा की सियासी जंग दिलचस्प बन गई है.
कौल सिंह कांग्रेस के काफी कद्दावर नेता माने जाते हैं. वो कांग्रेस में कई बार मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे, लेकिन वीरभद्र सिंह के चलते बाजी उनके हाथ नहीं लगी. कौल सिंह को राजनीति में एक बार 1990 में बीजेपी के दीनानाथ शास्त्री के हाथों शिकस्त मिली थी. इसके बाद से उन्हें आजतक कोई मात नहीं दे सका है.
कौल सिंह को द्रंग के विकास का मसीहा कहा जाता है. हिमाचल का सबसे बड़ा और कठिन विधानसभा क्षेत्र होने के बावजूद ठाकुर कौल सिंह ने अपने राजनीतिक कद का प्रयोग करते हुए यहां विकास कार्यों में कोई कसर नहीं छोड़ी. यही वजह है कि ये सीट कांग्रेस का अभेद दुर्ग बनी हुई है.
द्रंग विधानसभा का सियासी समीकरण इस बार बदला हुआ नजर आ रहा है. कौल सिंह के राजनीतिक शिष्य के सियासी मैदान में उनके ही खिलाफ उतरने से वो घिरे हुए नजर आ रहे हैं. उनकी सबसे बड़ी परेशानी उनके ही राजनीतिक चेले पूर्ण चंद ठाकुर हैं जो वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष होते हुए भी बागी होकर मैदान में उतर गए हैं. दूसरी ओर पहली बार यहां भाजपा भी एकजुट हो गई है.
पिछले विधानसभा चुनाव में कौल सिंह ने महज 2232 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी. ऐसे में पूर्ण चंद ठाकुर का बागी होना और बीजेपी का एकजुट होना कौल सिंह ठाकुर की परेशानी को बढ़ा रहा है. पिछले दो बार चुनाव हार चुके जवाहर ठाकुर पर बीजेपी ने एक बार फिर दांव लगाया है. जबकि उनके पार्टी में विरोधी रहे रमेश शर्मा व ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर भी इस बार साथ आ गए हैं.
जवाहर ठाकुर के संदर्भ में उल्लेखनीय बात ये है कि वह इस चुनाव में जितने प्रत्याशी मैदान में हैं, उनमें सबसे कम पढ़े लिखे हैं. वे मात्र नौवीं पास हैं. लेकिन लंबे समय से राजनीति में सक्रिय रहने की वजह से जनता के बीच जाना-पहचाना नाम हैं.
कौल सिंह का मुख्यमंत्री पद पर दावा नहीं रहा क्योंकि सात अक्तूबर की मंडी रैली में राहुल गांधी ने मंच से वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित कर दिया. इसके अलावा कौल सिंह की एक परेशानी यह भी है कि इस बार उनके समर्थकों को जिले में टिकट भी हासिल हो गए हैं. वो सभी अपने अपने क्षेत्रों में व्यस्त हैं. जीत दर्ज करने की जिम्मेदारी उनके खुद के कंधों पर है. ऐसे में देखना होगा कि कौल सिंह इतिहास रचते हैं या फिर बीजेपी उनके दुर्ग में भेद करने में सफल होती है.